संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|प्रभासखण्ड|प्रभासखण्डे प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम्| अध्याय २७० प्रभासखण्डे प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम् अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० अध्याय १११ अध्याय ११२ अध्याय ११३ अध्याय ११४ अध्याय ११५ अध्याय ११६ अध्याय ११७ अध्याय ११८ अध्याय ११९ अध्याय १२० अध्याय १२१ अध्याय १२२ अध्याय १२३ अध्याय १२४ अध्याय १२५ अध्याय १२६ अध्याय १२७ अध्याय १२८ अध्याय १२९ अध्याय १३० अध्याय १३१ अध्याय १३२ अध्याय १३३ अध्याय १३४ अध्याय १३५ अध्याय १३६ अध्याय १३७ अध्याय १३८ अध्याय १३९ अध्याय १४० अध्याय १४१ अध्याय १४२ अध्याय १४३ अध्याय १४४ अध्याय १४५ अध्याय १४६ अध्याय १४७ अध्याय १४८ अध्याय १४९ अध्याय १५० अध्याय १५१ अध्याय १५२ अध्याय १५३ अध्याय १५४ अध्याय १५५ अध्याय १५६ अध्याय १५७ अध्याय १५८ अध्याय १५९ अध्याय १६० अध्याय १६१ अध्याय १६२ अध्याय १६३ अध्याय १६४ अध्याय १६५ अध्याय १६६ अध्याय १६७ अध्याय १६८ अध्याय १६९ अध्याय १७० अध्याय १७१ अध्याय १७२ अध्याय १७३ अध्याय १७४ अध्याय १७५ अध्याय १७६ अध्याय १७७ अध्याय १७८ अध्याय १७९ अध्याय १८० अध्याय १८१ अध्याय १८२ अध्याय १८३ अध्याय १८४ अध्याय १८५ अध्याय १८६ अध्याय १८७ अध्याय १८८ अध्याय १८९ अध्याय १९० अध्याय १९१ अध्याय १९२ अध्याय १९३ अध्याय १९४ अध्याय १९५ अध्याय १९६ अध्याय १९७ अध्याय १९८ अध्याय १९९ अध्याय २०० अध्याय २०१ अध्याय २०२ अध्याय २०३ अध्याय २०४ अध्याय २०५ अध्याय २०६ अध्याय २०७ अध्याय २०८ अध्याय २०९ अध्याय २१० अध्याय २११ अध्याय २१२ अध्याय २१३ अध्याय २१४ अध्याय २१५ अध्याय २१६ अध्याय २१७ अध्याय २१८ अध्याय २१९ अध्याय २२० अध्याय २२१ अध्याय २२२ अध्याय २२३ अध्याय २२४ अध्याय २२५ अध्याय २२६ अध्याय २२७ अध्याय २२८ अध्याय २२९ अध्याय २३० अध्याय २३१ अध्याय २३२ अध्याय २३३ अध्याय २३४ अध्याय २३५ अध्याय २३६ अध्याय २३७ अध्याय २३८ अध्याय २३९ अध्याय २४० अध्याय २४१ अध्याय २४२ अध्याय २४३ अध्याय २४४ अध्याय २४५ अध्याय २४६ अध्याय २४७ अध्याय २४८ अध्याय २४९ अध्याय २५० अध्याय २५१ अध्याय २५२ अध्याय २५३ अध्याय २५४ अध्याय २५५ अध्याय २५६ अध्याय २५७ अध्याय २५८ अध्याय २५९ अध्याय २६० अध्याय २६१ अध्याय २६२ अध्याय २६३ अध्याय २६४ अध्याय २६५ अध्याय २६६ अध्याय २६७ अध्याय २६८ अध्याय २६९ अध्याय २७० अध्याय २७१ अध्याय २७२ अध्याय २७३ अध्याय २७४ अध्याय २७५ अध्याय २७६ अध्याय २७७ अध्याय २७८ अध्याय २७९ अध्याय २८० अध्याय २८१ अध्याय २८२ अध्याय २८३ अध्याय २८४ अध्याय २८५ अध्याय २८६ अध्याय २८७ अध्याय २८८ अध्याय २८९ अध्याय २९० अध्याय २९१ अध्याय २९२ अध्याय २९३ अध्याय २९४ अध्याय २९५ अध्याय २९६ अध्याय २९७ अध्याय २९८ अध्याय २९९ अध्याय ३०० अध्याय ३०१ अध्याय ३०२ अध्याय ३०३ अध्याय ३०४ अध्याय ३०५ अध्याय ३०६ अध्याय ३०७ अध्याय ३०८ अध्याय ३०९ अध्याय ३१० अध्याय ३११ अध्याय ३१२ अध्याय ३१३ अध्याय ३१४ अध्याय ३१५ अध्याय ३१६ अध्याय ३१७ अध्याय ३१८ अध्याय ३१९ अध्याय ३२० अध्याय ३२१ अध्याय ३२२ अध्याय ३२३ अध्याय ३२४ अध्याय ३२५ अध्याय ३२६ अध्याय ३२७ अध्याय ३२८ अध्याय ३२९ अध्याय ३३० अध्याय ३३१ अध्याय ३३२ अध्याय ३३३ अध्याय ३३४ अध्याय ३३५ अध्याय ३३६ अध्याय ३३७ अध्याय ३३८ अध्याय ३३९ अध्याय ३४० अध्याय ३४१ अध्याय ३४२ अध्याय ३४३ अध्याय ३४४ अध्याय ३४५ अध्याय ३४६ अध्याय ३४७ अध्याय ३४८ अध्याय ३४९ अध्याय ३५० अध्याय ३५१ अध्याय ३५२ अध्याय ३५३ अध्याय ३५४ अध्याय ३५५ अध्याय ३५६ अध्याय ३५७ अध्याय ३५८ अध्याय ३५९ अध्याय ३६० अध्याय ३६१ अध्याय ३६२ अध्याय ३६३ अध्याय ३६४ अध्याय ३६५ अध्याय ३६६ विषयानुक्रमणिका प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम् - अध्याय २७० भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय २७० Translation - भाषांतर ॥ईश्वर उवाच॥ततो गच्छेन्महादेवि यत्र प्राची सरस्वती ॥तत्र स्थाने स्थितं लिंगं मंकीश्वरमिति श्रुतम् ॥१॥तस्योत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि सर्वपातकनाशिनीम् ॥शृणु देवि महाभागे ह्याश्चर्यं यदभूत्पुरा ॥२॥ऋषिर्मंकणको नाम स तेपे परमं तपः ॥प्राचीमेत्य यताहारो नित्यं स्वाध्यायतत्परः ॥३॥बहुवर्षसहस्राणि तस्यातीतानि भामिनि ॥कस्यचित्त्वथ कालस्य विद्धादस्य वरानने ॥४॥कराच्छाकरसो जातः कुशाग्रेणेति नः श्रुतम् ॥स तं दृष्ट्वा महाश्चर्यं विस्मयं परमं गतः॥५॥मेने सिद्धिं परां प्राप्तो हर्षान्नृत्यमथाकरोत् ॥तस्मिन्संनृत्यमाने च जगत्स्थावरजंगमम् ॥६॥अनर्त्तत वरारोहे प्रभावात्तस्य वै मुनेः ॥ततो देवा महेंद्राद्या ब्रह्मविष्णुपुरस्सराः ॥ऊचुस्त्रिपुरहंतारं नायं नृत्येत्तथा कुरु ॥