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यमुना स्तुति

विनय पत्रिका - यमुना स्तुति

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राग बिलावल

जमुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न ।

त्यों त्यों सुकृत - सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न ॥१॥

ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न ।

तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न ॥२॥

भावार्थः-- यमुनाजी ज्यों - ज्यों बढ़ने लगीं, त्यों - त्यों पुण्यरुपी योद्धागण कलियुगरुपी राजाकी निरादर करते हुए उसे निकालने लगे ॥१॥

बरसातमें यमुनाजीका जल बढ़कर ज्यों - ज्यों मैला होने लगा, त्यों - त्यों यमदूतोंका मुख भी काला होता गया । अन्तमें उन्हें कोई भी आसरा नहीं रहा, अब वे किसको यमलोकमें ले जायँ ? तुलसीदास कहते हैं यमुनाजीके बढ़ते ही पुण्यरुपी मेघने संसारके पापरुपी जवासेको जलाकर भस्म कर डाला ॥२॥

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Last Updated : August 19, 2009

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