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दत्तगीता - प्रथमोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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दत्तगीता - द्वितीयोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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दत्तगीता - तृतीयोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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दत्तगीता - चतुर्थोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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दत्तगीता - पंचमोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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दत्तगीता - षष्ठोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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दत्तगीता - सप्तमोध्यायः
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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श्रीगुरुचरित्रातील श्रीगुरुगीता
गीता म्हणजे प्राचीन ऋषी मुनींनी रचलेली विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वे.Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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श्रीसूर्यकचचस्तोत्रम् - श्रीसूर्यध्यानम् रक्तांबु...
रोज कवच स्तोत्राचे पठण केल्याने जीवन सुरक्षित बनते.
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नृसिंहकवचम् - नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्ल...
रोज कवच स्तोत्राचे पठण केल्याने जीवन सुरक्षित बनते.
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श्री महालक्ष्मी कवचम् - महालक्ष्याः प्रवक्ष्यामि ...
रोज कवच स्तोत्राचे पठण केल्याने जीवन सुरक्षित बनते.
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श्रीगायत्रीपुरश्चरणपद्धतिः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥
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श्रीगायत्रीपुरश्चरणपद्धतिविषयानुक्रमणिका
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ श्रीगायत्रीपुरश्चरणपद्धतिप्रारंभः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ भूम्यादिदेवानामावाहनं पूजनञ्च
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ संक्षेपतः सार्वत्रिकी कुण्डमण्डपादीतिकर्तव्यता
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ कुण्डरचनाप्रकारः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ प्राच्योदीच्याङ्गसहितः प्रायश्चित्तप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ गोदानादिपूर्वोत्तराङ्गसहितः प्रायश्चित्तहोमः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ आज्येन प्रधानहोमः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथोत्तराङ्गप्रायचित्तम्
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ नूतनयज्ञोपवीतधारणविधिः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ गायत्रीपुरश्चरणमुहूर्तादिकम्
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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वृतानां ब्राह्मणानामपि धर्मा लक्षणानि च
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ पुरश्चरणलक्षणं युगभेदेन न्यूनाधिकजपसंख्याप्रकारश्च
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ गायत्रीपुरश्चरणभेदा होमद्रव्याणि च
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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निर्णयसंग्रहः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ कर्मारम्भप्रतिबन्धकनिमित्तनिर्णयः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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श्र्यादिसप्तवसोर्धारदेवतापूजनप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथाचाराद्वैश्चदेवसङ्कल्पः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथायुष्यमंत्रजपः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ साङ्कल्पिकनान्दीश्राद्धप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ आचार्याद्यृत्विग्वरणप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ वरणश्राद्धम्
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ आचार्यादीनां मधुपर्कार्चनप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ आचार्यादिपूजनपूर्वकप्रार्थनाप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ रेखाकरणं पूजनञ्च
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ स्थापनक्रमेण ब्रह्मादीनां पायसबलिदानम्
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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शिख्यादिवास्तुमण्डलदेवतापूजनप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथयोगिनीदेवतापूजनप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ जलयात्राप्रयोगः
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अथ सप्तजलजीवस्थलमातृकाणां सागराणाञ्च स्थापनपूजनप्रयोगः
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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अथ इन्द्रादीनां पूजनपूर्वकबलिदानप्रयोगः
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अथ पात्रासादनपूर्वकश्रीगायत्रीदेवीपूजनप्रयोगः
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अथ भूतशुद्धिः
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अथ प्राणप्रतिष्ठाप्रयोगः
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अथ अजपाजपसङ्कल्पः