७॥चलिताः पर्वताः स्थानात्क्षुभितो मकरालयः ॥धरणी खण्डशो देव वृक्षाश्च निधनं गताः ॥८॥उत्पथाश्च महानद्यो ग्रहा उन्मार्गसंस्थिताः ॥त्रैलोक्यं व्याकुलीभूतं यावत्प्राप्नोति संक्षयम् ॥९॥तावन्निवारयस्वैनं नान्यः शक्तो निवारणे ॥१०॥स तथेति प्रतिज्ञाय गत्वा तस्य समीपतः ॥द्विजरूपं समास्थाय तमृषिं वाक्यमब्रवीत् ॥११॥को हर्षविषयः कस्मात्त्वयैतन्नृत्यते द्विज ॥तस्मात्कार्यं वदाशु त्वं परं कौतूहलं द्विजः ॥१२॥ ॥ऋषिरुवाच॥किं न पश्यसि मे ब्रह्मन्कराच्छाकर सं च्युतम्॥अत एव हि मे नृत्यं सिद्धोऽहं नात्र संशयः ॥१३॥ ॥ईश्वर उवाच॥तस्य तद्वचनं श्रुत्वा भगवांस्त्रिपुरांतकः ॥अंगुष्ठं ताडयामास अंगुल्यग्रेण भामिनि ॥१४॥ततो विनिर्गतं भस्म तत्क्षणाद्धिमपांडुरम् ॥अथाब्रवीत्प्रहस्यैनं भगवान्भूतभावनः ॥१५॥पश्य मेंऽगुष्ठतो ब्रह्मन्भूरि भस्म विनिर्गतम् ॥न नृत्येऽहं न मे हर्षस्तथापि मुनिसत्तम ॥१६॥तद्दृष्ट्वा सुमहाश्चर्यं विस्मयं परमं गतः ॥अब्रवीत्प्रांजलिर्भूत्वा हर्षगद्गदया गिरा ॥१७॥नान्यं देवमहं मन्ये .त्वां मुक्त्वा वृषभध्वजम् ॥नान्यस्य विद्यते शक्तिरीदृशी धरणीतले ॥१८॥॥ ॥भगवानुवाच॥ज्ञातोऽस्मि मुनिशार्दूल त्वया वेदविदां वर ॥वरं वरय भद्रं ते नित्यं यन्मनसेप्सितम् ॥१९॥ ॥ऋषिरुवाच॥प्रसादाद्देवदेवस्य नृत्येन महता विभो ॥यथा न स्यात्तपोहानिस्तथा नीतिर्विधीयताम् ॥२०॥ ॥शंभुरुवाच॥तपस्ते वर्द्धतां विप्र मत्प्रसादात्सहस्रधा ॥प्राचीमन्विह वत्स्यामि त्वया सार्द्धमहं सदा ॥२१॥सरस्वती महापुण्या क्षेत्रे चास्मिन्विशेषतः ॥सरस्वत्युत्तरे तीरे यस्त्यजेदात्मनस्तनुम् ॥२२॥प्राचीने ह्यृषिशार्दूल न चेहागच्छते पुनः ॥आप्लुतो वाजिमेधस्य फलं प्राप्नोति पुष्कलम् ॥२३॥नियमैश्चोप वासैश्च शोषयन्देहमात्मनः॥जलाहारा वायुभक्षाः पर्णाहाराश्च तापसाः ॥तथा च स्थंडिलशया ये चान्ये नियताः पृथक् ॥।२४॥ये स्नानमाचरिष्यंति तीर्थेऽस्मिन्नियमान्विताः ॥ते यांति परमां सिद्धिं ब्रह्मणः परमं पदम् ॥२५॥अस्मिंस्तीर्थे तु यो दानं त्रुटिमात्रं च कांचनम् ॥ददाति द्विजमुख्याय मेरुतुल्यं भवेत्फलम् ॥२६॥अस्मिंस्तीर्थे तु ये श्राद्धं करिष्यंतीह मानवाः॥एकविंशत्कुलोपेताः स्वर्गं यास्यंति ते ध्रुवम् ॥२७॥पितॄणां वल्लभं तीर्थं पिंडेनैकेन तर्पिताः ॥ब्रह्मलोकं गमिष्यंति सुपुत्रेणेह तारिताः ॥२८॥भूयश्चान्नं प्रयच्छंति मोक्षमार्गं व्रजंति ते ॥