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Puran Kavya Stotra Sudha - Page 24

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व्यवहारचातुर्ययोगः- बृहस्पतिनीतिसारः
२. बृहस्पतिनीतिसारः
[ बृहस्पतिके अर्थशास्त्र अथवा नीतिसारविषयक ग्रंथका : उल्लेख
महाभारत, कौटिलीय अर्थशास्त्र, प्रतिमानाटक, बुद्धचरित कामशास्त्र
और सोमदेवका यशस्तिलक आदि ग्रंथों में किया गया है तथव एफ्.
डब्ल्यु. थॉमस जिन्होंने बार्हस्पत्यसूत्रनामक ग्रंथ प्रकाशित किया है।
गरुड पुराणमें कथित वृहस्पतिनीतिसार में अध्याय १११-११३ में
राजनीतिविषयक किंचित विवेचन किया गया है। किन्तु अन्य अध्यायोंमें
नीतिवचन ग्रथित किया है । तथैव भर्तृहरिनीतिशतकमें से ९० और १२७
श्लोकभी अिसमे अद्धृत किया है। संदर्भसे यह मालूम होता है कि
यह नीतिसार ग्यारह अथवा बारह शताद्वीमें ( A. D.) संस्कारीत लिया
होगा । ]
अथ अष्टोत्तरशततमोऽध्याय: (१०८).
नीतिसारं प्रवक्ष्यामि अर्थशास्त्रादिसंश्रितम् ||
राजादिभ्यो हितं पुण्यमायुः स्वर्गादिदायकम् ॥ १॥
सद्भिः सङ्गं प्रकुर्वीत सिद्धिकामः सदा नरः ॥
नासद्भिरिलोकाय परलोकाय वा हितम् ॥ २ ॥
वर्जयेत्क्षुद्रसंवादं सुदुष्टस्य च दर्शनम् ॥
विरोधं सह मित्रेण संप्रीति शत्रुसेविना || ३ ||
मूर्ख शिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च ॥
दुष्टानां संप्रयोगेण पंडितोऽप्यवसोदति ॥ ४॥
ब्राह्मणं बालिशं क्षत्त्रमयोद्धारं विशं जडम् ॥
शूद्रमक्षरसंयुक्तं दूरतः परिवर्जयेत् ॥ ५ ॥
कालेन रिपुणा संधिः काले मित्रेण विग्रहः ||
कार्य्यकारणमाश्रित्य कालं क्षिपति पण्डितः ॥ ६ ॥
/काल: पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः ॥
काल: सुप्तेषु जागत्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ ७॥
१. ' संवादमदुष्टस्य' इ. पा.

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Last Updated : September 23, 2022

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