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कारकून
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक पहिला
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक दुसरा
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक तिसरा
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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घरातून चालते व्हायचे ! पण कोणी ?
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक पहिला
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक दुसरा
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक तिसरा
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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आय. सी. एस.
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक पहिला
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक दुसरा
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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अंक तिसरा
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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नाटके
नाट्यछटा हा साहित्यप्रकार मराठीत प्रथम ‘ दिवाकर ‘ यांनीच आणला. त्यांचे संपूर्ण नांव - शंकर काशीनाथ गर्गे
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संगीत तुरुंगाच्या दारात
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सोन्याचा कळस
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत भूमिकन्या सीता
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत संत तुकाराम
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत द्रौपदी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सावित्री
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत मेनका
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत महानंदा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत चित्रवंचना
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत उग्रमंगल
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत पुण्यप्रभाव
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत भावबंधन
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत एकच प्याला
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत राजसंन्यास
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत प्रेमसंन्यास
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत आत्मतेज
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत शहा शिवाजी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत आशा निराशा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत शिक्काकटयार
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत नेकजात मराठा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत पट वर्धन
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत तुलसीदास
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत वरवंचना
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत नंदकुमार
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सत्याग्रह
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सिंहाचा छावा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सौभाग्यलक्ष्मी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत साध्वी मिराबाई
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत राक्षसी महत्त्वाकांक्षा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत रणदुंदुभि
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत कृष्णार्जुन युद्ध
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत श्री
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सज्जन
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत युगांतर
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत संन्यस्तखड्ग
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत संत कान्होपात्रा
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संगीत विधिलिखित
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत अमृतसिद्धी
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संगीत उद्याचा संसार
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संगीत लग्नाची बेडी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत वंदे भारतम्
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संगीत जग काय म्हणेल ?
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत पाणिग्रहण
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संगीत प्रीतिसंगम
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संगीत अशी बायको हवी !
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत आंधळ्यांची शाळा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत ब्रह्मकुमारी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत आशीर्वाद
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत कुलवधू
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत अलंकार
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत वहिनी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत तुझं नी माझं जमेना
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत एक होता म्हातारा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत कोणे एके काळी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत देवमाणूस
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संगीत अर्ध्या वाटेवर
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत देहूरोड
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत सुवर्णतुला
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत पंडितराज जगन्नाथ
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत मंदारमाला
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत मदनाची मंजिरी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत जयजय गौरीशंकर
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संगीत मेघमल्हार
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत स्वरसम्राज्ञी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत भक्त दामाजी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत मत्स्यगंधा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत मीरा मधुरा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत घनशाम नयनी आला
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत कटयार काळजात घुसली
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत ययाती देवयानी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत दुरिताचे तिमिर जावो
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत देव दीनाघरी धावला
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत वाहतो ही दुर्वांची जुडी
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत होनाजी बाळा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत धन्य ते गायनी कळा
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत रंगात रंगला श्रीरंग
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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संगीत हे बंध रेशमाचे
मराठी संगीत नाटक ही मराठी रंगभूमीला रामप्रहरी पडलेले एक सुखद स्वप्न होय.
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दमयंती परित्याग - अंक पहिला
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक पहिला - प्रवेश पहिला
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक पहिला - प्रवेश दुसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक पहिला - प्रवेश तिसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक पहिला - प्रवेश चवथा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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दमयंती परित्याग - अंक दुसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक दुसरा - प्रवेश पहिला
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक दुसरा - प्रवेश दुसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक दुसरा - प्रवेश तिसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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दमयंती परित्याग - अंक तिसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक तिसरा - प्रवेश पहिला
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक तिसरा - प्रवेश दुसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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अंक तिसरा - प्रवेश तिसरा
डॉ . पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे
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संगीत दमयंती परित्याग
डॉ. पद्माकर विष्णु वर्तक यांनी प्रस्तुत संगीत नाटकात नल दमयंतीची उत्कट प्रेमकथा अतिशय छान फुलवली आहे.
