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श्री विन्दुमाधव स्तुति

विनय पत्रिका - श्री विन्दुमाधव स्तुति

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


देव

सकल सुखकंद, आनंदवन - पुण्यकृत, बिंदुमाधव द्वंद्व - विपतिहारी ।

यस्यांघ्निपाथोज अज - शंभु - सनकादि - शुक - शेष - मुनिवृंद - अलि - निलयकारी ॥१॥

अमल मरकत श्याम, काम शतकोटि छवि, पीतपट तड़ित इव जलदनीलं ।

अरुण शतपत्र लोचन, विलोकनि चारु, प्रणतजन - सुखद, करुणार्द्रशीलं ॥२॥

काल - गजराज - मृगराज, दनुजेश - वन - दहन पावक, मोह - निशि - दिनेशं ।

चारिभुज चक्र - कौमोदकी - जलज - दर, सरसिजोपरि यथा राजहंसं ॥३॥

मुकुट, कुंडल, तिलक, अलक अलिव्रात इव, भृकुटि, द्विज, अधरवर, चारुनासा ।

रुचिर सुकपोल, दर ग्रीव सुखसीव, हरि, इंदुकर - कुंदमिव मधुरहासा ॥४॥

उरसि वनमाल सुविशाल नवमंजरी, भ्राज श्रीवत्स - लांछन उदारं ।

परम ब्रह्मन्य, अतिधन्य, गतमन्यु, अज, अमितबल, विपुल महिमा अपारं ॥५॥

हार - केयूर, कर कनक कंकन रतन - जटित मणि - मेखला कटिप्रदेशं ।

युगल पद नूपुरामुखर कलहंसवत, सुभग सर्वांग सौंदर्य वेशं ॥६॥

सकल सौभाग्य - संयुक्त त्रैलोक्य - श्री दक्षि दिशि रुचिर वारीश - कन्या ।

बसत विबुधापगा निकट तट सदनवर, नयन निरखंति नर तेऽति धन्या ॥७॥

अखिल मंगल - भवन, निबिड़ संशय - शमन दमन - वृजिनाटवी, कष्टहर्त्ता ।

विश्वधृत, विश्वहित, अजित, गोतीत, शिव, विश्वपालन, हरण, विश्वकर्त्ता ॥८॥

ज्ञान - विज्ञान - वैराग्य - ऐश्वर्य - निधि, सिद्धि अणिमादि दे भूरिदानं ।

ग्रसित - भव - व्याल अतित्रास तुलसीदास, त्राहि श्रीराम उरगारि - यानं ॥९॥

भावार्थः-- हे विन्दुमाधव ! आप सब सुखोंकी वर्षा करनेवाले मेघ हैं, आनन्दवन काशीको पवित्र करनेवाले हैं, रागद्वेषादि द्वन्द्वजनित विपत्तिको हरनेवाले हैं; आपके चरणकमलोंमें ब्रह्मा, शिव, सनक - सनन्दनादि, शुकदेवजी, शेषजी और अन्य मुनिजनरुपी भ्रमर सदा निवास किया करते हैं ॥१॥

आप निर्मल नीलमणिके समान श्यामरुप हैं, सौ करोड़ कामदेवोंके समान आपकी सुन्दरता है, पीताम्बर धारण किये हैं । वह पीताम्बर नीले बादलमें बिजलीके समान शोभित हो रहा है । आपके नेत्र लाल कमलके समान हैं, सुन्दर चितवन है, आप भक्तोंको सुख देनेवाले हैं और स्वभावसे ही करुणारससे भीगे रहते हैं ॥२॥

आप कालरुपी हाथीको मारनेके लिये सिंह, राक्षसरुपी वनके जलानेके लिये अग्नि और मोहरुपी रात्रिके नाश करनेके लिये सूर्यरुप हैं । चारों भुजाओंमें शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हैं । आपके हाथमें श्वेत शंख, कमलके ऊपर बैठे हुए राजहंसके समान शोभित हो रहा है ॥३॥

मस्तकपर मुकुट, कानोंमें कुण्डल, भालपर तिलक, भ्रमरसमूहके समान काली अलकें, टेढ़ी भ्रुकुटी, सुन्दर दाँत, होठ और नासिका बड़ी ही सुन्दर हैं । सुन्दर कपोल और शंखके समान ग्रीवा मानो सब सुखकी सीमा है ॥४॥

आपके हदयपर नयी मंजरियोंसहित विशाल वनमाला और सुन्दर श्रीवत्सका चिहन शोभायमान हो रहा है । आप ब्राह्मणोंका बहुत आदर करनेवाले हैं, तथा क्रोधरहित, अजन्मा, अपरिमित पराक्रमी महान् महिमावाले और अनन्त हैं । आपको धन्य है, धन्य है ॥५॥

आप हदयपर हार, भुजाओंपर सोनेके बाजूबंद, हाथोंमें रत्नजड़ित कंकण और कटिदेशमें मणियोंकी तागड़ी धारण किये हैं । दोनो चरणोंमें हंसके समान सुन्दर शब्द करनेवाले नूपुर पहिने हैं । आपके समस्त अंग सुन्दर और आपका सारा ही वेष सुन्दरतामय है ॥६॥

समस्त सौभाग्यमती तीनों लोकोंकी शोभा समुद्र - कन्या श्रीलक्ष्मीजी आपके दक्षिणभागमें विराजमान हैं । आप गंगाजीके समीप सुन्दर मन्दिरमें निवास करते हैं; जो मनुष्य नेत्रोंसे आपका दर्शन करते हैं, वे अत्यन्त धन्य हैं ॥७॥

आप सब कल्याणोंके स्थान, कठिन - कठिन सन्देहोंके नाश करनेवाले, पापरुपी वनको भस्म करनेवाले और कष्टोंके हरनेवाले हैं । आप विश्वको धारण करनेवाले, विश्वके हितकारी, अजेय, मन - इन्द्रियोंसे परे, कल्याणरुप और विश्वका सृजन, पालन तथा संहार करनेवाले हैं ॥८॥

आप ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्यके भण्डार हैं, अणिमादि महान् सिद्धियोंके देनेवाले बड़े दानी हैं । मुझ तुलसीदासको संसाररुपी सर्प निगले जा रहा है, इससे मैं अत्यन्त भयभीत हूँ, अतएव हे सर्पोंके नाशक गरुड़की सवारी करनेवाले श्रीरामजी ! कृपा करके मुझे बचा लीजिये ॥९॥

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Last Updated : August 25, 2009

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