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अथ अन्तर्मातृकान्यासः
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अथ बहिर्मातृकान्यासः
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अथ गायत्रीमहान्यासाः
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ततः श्रीगायत्रीदेव्या बहिःपूजामारभेत
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गायत्रीकवचं
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अथ गायत्रीमन्त्रनित्यजपविधिः
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अथ कुण्डस्थदेवतापूजनप्रयोगः
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अथ पञ्चभूसंस्कारपूर्वकाग्नीप्रतिष्ठापनप्रयोगः
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अथ वैकल्पिकपदार्थावधारणादिकम्
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अथ कुशकुण्डिकाप्रयोगः
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अथ प्रधानहोमः
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अथ होमदशांशेन तर्पणप्रयोगस्तर्पणदशांशेन मार्जनप्रयोगश्च
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अथ स्थापितदेवतानां होमः
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अथ वास्तुमण्डलदेवतानां होमः
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अथ श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीसमन्वितश्रीगजाननादिचतुःषष्टियोगिनीनां होमः
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अथैकपञ्चाशत्क्षेत्रपालदेवतानां होमः
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अथ सर्वतोभद्रमण्डलदेवतानां होमः
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अथ श्रीगायत्र्याः पीठदेवतानां होमः
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अथ यन्त्रदेवतानां होमः
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अथ श्रेयःसंपादनादिकम्
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अथ अवभृथस्नानविधिः
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अथ घृतपात्रदानादिकम्
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अथ देवताविसर्जनं पीठादिदानञ्च
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श्रीसूर्याथर्वशीर्षम्
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श्रीगायत्रीसहस्रनामावलिः
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अथ गायत्रीध्यानम्
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श्रीचाक्षुषोपनिषद्
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श्रीगायत्रीमानसपूजा
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श्रीगायत्र्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
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श्रीगायत्रीपुरश्चरणविधिः
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अथ विश्वामित्रकृत श्रीगायत्रीकल्पः
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अथ श्रीगायत्र्युपनिषत्
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अथ श्रीगायत्रीपद्धतिः
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अथ श्रीगायत्रीतत्त्वम्
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अथ श्रीगायत्रीकवचम्
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अथ श्रीगायत्रीपंजरस्तोत्रम्
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अथ श्रीगायत्रीस्तवराजः
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अथ श्रीगायत्रीपटलम्
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अष्टाविंशतिगायत्र्यः
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अथ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम्
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
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इन्द्राणीसप्तशती
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - प्रथमं गायत्रं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - द्वितीयमौष्णिहं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - तृतीयमानुष्टुभं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - चतुर्थं बार्हतं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - पञ्चमं पाङ्क्तं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - षष्ठं त्रैष्टुभं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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इन्द्राणीसप्तशती - सप्तमं जागतं शतकम्
‘ इन्द्राणीसप्तशती ’ गाथेचा पाठ केल्याने इंद्राची स्तुती केल्याचे पुण्य मिळते.
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विद्यागणपतिवाञ्छाकल्पलता
हे स्तोत्र पठन केल्याने विद्या प्राप्त होते, म्हणून विद्यार्थ्यांकडून हे स्तोत्र पठन करून घ्यावे.
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प्रथम: पर्याय:
हे स्तोत्र पठन केल्याने विद्या प्राप्त होते, म्हणून विद्यार्थ्यांकडून हे स्तोत्र पठन करून घ्यावे.
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द्वितीय: पर्याय:
हे स्तोत्र पठन केल्याने विद्या प्राप्त होते, म्हणून विद्यार्थ्यांकडून हे स्तोत्र पठन करून घ्यावे.
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तृतीय: पर्याय:
हे स्तोत्र पठन केल्याने विद्या प्राप्त होते, म्हणून विद्यार्थ्यांकडून हे स्तोत्र पठन करून घ्यावे.
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चतुर्थ: पर्याय:
हे स्तोत्र पठन केल्याने विद्या प्राप्त होते, म्हणून विद्यार्थ्यांकडून हे स्तोत्र पठन करून घ्यावे.
