संस्कृत सूची|शास्त्रः|वास्तुशास्त्रः|समराङ्गणसूत्रधार| समराङ्गणसूत्रधार समराङ्गणसूत्रधार ८३ अध्यायांची नांवे महासमागमनो नाम प्रथमोऽध्यायः पुत्रसंवादो नाम द्वितीयोऽध्यायः प्रश्नो नाम तृतीयोऽध्यायः महदादिसर्गश्चतुर्थोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०५ सहदेवाधिकारो नाम षष्ठोऽध्यायः वर्णाश्रमप्रविभागो नाम सप्तमोऽध्यायः भूमिपरीक्षा नामाष्टमोऽध्यायः हस्तलक्षणं नाम नवमोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १४८ वास्तुत्रयविभागो नामैकादशोऽध्यायः नाड्यादिसिरादिविकल्पो नाम द्वादशोऽध्यायः मर्मवेधस्त्रयोदशोऽध्यायः पुरुषाङ्गदेवतानिघण्ट्वादिनिर्णयश्चतुर्दशोऽध्यायः राजनिवेशो नाम पञ्चदशोऽध्यायः वनप्रवेशो नाम षोडशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २१२ नगरादिसंज्ञा नामाष्टादशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०० २०१ ते २२४ निम्नोच्चादिफलानि नाम विंशोऽध्यायः द्वासप्ततित्रिशाललक्षणं नामैकविंशोऽध्यायः द्विशालगृहलक्षणं नाम द्वाविंशोध्यायः एकशालालक्षणफलादि नाम त्रयोविंशोऽध्यायः द्वारपीठभित्तिमानादिकं नाम चतुर्विंशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते १६४ १ ते ५० ५१ ते ८० सभाष्टकं नाम सप्तविंशोऽध्यायः गृहद्र व्यप्रमाणानि नामाष्टाविंशोऽध्यायः शयनासनलक्षणं नाम एकोनत्रिंशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १४० १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०० २०१ ते २२३ गजशाला नाम द्वात्रिंशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते ७९ अथाप्रयोज्यप्रयोज्यं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः शिलान्यासविधिर्नाम पञ्चत्रिंशोऽध्यायः बलिदानविधिर्नाम षट्त्रिंशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते ८१ वास्तुसंस्थानमातृका नामाष्टात्रिंशोऽध्यायः द्वारगुणदोषो नामैकोनचत्वारिंशोऽध्यायः पीठमानं नाम चत्वारिंशोऽध्यायः चयविधिर्नामैकचत्वारिंशोऽध्यायः शान्तिकर्मविधिर्नाम द्विचत्वारिंशोऽध्यायः द्वारभङ्गफलं नाम त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः स्थपतिलक्षणं नाम चतुश्चत्वारिंशोऽध्यायः अष्टङ्गलक्षणं नाम पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः तोरणभङ्गादिशान्तिको नाम षट्चत्वारिंशोऽध्यायः वेदीलक्षणं नाम सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १४० १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०३ प्रासादशुभाशुभलक्षणं नाम पञ्चाशोऽध्यायः अथायतननिवेशो नामैकपञ्चाशोऽध्यायः प्रासादजातिर्नाम द्विपञ्चाशोऽध्यायः जघन्यवास्तुद्वारं नाम त्रिपञ्चाशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १२३ १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १६० १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०० २०१ ते २५० २५१ ते ३१२ १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २१० मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः प्रासादस्तवनं नाम अष्टपञ्चाशोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०० २०१ ते २४५ १ ते ५० ५१ ते ९९ पीठपञ्चकलक्षणं नामैकषष्टितमोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २२० १ ते ५० ५१ ते ११७ १ ते ५० ५१ ते १२० १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०१ मण्डपलक्षणं नाम षट्षष्टितमोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते ११४ जगत्यङ्गसमुदायाधिकारो नामाष्टषष्टितमोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २२० १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५७ चित्रोद्देशो नामैकसप्ततितमोऽध्यायः भूमिबन्धो नाम द्विसप्ततितमोऽध्यायः लेप्यकर्मादिकं नाम त्रिसप्ततितमोऽध्यायः अथाण्डकप्रमाणं नाम चतुःसप्ततितमोऽध्यायः मानोत्पत्तिर्नाम पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः प्रतिमालक्षणं नाम षट्सप्ततितमोऽध्यायः देवादिरूपप्रहरणसंयोगलक्षणं नाम सप्तसप्ततितमोऽध्यायः दोषगुणनिरूपणं नामाष्टसप्ततितमोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १५१ ते १७० वैष्णवादिस्थानकलक्षणं नामाशीतितमोऽध्यायः पञ्चपुरुषस्त्रीलक्षणं नामैकाशीतितमोऽध्यायः रसदृष्टिलक्षणं नाम द्व्यशीतितमोऽध्यायः १ ते ५० ५१ ते १०० १०१ ते १५० १५१ ते २०० २०१ ते २५४ समराङ्गणसूत्रधार समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. Tags : bhojsamarangansanskritvastu shastraभोजवास्तुशास्त्रसंस्कृतसमराङ्गणसूत्रधार | Show All समराङ्गणसूत्रधार - ८३ अध्यायांची नांवे style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. महासमागमनो नाम प्रथमोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. पुत्रसंवादो नाम द्वितीयोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language N/Aसमराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. प्रश्नो नाम तृतीयोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. महदादिसर्गश्चतुर्थोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. भुवनकोशः पञ्चमोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. भुवनकोशः पञ्चमोऽध्यायः - ५१ ते १०५ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. सहदेवाधिकारो नाम षष्ठोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. वर्णाश्रमप्रविभागो नाम सप्तमोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार हा भारतीय वास्तुशास्त्र सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ आहे, ज्याची रचना धार राज्याचे परमार राजा भोज (1000–1055 इ.स.) यांनी केली होती. भूमिपरीक्षा नामाष्टमोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। हस्तलक्षणं नाम नवमोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। पुरनिवेशो दशमोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। पुरनिवेशो दशमोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। पुरनिवेशो दशमोऽध्यायः - १०१ ते १४८ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। वास्तुत्रयविभागो नामैकादशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। नाड्यादिसिरादिविकल्पो नाम द्वादशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मर्मवेधस्त्रयोदशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। पुरुषाङ्गदेवतानिघण्ट्वादिनिर्णयश्चतुर्दशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। राजनिवेशो नाम पञ्चदशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। वनप्रवेशो नाम षोडशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। इन्द्र ध्वजनिरूपणं नाम सप्तदशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। इन्द्र ध्वजनिरूपणं नाम सप्तदशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। इन्द्र ध्वजनिरूपणं नाम सप्तदशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। इन्द्र ध्वजनिरूपणं नाम सप्तदशोऽध्यायः - १५१ ते २१२ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। नगरादिसंज्ञा नामाष्टादशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। चतुःशालविधानं नामैकोनविंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। चतुःशालविधानं नामैकोनविंशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। चतुःशालविधानं नामैकोनविंशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। चतुःशालविधानं नामैकोनविंशोऽध्यायः - १५१ ते २०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। चतुःशालविधानं नामैकोनविंशोऽध्यायः - २०१ ते २२४ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। निम्नोच्चादिफलानि नाम विंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। द्वासप्ततित्रिशाललक्षणं नामैकविंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। द्विशालगृहलक्षणं नाम द्वाविंशोध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। एकशालालक्षणफलादि नाम त्रयोविंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। द्वारपीठभित्तिमानादिकं नाम चतुर्विंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। समस्तगृहाणां सङ्ख्याकथनं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। समस्तगृहाणां सङ्ख्याकथनं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। समस्तगृहाणां सङ्ख्याकथनं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। समस्तगृहाणां सङ्ख्याकथनं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः - १५१ ते १६४ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। आयादिनिर्णयो नाम षड्विंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। आयादिनिर्णयो नाम षड्विंशोऽध्यायः - ५१ ते ८० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। सभाष्टकं नाम सप्तविंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। गृहद्र व्यप्रमाणानि नामाष्टाविंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। शयनासनलक्षणं नाम एकोनत्रिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। राजगृहं नाम त्रिंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। राजगृहं नाम त्रिंशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। राजगृहं नाम त्रिंशोऽध्यायः - १०१ ते १४० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। यन्त्रविधानं नामैकत्रिंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। यन्त्रविधानं नामैकत्रिंशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। यन्त्रविधानं नामैकत्रिंशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। यन्त्रविधानं नामैकत्रिंशोऽध्यायः - १५१ ते २०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। यन्त्रविधानं नामैकत्रिंशोऽध्यायः - २०१ ते २२३ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। गजशाला नाम द्वात्रिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। अथाश्वशाला नाम त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। अथाश्वशाला नाम त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः - ५१ ते ७९ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। अथाप्रयोज्यप्रयोज्यं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। शिलान्यासविधिर्नाम पञ्चत्रिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। बलिदानविधिर्नाम षट्त्रिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। कीलकसूत्रपातो नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। कीलकसूत्रपातो नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायः - ५१ ते ८१ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। वास्तुसंस्थानमातृका नामाष्टात्रिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। द्वारगुणदोषो नामैकोनचत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। पीठमानं नाम चत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। चयविधिर्नामैकचत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। शान्तिकर्मविधिर्नाम द्विचत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। द्वारभङ्गफलं नाम त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। स्थपतिलक्षणं नाम चतुश्चत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। अष्टङ्गलक्षणं नाम पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। तोरणभङ्गादिशान्तिको नाम षट्चत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। वेदीलक्षणं नाम सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। गृहदोषनिरूपणं नामाष्टचत्वारिंशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। गृहदोषनिरूपणं नामाष्टचत्वारिंशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। गृहदोषनिरूपणं नामाष्टचत्वारिंशोऽध्यायः - १०१ ते १४० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिप्रासादलक्षणं नामैकोनपञ्चाशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिप्रासादलक्षणं नामैकोनपञ्चाशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिप्रासादलक्षणं नामैकोनपञ्चाशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिप्रासादलक्षणं नामैकोनपञ्चाशोऽध्यायः - १५१ ते २०३ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। प्रासादशुभाशुभलक्षणं नाम पञ्चाशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। अथायतननिवेशो नामैकपञ्चाशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। प्रासादजातिर्नाम द्विपञ्चाशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। जघन्यवास्तुद्वारं नाम त्रिपञ्चाशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। प्रासादद्वारमानादि नाम चतुष्पञ्चाशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। प्रासादद्वारमानादि नाम चतुष्पञ्चाशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। प्रासादद्वारमानादि नाम चतुष्पञ्चाशोऽध्यायः - १०१ ते १२३ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिषोडशप्रासादादिलक्षणं नाम पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिषोडशप्रासादादिलक्षणं नाम पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिषोडशप्रासादादिलक्षणं नाम पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः - १०१ ते १६० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिचतुष्षष्टिप्रासादकः षट्पञ्चाशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिचतुष्षष्टिप्रासादकः षट्पञ्चाशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिचतुष्षष्टिप्रासादकः षट्पञ्चाशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिचतुष्षष्टिप्रासादकः षट्पञ्चाशोऽध्यायः - १५१ ते २०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिचतुष्षष्टिप्रासादकः षट्पञ्चाशोऽध्यायः - २०१ ते २५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। रुचकादिचतुष्षष्टिप्रासादकः षट्पञ्चाशोऽध्यायः - २५१ ते ३१२ style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः - १०१ ते १५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः - १५१ ते २१० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। मेर्वादिविंशिका नाम सप्तपञ्चाशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। प्रासादस्तवनं नाम अष्टपञ्चाशोऽध्यायः style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। विमानादिचतुष्षष्टिप्रासादलक्षणं नामैकोनषष्टितमोऽध्यायः - १ ते ५० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। विमानादिचतुष्षष्टिप्रासादलक्षणं नामैकोनषष्टितमोऽध्यायः - ५१ ते १०० style PAGE | trending_up 1 | language समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी। | Show All Folder Page Word/Phrase Person References : N/A Last Updated : November 26, 2017 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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