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श्री राम आरती २

विनय पत्रिका - श्री राम आरती २

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


हरति सब आरती आरती रामकी ।

दहन दुख - दोष, निरमूलिनी कामकी ॥१॥

सुरभ सौरभ धूप दीपबर मालिका ।

उड़त अघ - बिहँग सुनि ताल करतालिका ॥२॥

भक्त - हदि - भवन, अज्ञान - तम - हारिनी ।

बिमल बिग्यानमय तेज - बिस्तारिनी ॥३॥

मोह - मद - कोह - कलि - कंज - हिमजामिनी ।

मुक्तिकी दूतिका, देह - दुति दामिनी ॥४॥

प्रनत - जन - कुमुद - बन - इंदु - कर - जालिका ।

तुलसि अभिमान - महिषेस बहु कालिका ॥५॥

भावार्थः -- श्रीरामचन्द्रजीकी आरती सब आर्त्ति - पीड़ाको हर लेती हैं । दुःख और पापोंको जला देती है तथा कामनाको जड़से उखाड़्कर फेंक देती है ॥१॥

वह सुन्दर सुगन्धयुक्त धूप और श्रेष्ठ दीपकोंकी माला है । आरतीके समय हाथोंसे बजायी जानेवाली तालीका शब्द सुनकर पापरुपी पक्षी तुरंत उड़ जाते हैं ॥२॥

यह आरती भक्तोंके हदयरुपी भवनके अज्ञानरुपी अन्धकारका नाश करनेवाली और निर्मल विज्ञानमय प्रकाशको फैलानेवाली है ॥३॥

यह मोह, मद, क्रोध और कलियुगरुपी कमलोंके नाश करनेके लिये जाड़ेकी रात है और मुक्तिरुपी नायिकासे मिला देनेके लिये दूती है तथा इसके शरीरकी चमक बिजलीके समान है ॥४॥

यह शरणागत भक्तरुपी कुमुदिनीके वनको प्रफुल्लित करनेके लिये चन्द्रमाके किरणोंकी माला है और तुलसीदासके अभिमानरुपी महिषासुरका मर्दन करनेके लिये अनेक कालिकाओंके समान हैं ॥५॥

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Last Updated : August 25, 2009

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