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स्तोत्रः
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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कृतस्तोत्रादिसंग्रह:
श्री प. प. नृसिंहसरस्वतीदीक्षितस्वामीमहाराज कृतस्तोत्रादिसंग्रह:
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अथ मानसपूजा
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अथ दत्तस्तोत्रम्
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श्रीनवार्णमंत्रस्तोत्रम्
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श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रम्
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अथ रेणुकास्तोत्रम्
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अथ रेणुकास्तोत्रम्
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अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
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श्री हनूमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
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अथ अमरापुरस्थं श्रीअमरेश्वदेवतादिध्यानम्
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ध्यानं द्वितीयस्
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अथ श्रीगुरुपरम्परा
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श्रीदत्तश्रीपादश्रीनृसिंहसरस्वतीस्त्रोत्रम्
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प्रात:स्मरणं
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अथ मानसिकस्नानम्
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श्रीगुरुदत्तात्रेयस्तोत्रम्
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श्रीनृसिंहवाटिकावर्णनम्
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श्रीनामदेवस्तोत्रम्
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अथामरेश्वरदत्तगुरुस्तोत्रम्
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अथ विठ्ठलस्तोत्रम्
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सर्वतीर्थस्तोत्रम्
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नवयोगीन्द्रनाथस्तोत्रम्
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नवयोगीन्द्रपंचकस्तोत्रम्
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पुण्यपत्तने मूलामुठास्तुति:
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आळंदीस्तोत्रम्
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तुकारामार्या
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देवीस्तोत्रम्
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श्रीव्यासपूजास्तोत्रम्
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श्रीमद्भगवत्पूज्यपादस्तोत्रम्
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श्रीवेदव्यासस्तोत्रम्
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अनसूयास्तोत्रम्
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नर्मदास्तोत्रम्
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अमरेश्वरस्तोत्रम्
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नामदेवस्तोत्रम्
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श्रीवेदगङ्गास्तोत्रम्
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भिवापुरस्थश्रीसोमश्वशरस्तोत्रम्
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श्रीमरुद्गंगाकाशीस्तोत्रम्
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श्रीरामटेकस्थरामस्तोत्रम्
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श्रीरामदासस्तोत्रम्
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रामदासपंचायतनम्
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चीमूरस्थकेशवदेवेश्वरस्तोत्रपंचकम्
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श्रीकेशवस्तोत्रम्
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एकनाथस्तोत्रम्
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अमोघानदीस्तोत्रम्
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यमुनास्तोत्रम्
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श्रीगुरुस्तोत्र
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मारुति नामानि
श्री प. प. नृसिंहसरस्वतीदीक्षितस्वामीमहाराज कृतस्तोत्रादिसंग्रह:
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श्रीवासुदेवानंदसरस्वतीचरित्रम्
श्री प. प. नृसिंहसरस्वतीदीक्षितस्वामीमहाराज कृतस्तोत्रादिसंग्रह:
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अमरेश्वरस्तोत्र - जगज्जन्महेतुं दयापूर्णसिन...
स्तोत्र म्हणजेच देवीदेवतांची स्तुती.
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श्रीअमरापुरक्षेत्रमाहात्म्यस्तोत्र - प्रयाग: संगम: ख्यत: काशिक...
स्तोत्र म्हणजेच देवीदेवतांची स्तुती.
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अमरूशतकम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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श्रीअङ्गारकाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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भल्लटशतकम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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नागराजकृत भावशतकम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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नीतिशतकम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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योगशतकम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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ककारादिकालीशतनामस्तोत्रम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
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परमेश्वरस्तुतिसारस्तोत्रम् - त्वमेकः शुद्धोऽसि त्वयि न...
देवी देवतांची स्तुति केल्यास, ते प्रसन्न होऊन इच्छित फल प्राप्त होते.
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अक्रूरस्तुति - नतोऽस्म्यहं त्वाखिलहेतुहे...
देवी देवतांची स्तुति केल्यास, ते प्रसन्न होऊन इच्छित फल प्राप्त होते.
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श्रीशारदास्तुतिसप्तम् - या माता दुहिता महाजलनिधेर...
देवी देवतांची स्तुति केल्यास, ते प्रसन्न होऊन इच्छित फल प्राप्त होते.
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देवीसूक्तम् - ऋग्वेद-संहिताः ( मण्डलम् ...
सूक्त चे चार भेद आहेत- देवता, ऋषि, छन्द आणि अर्थ.
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प्रथमोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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ब्रह्मसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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द्वितीयोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीशिवसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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तृतीयोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीविष्णुसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीलक्ष्मीसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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चतुर्थोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीरामसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीसीतासूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीहनुमत्सूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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पञ्चमोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीकृष्णसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीनन्दादिगोपसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीयशोदासूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीवृन्दावनसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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षष्ठोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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श्रीहरिहरसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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सूर्यसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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गङगासूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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यमुनासूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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गणेशसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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सरस्वतीसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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सप्तमोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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धर्मंसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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स्त्रीधर्माः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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नीतिसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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अष्टमोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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सत्सङगसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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विवेकसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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वैराग्यसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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नवमोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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भक्तिसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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प्रेमसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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साधुसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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ज्ञानिसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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गुरुसूक्तिः
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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दशमोल्लास
भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।
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