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विनयावली ९९

विनय पत्रिका - विनयावली ९९

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


जो मोहि राम लागते मीठे ।

तौ नवरस षटरस - रस अनरस ह्वै जाते सब सीठे ॥१॥

बंचक बिषय बिबिध तनु धरि अनुभवे सुने अरु डीठे ।

यह जानत हौं हदय आपने सपने न अघाइ उबीठे ॥२॥

तुलसिदास प्रभु सों एकहिं बल बचन कहत अति ढीठे ।

नामकी लाज राम करुनाकर केहि न दिये कर चीठे ॥३॥

भावार्थः - यदि मुझे श्रीरामचन्द्रजी ही मीठे लगे होते , तो ( साहित्यके ) नवरस एवं ( भोजनके ) छः रस नीरस और फीके पड़ जाते ( पर रामजी मीठे नहीं लगते , इसीलिये विषयभोग मीठे मालूम होते हैं ) ॥१॥

मैं भाँति - भाँतिके शरीर धारण कर यह अनुभव कर चुका हूँ तथा मैंने सुना और देखा भी है कि ( संसारके ) विषय ठग हैं । ( मायामें भुलाकर परमार्थरुपी धन हर लेते हैं ) यद्यपि यह मैं अपने जीमें अच्छी तरह जानता हूँ , तथापि कभी स्वपनमें भी , इनसे तृप्त होकर मेरा मन नहीं उकताया ( कैसी नीचता है ? ) ॥२॥

पर तुलसीदास अपने स्वामी श्रीरघुनाथजीसे एक ही बलपर ये ढिठाईभरे वचन कह रहा है । ( और वह बल यह है कि ) हे नाथ ! आपने अपने नामकी लाजसे किस - किसको दया करके ( भवबन्धनसे छूटनेके लिये ) परवाने नहीं लिख दिये हैं ? ( जिसने आपका नाम लिया , उसीको मुक्तिका परवाना मिल गया , इसीलिये मैं भी यों कह रहा हूँ ) ॥३॥

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Last Updated : November 11, 2010

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