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विनयावली ९

विनय पत्रिका - विनयावली ९

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


देव

तू दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी ।

हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप - पुंज - हारी ॥१॥

नाथ तू अनाथको, अनाथ कौन मोसो ।

मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो ॥२॥

ब्रह्म तू, हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो ।

तात - मात, गुरु - सखा, तू सब बिधि हितु मेरो ॥३॥

तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै ।

ज्यों त्यों तुलसी कृपालु ! चरन - सरन पावै ॥४॥

भावार्थः-- हे नाथ ! तू दीनोंपर दया करनेवाला है, तो मैं दीन हूँ । तू अतुल दानी है, तो मैं भीखमंगा हूँ । मैं प्रसिद्ध पापी हूँ, तो तू पाप - पुंजोंका नाश करनेवाला है ॥१॥

तू अनाथोंका नाथ है, तो मुझ - जैसा अनाथ भी और कौन है ? मेरे समान कोई दुःखी नहीं है और तेरे समान कोई दुःखोंको हरनेवाला नहीं है ॥२॥

तू ब्रह्म है, मैं जीव हूँ । तू स्वामी है, मैं सेवक हूँ । अधिक क्या, मेरा तो माता, पिता, गुरु, मित्र और सब प्रकारसे हितकारी तू ही है ॥३॥

मेरे - तेरे अनेक नाते हैं; नाता तुझे जो अच्छा लगे, वही मान ले । परंतु बात यह है कि हे कृपालु ! किसी भी तरह यह तुलसीदास तेरे चरणोंकी शरण पा जावे ॥४॥

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Last Updated : September 05, 2009

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