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सूर्य स्तुति

विनय पत्रिका - सूर्य स्तुति

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


दीन - दयालु दिवाकर देवा । कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा ॥१॥

हिम - तम - करि - केहरि करमाली । दहन दोष - दुख - दुरित - रुजाली ॥२॥

कोक - कोकनद - लोक - प्रकासी । तेज - प्रताप - रुप - रस - रासी ॥३॥

सारथि - पंगु, दिब्य रथ - गामी । हरि - संकर - बिधि - मूरति स्वामी ॥४॥

बेद - पुरान प्रगट जस जागै । तुलसी राम - भगति बर माँगै ॥५॥

भावार्थः-- हे दीनदयालु भगवान् सूर्य ! मुनि, मनुष्य, देवता और राक्षस सभी आपकी सेवा करते हैं ॥१॥

आप पाले और अन्धकाररुपी हाथियोंको मारनेवाले वनराज सिंह हैं; किरणोंकी माला पहने रहते हैं; दोष, दुःख, दुराचार और रोगोंको भस्म कर डालते हैं ॥२॥

रातके बिछुड़े हुए चकवाचकवियोंको मिलाकर प्रसन्न करनेवाले, कमलको खिलानेवाले तथा समस्त लोकोंको प्रकाशित करनेवाले हैं । तेज, प्रताप, रुप और रसकी आप खानि हैं ॥३॥

आप दिव्य रथपर चलते हैं, आपका सारथी ( अरुण ) लूला है । हे स्वामी ! आप विष्णु, शिव और ब्रह्माके ही रुप हैं ॥४॥

वेद - पुराणोंमें आपकी कीर्ति जगमगा रही है । तुलसीदास आपसे श्रीरामभक्तिका वर माँगता है ॥५॥

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Last Updated : August 11, 2009

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