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विनयावली २

विनय पत्रिका - विनयावली २

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


मेरो भलो कियो राम आपनी भलाई ।

हौं तो साईं - द्रोही पै सेवक - हित साईं ॥१॥

रामसों बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो ।

राम सो खरो है कौन, मोसों कौन खोटो ॥२॥

लोक कहै रामको गुलाम हौं कहावौं ।

एतो बड़ो अपराध भौ न मन बावौं ॥३॥

पाथ माथे चढ़े तृन तुलसी ज्यों नीचो ।

बोरत न बारि ताहि जानि आपु सींचो ॥४॥

भावार्थः-- श्रीरामजीने अपने भलेपनसे ही मेरा भला कर दिया । ( मेरे कर्त्तव्यसे भला होनेकी क्या आशा थी ? ) क्योंकि मैं तो स्वामीके साथ बुराई करनेवाला हुँ; परन्तु मेरे स्वामी श्रीराम सेवकके हितकारी हैं ॥१॥

श्रीरामजीसे तो बड़ा कौन है और मुझसे छोटा कौन है ? उनके समान खरा कौन है और मेरे समान खोटा कौन है ? ॥२॥

संसार कहता है कि मैं ( तुलसीदास ) रामजीका गुलाम हूँ और मैं भी यह कहलवाता हूँ । ( वास्तवमें रामका सेवक न होकर भी मैं इस पदवीको स्वीकार कर लेता हूँ ) यह मेरा बड़ा भारी अपराध है, तो भी श्रीरामका मन मेरी तरफसे तनिक भी नहीं फिरा ॥३॥

हे तुलसी ! जैसे तिनका बहुत नीच होनेपर भी जलके मस्तकपर चढ़ जाता है, ( ऊपर उतराने लगता है ) परन्तु जल उसे अपने द्वारा ही सींचकर पाला - पोसा हुआ समझकर डुबोता नहीं । ( इसी प्रकार भगवान् श्रीरामजी समझते हैं ) ॥४॥

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Last Updated : August 26, 2009

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