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दुर्गा नाटक - अंक पहिला
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पहिला - प्रवेश १ ला
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पहिला - प्रवेश २ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पहिला - प्रवेश ३ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पहिला - प्रवेश ४ था
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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दुर्गा नाटक - अंक दुसरा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक दुसरा - प्रवेश १ ला
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक दुसरा - प्रवेश २ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक दुसरा - प्रवेश ३ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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दुर्गा नाटक - अंक तिसरा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक तिसरा - प्रवेश १ ला
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक तिसरा - प्रवेश २ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक तिसरा - प्रवेश ३ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक तिसरा - प्रवेश ४ था
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक तिसरा - प्रवेश ५ वा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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दुर्गा नाटक - अंक चवथा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक चवथा - प्रवेश १ ला
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक चवथा - प्रवेश २ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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दुर्गा नाटक - अंक पाचवा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पाचवा - प्रवेश १ ला
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पाचवा - प्रवेश २ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पाचवा - प्रवेश ३ रा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पाचवा - प्रवेश ४ था
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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अंक पाचवा - प्रवेश ५ वा
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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दुर्गा नाटक
एका इंग्रजी नाटकाच्या आधारानें कै. रा. रा. गोविंद बल्लाळ देवल यांनी हे नाटक रचिलें
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दुर्गा नाटक - प्रस्तावना
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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एकच प्याला - अंक पहिला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पहिला - प्रवेश पहिला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पहिला - प्रवेश दुसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पहिला - प्रवेश तिसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पहिला - प्रवेश चवथा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पहिला - प्रवेश पांचवा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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एकच प्याला - अंक दुसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक दुसरा - प्रवेश पहिला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक दुसरा - प्रवेश दुसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक दुसरा - प्रवेश तिसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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एकच प्याला - अंक तिसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक तिसरा - प्रवेश पहिला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक तिसरा - प्रवेश दुसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक तिसरा - प्रवेश तिसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक तिसरा - प्रवेश चवथा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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एकच प्याला - अंक चवथा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक चवथा - प्रवेश पहिला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक चवथा - प्रवेश दुसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक चवथा - प्रवेश तिसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक चवथा - प्रवेश चवथा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक चवथा - प्रवेश पांचवा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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एकच प्याला - अंक पांचवा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पांचवा - प्रवेश पहिला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पांचवा - प्रवेश दुसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पांचवा - प्रवेश तिसरा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पांचवा - प्रवेश चवथा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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अंक पांचवा - प्रवेश पांचवा
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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राम गणॆश गडकरी - एकच प्याला
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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एकच प्याला - मंगलाचरण
मद्यपान व त्याचे दुष्परिणाम या ज्वलंत विषयावर असलेले हे नाटक गडकर्यांनी इ.स. १९१७ सालाच्या सुमारास लिहिले.
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वेड्यांचा बाजार - अंक पहिला
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक पहिला - प्रवेश पहिला
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक पहिला - प्रवेश दुसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक पहिला - प्रवेश तिसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक पहिला - प्रवेश चवथा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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वेड्यांचा बाजार - अंक दुसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक दुसरा - प्रवेश पहिला
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक दुसरा - प्रवेश दुसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक दुसरा - प्रवेश तिसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक दुसरा - प्रवेश चवथा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक दुसरा - प्रवेश पांचवा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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वेड्यांचा बाजार - अंक तिसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक तिसरा - प्रवेश पहिला
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक तिसरा - प्रवेश दुसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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अंक तिसरा - प्रवेश तिसरा
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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वेड्यांचा बाजार
गडकर्यांची नाटके मराठी भाषेचे कायमचे अलंकार बनलेले आहेत, आपली नाटके वाङ्मयदृष्ट्या वरच्या दर्जाची व्हावी याची त्यांनी फार खबरदारी घेतली होती.
