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हनुमंत स्तुति ६

विनय पत्रिका - हनुमंत स्तुति ६

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


जाके गति है हनुमानकी ।

ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी ॥१॥

अघटित - घटन, सुघट - बिघटन, ऐसी बिरुदावलि नहिं आनकी ।

सुमिरत संकट - सोच - बिमोचन, मूरति मोद - निधानकी ॥२॥

तापर सानुकूल, गिरिजा, हर, लषन, राम अरु जानकी ।

तुलसी कपिकी कृपा - बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी ॥३॥

भावार्थः-- जिसको ( सब प्रकारसे ) श्रीहनुमानजीका आश्रय है, उसकी प्रतिज्ञा पूरी हो ही गयी । यह सिद्धान्त वज्र ( हीरे ) - की लकीरके समान अमिट है ॥१॥

क्योंकि श्रीहनुमानजी असम्भव घटनाको सम्भव और सम्भवको असम्भव करनेवाले हैं, ऐसे यशका बाना दुसरे किसीका भी नहीं हैं । श्रीहनुमानजीकी आनन्दमयी मूर्तिका स्मरण करते ही सारे संकट और शोक मिट जाते हैं ॥२॥

सब प्रकारके कल्याणोंकी खानि श्रीहनुमानजीका कृपादृष्टि जिसपर है, हे तुलसीदास ! उसपर पार्वती, शंकर, लक्ष्मण, श्रीराम और जानकीजी सदा कृपा किया करती हैं ॥३॥

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Last Updated : August 19, 2009

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