२९॥अत्र ये शुभ कर्माणः प्रभासस्थां सरस्वतीम् ॥पश्यंति तेपि यास्यंति स्वर्गलोकं द्विजोत्तमाः ॥३०॥ये पुनस्तत्र भावेन नराः स्नानपरायणाः ॥ब्रह्मलोकं समासाद्य ते रमिष्यंति सर्वदा ॥३१॥दधि प्रदद्याद्योऽपीह ब्राह्मणाय मनोरमम् ॥सोऽप्यग्निलोकमासाद्य भुंक्ते भोगान्सुशोभनान् ॥३२॥ऊर्णाप्रावरणं योऽपि भक्त्या दद्याद्द्विजोत्तमे ॥सोऽपि याति परां सिद्धिं मर्त्यैरन्यैः सुदुर्लभाम् ॥३३॥ये चात्र मलनाशाय विशेयुर्मानवा जलम् ॥गोप्रदानफलं तेषां सुखेन फलमादिशेत् ॥३४॥भावेन हि नरः कश्चित्तत्र स्नानं समाचरेत् ॥सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते ॥३५॥तर्पणात्पिंडदानाच्च नरकेष्वपि संस्थिताः ॥स्वर्गं प्रयांति पितरः सुपुत्रेणेह तारिताः ॥३६॥ते लभंतेऽक्षयांल्लोका न्ब्रह्मविष्ण्वीशशब्दितान् ॥भूयस्त्वन्नं प्रयच्छन्ति मोक्षमार्गं लभंति ते ॥३७॥स्वर्गनिश्रेणिसंभूता प्रभासे तु सरस्वती ॥नापुण्यवद्भिः संप्राप्तुं पुंभिः शक्या महानदी ॥३८॥प्राची सरस्वती चैव अन्यत्रैव तु दुर्लभा ॥विशेषेण कुरुक्षेत्रे प्रभासे पुष्करे तथा ॥३९॥प्राचीं सरस्वतीं प्राप्य योन्यत्तीर्थं हि मार्गते ॥स करस्थं समुत्सृज्य कूर्परेण समाचरेत् ॥४०॥कृष्णपक्षे चतुर्दश्यां स्नानं च विहितं सदा ॥पिण्याकेंगुदकेनापि पिंडं तत्र ददाति यः ॥पितॄणामक्षयं भूयात्पितृलोकं स गच्छति ॥४१॥सरस्वतीवाससमा कुतो रतिः सरस्वतीवाससमाः कुतो गुणाः ॥सरस्वतीं प्राप्य गता दिवं नराः पुनः स्मरिष्यंति नदीं सरस्वतीम् ॥४२॥ ॥ईश्वर उवाच॥उक्त्वैवं भगवान्देवस्तत्रैवांतरधीयत ॥सांनिध्यमकरोत्तत्र ततःप्रभृति शंकरः ॥४३॥अत्र गाथा पुरा गीता विष्णुना प्रभविष्णुना ॥स्नेहार्द्रेण च चित्तेन धर्मपुत्रं प्रति प्रिये ॥४४॥मा गंगां व्रज कौंतेय मा प्रयागं च पुष्करम् ॥तत्र गच्छ कुरुश्रेष्ठ यत्र प्राची सरस्वती ॥४५॥एतत्ते सर्वमाख्यातं यन्मां त्वं परिपृच्छसि ॥माहात्म्यं च सरस्वत्या भूयः किं श्रोतुमिच्छसि ॥४६॥इति श्रीस्कांदे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां सप्तमे प्रभासखंडे प्रथमे प्रभासक्षेत्रमाहात्म्ये प्राचीसरस्वतीमंकीश्वरमाहात्म्यवर्णनंनाम सप्तत्युत्तरद्विशततमोऽध्यायः ॥२७०॥ N/A References : N/A Last Updated : January 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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