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नाटक
नाटक लिहिणे किंवा रंगभूमीवर सादर करणे म्हणजे अवघड कला आहे, शिवाय त्यातील अभिनय जिवंत असावा लागतो.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक पहिला
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग १ ला
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग २ रा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ३ रा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ४ था
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ५ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ६ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ८ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ९ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग १० वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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अंक पहिला - भाग ११ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक पहिला - भाग १२ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक पहिला - भाग १३ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक पहिला - भाग १४ वा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक दुसरा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक दुसरा - प्रवेश पहिला
गोविंद.बल्ल्लाळ.देवल,drama,govind.ballal.deval,marathi,mrucchakatik,नाटक,मृच्छ्कटिक,मराठी,साहित्य,
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अंक दुसरा - प्रवेश दुसरा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक दुसरा - प्रवेश तिसरा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक तिसरा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक तिसरा - प्रवेश १ ला
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक तिसरा - प्रवेश २ रा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक चवथा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक चवथा - प्रवेश १ ला
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक पाचवा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक पाचवा - प्रवेश पहिला
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक पाचवा - प्रवेश दुसरा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक सहावा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक सहावा - न्यायसभा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक - अंक सातवा
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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अंक सातवा - शेवटचा अंक
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.
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संगीत मृच्छकटिक
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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संगीत मृच्छकटिक - प्रस्तावना
नाट्याचार्य देवलांच्या ’ संगीत मृच्छकटिक ’ ह्या नाटकाचा पहिला प्रयोग सन १८८७ सालीं ’ ललितकलोत्सव मंडळी ’ नें, पुणें येथें आनंदोद्भव नाट्यगृहांत केला.’
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पंडितराज जगन्नाथ - अंक पहिला
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक पहिला - प्रवेश पहिला
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक पहिला - प्रवेश दुसरा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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पंडितराज जगन्नाथ - अंक दुसरा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक दुसरा - प्रवेश पहिला
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक दुसरा - प्रवेश दुसरा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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पंडितराज जगन्नाथ - अंक तीसरा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक तीसरा - प्रवेश पहिला
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक तीसरा - प्रवेश दुसरा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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पंडितराज जगन्नाथ - अंक चवथा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक चवथा - प्रवेश पहिला
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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अंक चवथा - प्रवेश दुसरा
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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पंडितराज जगन्नाथ
‘पंडितराज जगन्नाथ’या नाटकावा नायक महान् संस्कृत कवि आणि विख्यात साहित्य-शास्त्र-पंडित जगन्नाथ हा आहे. यातील ‘गंगालहरी’ स्तोत्र आजही घरोघरी वाचले जाते.
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संगीत संशय कल्लोळ - अंक पहिला
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पहिला - प्रवेश पहिला
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पहिला - प्रवेश दुसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पहिला - प्रवेश तिसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पहिला - प्रवेश चवथा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पहिला - प्रवेश पाचवा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत संशय कल्लोळ - अंक दुसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक दुसरा - प्रवेश पहिला
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक दुसरा - प्रवेश दुसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक दुसरा - प्रवेश तिसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत संशय कल्लोळ - अंक तिसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक तिसरा - प्रवेश पहिला
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक तिसरा - प्रवेश दुसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक तिसरा - प्रवेश तिसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत संशय कल्लोळ - अंक चवथा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक चवथा - प्रवेश पहिला
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक चवथा - प्रवेश दुसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक चवथा - प्रवेश तिसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक चवथा - प्रवेश चवथा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत संशय कल्लोळ - अंक पाचवा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पाचवा - प्रवेश पहिला
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पाचवा - प्रवेश दुसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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अंक पाचवा - प्रवेश तिसरा
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत संशय कल्लोळ
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत संशय कल्लोळ - प्रस्तावना
संशय - कल्लोळ नाटकांचा पहिला प्रयोग, गंधर्व नाटक मंडळींनी सन १९१६ च्या नोव्हेंबर महिन्यांत पुणें मुक्कामीं केला.
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संगीत शारदा
संगीत शारदा या नाटकाची लोकप्रियता एवढी होती की ‘संमती कायदा‘ याचे नाव ‘शारदा कायदा‘ असे पडले. जरठ-कुमारी विवाहा हा नाटकाचा प्रमुख विषय आहे.
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संगीत शारदा - अंक पहिला
संगीत शारदा या नाटकाची लोकप्रियता एवढी होती की ‘संमती कायदा‘ याचे नाव ‘शारदा कायदा‘ असे पडले. जरठ-कुमारी विवाहा हा नाटकाचा प्रमुख विषय आहे.
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संगीत शारदा - अंक दुसरा
संगीत शारदा या नाटकाची लोकप्रियता एवढी होती की ‘संमती कायदा‘ याचे नाव ‘शारदा कायदा‘ असे पडले. जरठ-कुमारी विवाहा हा नाटकाचा प्रमुख विषय आहे.
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संगीत शारदा - अंक तिसरा
संगीत शारदा या नाटकाची लोकप्रियता एवढी होती की ‘संमती कायदा‘ याचे नाव ‘शारदा कायदा‘ असे पडले. जरठ-कुमारी विवाहा हा नाटकाचा प्रमुख विषय आहे.
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संगीत शारदा - अंक चवथा
संगीत शारदा या नाटकाची लोकप्रियता एवढी होती की ‘संमती कायदा‘ याचे नाव ‘शारदा कायदा‘ असे पडले. जरठ-कुमारी विवाहा हा नाटकाचा प्रमुख विषय आहे.
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संगीत शारदा - अंक पांचवा
संगीत शारदा या नाटकाची लोकप्रियता एवढी होती की ‘संमती कायदा‘ याचे नाव ‘शारदा कायदा‘ असे पडले. जरठ-कुमारी विवाहा हा नाटकाचा प्रमुख विषय आहे.
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तृतीय रत्न
ब्राह्मण पूर्वी तळागाळातील लोकांना भिववून कसा गैरफायदा घेत याविषयीं हे नाटक लिहून महात्मा फुल्यांनी लोकजागर केला.
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वेगळं व्हायचंय मला
जुन्या जमान्यातील एक अतिशय गाजलेले नाटक.
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वेगळं व्हायचंय मला - अंक पहिला
जुन्या जमान्यातील एक अतिशय गाजलेले नाटक .
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वेगळं व्हायचंय मला - अंक दुसरा
जुन्या जमान्यातील एक अतिशय गाजलेले नाटक .
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वेगळं व्हायचंय मला - अंक तिसरा
जुन्या जमान्यातील एक अतिशय गाजलेले नाटक .
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संगीत विक्रमोर्वशीय
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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संगीत विक्रमोर्वशीय - अंक पहिला
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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संगीत विक्रमोर्वशीय - अंक दुसरा
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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संगीत विक्रमोर्वशीय - अंक तिसरा
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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संगीत विक्रमोर्वशीय - अंक चवथा
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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संगीत विक्रमोर्वशीय - अंक पाचवा
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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संगीत विक्रमोर्वशीय - प्रस्तावना
सन १८८९ साली ‘ संगीत विक्रमोर्वशीय ‘ नाटक प्रथम प्रसिद्ध झाले व प्रथम प्रयोग २१ नोव्हेंबर १९५५ रात्रौ ९-३० वा. झाला.
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रत्नावली
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - प्रथम अंक
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - द्वितीय अंक
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - तृतीय अंक
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - चतुर्थ अंक
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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मालतीमाधवम्
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - प्रथमोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - द्वितीयोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - तृतीयोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - चतुर्थोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - पञ्चमोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - षष्ठोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - सप्तमोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - अष्टमोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - नवमोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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मालतीमाधवम् - दशमोऽङ्कः ।
एतद् भवभूतिना लिखितं कल्पनारम्यनाटकं वर्तते।
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रत्नावली
‘रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - प्रथमोऽङकः
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - द्वितीयोऽङकः
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - तृतीयोऽङक्
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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रत्नावली - चतुर्थोङ्कः
‘ रत्नावली’ नाटकात हर्षाने प्राकृत भाषांपैकी शौरसेनीचा मुख्यत्वेंकरून उपयोग केला आहे.
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वेणीसंहारः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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वेणीसंहारः - प्रथमोऽङ्कः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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वेणीसंहारः - द्वितीयोऽङ्कः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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वेणीसंहारः - तृतीयोऽङ्कः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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वेणीसंहारः - चतुर्थोऽङ्कः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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वेणीसंहारः - पञ्चमोऽङ्कः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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वेणीसंहारः - षष्ठोऽङ्कः
भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं।
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