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विनयावली २९

विनय पत्रिका - विनयावली २९

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


बिरद गरीबनिवाज रामको ।

गावत बेद - पुरान, संभु - सुक, प्रगट प्रभाउ नामको ॥१॥

ध्रुव, प्रह्लाद, बिभीषन, कपिपति, जड़, पतंग, पांडव, सुदामको ।

लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमें को है राम कामको ॥२॥

गनिका, कोल, किरात, आदिकबि इन्हते अधिक बाम को ।

बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको ॥३॥

छली, मलीन, हीन सब ही अँग, तुलसी सो छीन छामको ।

नाम - नरेस - प्रताप प्रबल जग, जुग - जुग चालत चामको ॥४॥

भावार्थः- श्रीरामजीका बाना ही गरीबोंको निहाल कर देना है । वेद पुराण, शिवजी, शुकदेवजी आदि यही गाते हैं । उनके श्रीरामनामका प्रभाव तो प्रत्यक्ष ही है ॥१॥

ध्रुव, प्रह्लाद, विभीषण, सुग्रीव, जड ( अहल्या ), पक्षी ( जटायु, काकभुशुण्डि ), पाँचों पाण्डव और सुदामा इन सबको भगवानने इस लोकमें सुन्दर यश और परलोकमें सदगति दी । इनमेंसे रामके कामका भला कौन था ? ॥२॥

गणिका ( जीवन्ती ), कोल - किरात ( गुह - निषाद आदि ) तथा आदिकवि वाल्मीकि, इनसे बुरा कौन था ? अजामिलने कब अश्वमेधयज्ञ किया था, गजरानने कब सामदेवका गान किया था ? ॥३॥

तुलसीके समान कपटी, मलिन, सब साधनोंसे हीन, दुबला - पतला और कौन है ? पर श्रीरामके नामरुपी राजाके राज्यमें उसके प्रबल प्रतापसे युग - युगसे चमड़ेका सिक्का भी चलता आ रहा है अर्थात् नामके प्रतापसे अत्यन्त नीच भी परमात्माको प्राप्त करते रहे हैं, ऐसे ही मैं भी प्राप्त करुँगा ॥४॥

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Last Updated : September 11, 2009

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