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विनयावली ६

विनय पत्रिका - विनयावली ६

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


रामको गुलाम, नाम रामबोला राख्यौ राम,

काम यहै, नाम द्वै हौं कबहूँ कहत हौं ।

रोटी - लूगा नीके राखै, आगेहूकी बेद भाखै,

भलो ह्वैहै तेरो, ताते आनँद लहत हौं ॥१॥

बाँध्यौ हौं करम जड़ गरब गूढ़ निगड़,

सुनत दुसह हौं तौ साँसति सहत हौं ।

आरत - अनाथ - नाथ, कौसलपाल कृपाल,

लीन्हों छीन दीन देख्यो दुरित दहत हौं ॥२॥

बूझ्यौ ज्यौं ही, कह्यो, मैं हूँ चेरो ह्वैहौ रावरो जू

मेरो कोऊ कहूँ नाहिं, चरण गहत हौं ।

मींजो गुरु पीठ, अपनाइ गहि बाँह, बोलि

सेवक - सुखद, सदा बिरत बहत हौं ॥३॥

लोग कहैं पोच, सो न सोच न सँकोच मेरे

ब्याह न बरेखी, जाति - पाँति न चहत हौं ।

तुलसी अकाज - काज राम ही के रीझे - खीझे,

प्रीतिकी प्रतीति मन मुदित रहत हौं ॥४॥

भावार्थः-- मैं श्रीरामजीका गुलाम हूँ । लोग मुझे ' रामबोला ' कहने लगे हैं । काम यही करता हूँ कि कभी - कभी दो - चार बार राम - नाम कह लेता हूँ । इसीसे राम मुझे रोटी - कपड़ोंसे अच्छी तरह रखते हैं । यह तो इस लोककी बात हुई, आगे परलोकके लिये तो वेद पुकार ही रहे हैं कि रामनामके प्रतापसे तेरा कल्याण हो जायगा । बस, इसीसे मैं सदा प्रसन्न रहता हूँ ॥१॥

पहले मुझे जड कर्मोंने अहंकाररुपी कठिन बेड़ियोंसे बाँध लिया था । वह ऐसा भयानक कष्ट था, जो सुननेमें भी बड़ा असह्य है । मैंने दुःखी हो पुकारकर कहा, ' हे आर्त्त और अनाथोंके नाथ ! हे कोसलेश ! हे कृपासिन्धु ! मैं बड़ा कष्ट सह रहा हूँ । ( यह सुनते ही ) श्रीरामने मुझ दीनको पापोंसे जलता हुआ देखकर तुरन्त कर्म - बन्धनसे छुड़ा लिया ॥२॥

ज्यों ही उन्होंने मुझसे पूछा ' तू कौन है ? ' त्यों ही मैंने कहा, ' हे नाथ ! मैं आपका दास बनना चाहता हूँ । मेरे कहीं भी और कोई नहीं हैं, आपके चरणोंमें पड़ा हूँ । ' इसपर भक्तसुखकारी परम गुरु श्रीरामजीने मेरी पीठ ठोंकी, बाँह पकड़कर मुझे अपनाया और आश्वासन दिया । तबसे मैं यह ( कण्ठी, तिलक, माला, रामनाम - जप, अहिंसा, अभेद, नम्रता आदि ) भगवानका वैष्णवी बाना सदा धारण किये रहता हूँ ॥३॥

रामका गुलाम बना देखकर लोग मुझे नीच कहते हैं; परंतु मुझे इसके लिये कुछ भी चिन्ता या संकोच नहीं हैं, क्योंकि न तो मुझे किसीके साथ विवाह - सगाई क नी है और न मुझे जाति - पाँतिसे ही कुछ मतलब है । तुलसीका बनना - बिगड़ना तो श्रीरामजीके रीझने - खीझनेमें ही है । परंतु मुझे आपके प्रेमपर विश्वास है, इसीसे मैं मनमें सदा सानन्द रहता हूँ ॥४॥

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Last Updated : August 26, 2009

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