संस्कृत सूची|पूजा विधीः|प्रतिष्ठारत्नम्|
कौतुकसूत्र बंधन

कौतुकसूत्र बंधन

सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.


कौतुकसूत्र बंधन :-- देवकी चिरकाल रक्षा हेतु (जितनी प्रतिमाहो उतने) श्वेत उन का धागा (ऊर्णासूत्र) वितस्ति मात्र वा प्रतिमा के दक्षिण हस्त को बोंध सके उतना लंबा लेकर हरिद्रा सर्वौषधि लगाकर उसे निम्न मंत्रों से पवित्र करें - ॐ अग्निमीले० ॐ इषेत्वोर्जेत्वा० ॐ अग्न आया हि वीतये० ॐ शन्नोदेवी रभिष्टयण० ॐ राजन्तमद्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम्‌ । वर्धमान स्वेदमे ॥ ॐ सन: पितेव सूनवेग्ने सूपायनो भव । सचस्वान: स्वस्तये ॥ ॐ आपोहिष्ठा० यो व: शिवतमो० तस्माअरंग० ॐ स्वादिष्टया मदिष्ठया पवस्व सोमधारया । इन्द्राय पातवे सुत: ॥ ॐ रक्षोहा विश्वचर्षणि० ॐ कृणुष्वपाज:० (पृष्ठ - ३९) ॐ सहस्रशीर्षा० (पुरुषसूक्तम्‌ ) ॐ विष्णोर्नुकं वीर्याणि प्रवोचं य: पार्थिर्वानि विममे र जा सि । यो  अस्कभायदुत्तर सधस्थं विचक्रमाणस्त्रेधोरुगायो विष्णवे त्वा ॥ ॐ इरावती धेनुमती हि भूत सूयवसिनी मनवे दशस्या । व्यस्कभ्ना रोदसी विष्णवे ते दाधर्थ पृथिवीमभितो मयूखै: स्वाहा ॥ ॐ हिरण्यवर्णां० (श्रीसूक्तम्‌) ॐ यज्जाग्रतो० (शिवसंकल्पसूक्तम्‌) ॐ आयुष्यंवर्चस्य० ॐ नतद्रक्षा सि० ॐ द्रविणोदा: पिपीषति जुहोत प्रचतिष्ठत । नेष्टाद्रतु भिरिष्यत ॥ इंनमंत्रों से
सूत्रको अभिमंत्रित कर के गंध लगाकर ॐ यदाबध्नन्‌० मंत्र से देवता के दाहिने हाथमें बाँधे ।
जलाधिवास के लिये बडे पात्र में जल में सुवासित पदार्थ डालकर २८ दर्भ का कूर्च रखकर रक्षोघ्न मंत्रों से से (अपसर्पन्तु०) सर्षप से भूतशुद्धि पश्चात कूर्च में भगवान हरि अथवा शिव की भावना करते हुए चक्रमुद्रा करें । जलपात्र के दक्षिण में धान्यराशि में वस्र सहित कलश एवं करक स्थापित करें । कलश में - ॐ ब्रम्हाणे नम: करक में ॐ सुदर्शनाय नम: - से आवाहन एवं पूजन करें ।

संकल्प :---  प्रतिष्ठांगत्वेन वरुणप्रीतये जलमातृ जीवमातृ क्षेत्रपाल वरुणपूजनं करिष्ये । जले जलमातृ आवाहनम्‌ - ॐ भू०मत्स्यै० ॐ भू०कूर्म्यै० ॐ भू०वाराहयै० ॐ भू०दर्दूर्यै ॐ भू०मकर्यै० ॐ भू०जलूक्यै० ॐ भू०जलूक्यै० ॐ भू०तंतुक्यै० कटाहभित्तौ (जलपात्र के उपर) वा अक्षतर्पुंजेष - जीवमातृ आवाहनम्‌ - ॐ भू०कुमार्यै० ॐ भू०धनदायै० ॐ भू०नंदायै० ॐ भू०विमलायै० ॐ भू०मंगलायै० ॐ भू०अचलायै० ॐ भू०पद्‌मायै ॥ जले चतु:षष्टियोगिनीभ्यो नम: । वायव्यां क्षेत्रपालाय नम: ॐ नहि स्पशमवि० बलिं समर्प्य । जले ॐ भू० क्षीरादि सप्तसागरेभ्यो नम: ॐ नहि स्पशमवि० बलिं समर्प्य । जले ॐ भू० क्षीरादि सप्तसागरेभ्यो नम:० ॐ भू०मानसादिसरोभ्यो नम:० ॐ भू० पुष्करादि तीर्थेभ्यो नम:० ॐ भू०गंगादि नदीभ्यो नम: जले गंधं पुष्पं  अक्षतान्‌ समर्पयेत्‌ । जले वरुणं पंचोपचारै: पूजयेत्‌ । पंचामृतं जले क्षिपेत्‌ । जलपात्र की चारों और सर्षप फेंकें । जलपात्र की चारों और अष्ट कलश में इन्द्र आदि दिक्पालों का स्थापन एवं दीपक रखें । जलपात्र में शमीकाष्ठ के पीठ पर वस्त्र बिछाकर प्रतिमा को कुश से सुरक्षित कर जलमें रखें । विशाल प्रतिमा हो तो जलधारा करें । जलाधिवास एक दिन अथवा कालानुसार करें । जलाधिवास समय पठनीय सूक्त -

पुरुषसूक्त रक्षोघ्नसूक्त अघोरमंत्रजप रुद्रमंत्रजप प्रतिमा देवता मंत्र जप ।

संकल्प :--- अनेन जलाधिवासेन आसां. प्रतिमानां सकलदोष निवृत्ति: अर्चाशुद्धि: तेन भगवान्‌ परमेश्वर: प्रीयताम्‌ न मम ।

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Last Updated : May 24, 2018

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