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विनयावली ९०

विनय पत्रिका - विनयावली ९०

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


मैं हरि पतित - पावन सुने ।

मैं पतित तुम पतित - पावन दोउ बानक बने ॥१॥

ब्याध गनिका गज अजामिल साखि निगमनि भने ।

और अधम अनेक तारे जात कापै गने ॥२॥

जानि नाम अजानि लीन्हें नरक सुरपुर मने ।

दासतुलसी सरन आयो , राखिये आपने ॥३॥

भावार्थः - हे हरे ! मैंने तुम्हें पतितोंको पवित्र करनेवाला सुना हैं । सो मैं तो पतित हूँ और तुम पतितपावन हो ; बस दोनोंके बानक बन गये , दोनोंको मेल मिल गया । ( अब मेरे पावन होनेमें क्या सन्देह है ? ) ॥१॥

वेद साक्षी दे रहे हैं कि तुमने व्याध ( वाल्मीकि ), गणिका ( पिंगला वेश्या ), गजेन्द्र और अजामिलको तथा और भी अनेक नीचोंको संसार - सागरसे पार कर दिया है , जिनकी गिनती ही किससे हो सकती है ? ॥२॥

जिन्होंने जानकर या बिना जाने तुम्हारा नाम ले लिया , उन्हें नरक और स्वर्गमें जानेकी मनाई कर दी गयी है । अर्थात् वे भवसागरसे पार होकर मुक्त हो जाते हैं ( यह सब समझ - बूजकर ही अब ) तुलसी भी तुम्हारी शरणमें आया है , इसे भी अपना लो ॥३॥

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Last Updated : November 11, 2010

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