हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|विनय पत्रिका|
श्री राम नाम जप ५

विनय पत्रिका - श्री राम नाम जप ५

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


सुमिरु सनेहसों तू नाम रामरायको ।

संबल निसंबलको, सखा असहायको ॥१॥

भाग है अभागेहूको, गुन गुनहीनको ।

गाहक गरीबको, दयालु दानि दीनको ॥२॥

कुल अकुलीनको, सुन्यो है बेद साखि है ।

पाँगुरेको हाथ - पाँय, आँधरेको आँखि है ॥३॥

माय - बाप भूखेको, अधार निराधारको ।

सेतु भव - सागरको, हेतु सुखसारको ॥४॥

पतितपावन राम - नाम सो न दूसरो ।

सुमिरि सुभूमि भयो तुलसी सो ऊसरो ॥५॥

भावार्थः-- हे जीव ! तू प्रेमपूर्वक राजराजेश्वर श्रीरामके नामका स्मरण कर, उनका नाम पाथेयहीन पथिकोंके लिये मार्गव्यय ( कलेवा ) है, जिसका कोई सहाय नहीं है उसका सहायक है ॥१॥

यह रामनाम भाग्यहीनका भाग्य और गुणहीनका गुण है, ( रामनाम जपनेवाले भाग्यहीन और गुणहीन भी परम भगवान् और सर्वगुणसम्पन्न हो जाते हैं । ) यह गरीबोंका सम्मान करनेवाला ग्राहक और दोनोंके लिये दयालु दानी है ॥२॥

यह रामनाम कुलहीनोंका उच्च कुल ( रामनाम जपनेवाले चाण्डाल भी सबसे ऊँचे समझे जाते हैं ) और लँगड़े - लूलोंके हाथ - पैर तथा अन्धोंकी आँखे हैं ( रामनाम जपनेवाले संसार - मार्गको सहजहीमें लाँघ जाते है ) इस सिद्धान्तका वेद साक्षी है ॥३॥

वह रामनाम भूखोंका माँ - बाप और निराधारका आधार है । संसार - सागरसे पार जानेके लिये पुल है और सब सुखोंके सार भगवत प्राप्तिका प्रधान कारण है ॥४॥

रामनामके समान पतित - पावन दूसरा कौन है, जिसके स्मरण करनेसे तुलसीके समान ऊसर भी सुन्दर ( भक्ति - प्रेमरुपी प्रचुर धानकी ) उपजाऊ भूमि बन गया ॥५॥

N/A

References : N/A
Last Updated : August 25, 2009

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP