हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|विनय पत्रिका|
विनयावली ११२

विनय पत्रिका - विनयावली ११२

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


नाथ ! गुनगाथ सुनि होत चित चाउ सो ।

राम रीझिबेको जानौं भगति न भाउ सो ॥१॥

करम , सुभाउ , काल , ठाकुर न ठाउँ सो ।

सुधन न , सुतन न , सुमन , सुआउ सो ॥२॥

जाँचौं जल जाहि कहै अमिय पियाउ सो ।

कासों कहौं काहू सों न बढ़त हियाउ सो ॥३॥

बाप ! बलि जाउँ , आप करिये उपाउ सो ।

तेरे ही निहारे परै हारेहू सुदाउ सो ॥४॥

तेरे ही सुझाये सूझै असुझ सुझाउ सो ।

तेरे ही बुझाये बूझै अबुझ बुझाउ सो ॥५॥

नाम - अवलंबु - अंबु दीन मीन - राउ सो ।

प्रभुसों बनाइ कहौं जीह जरि जाउ सो ॥६॥

सब भाँति बिगरी है एक सुबनाउ - सो ।

तुलसी सुसाहिबहिं दियो है जनाउ सो ॥७॥

भावार्थः - हे नाथ ! आपके गणोंकी गाथा सुनकर मेरे चित्तमें चावसा होता है , किन्तु हे रामजी ! जिस भक्ति और भावसे आप प्रसन्न होते हैं , उसे मैं नहीं जानता ॥१॥

कारण कि न तो मेरे कर्म अच्छे हैं , न स्वभाव उत्तम है , और न समय अच्छा है ( कलियुग है ); न कोई मालिक है , न कहीं ठौर - ठिकाना है , न ( साधनरुपी ) उत्तम धन है , न सुन्दर ( सेवापरायण ) शरीर है , न ( परमार्थमें लगनेवाला ) उत्तम मन है और न ( भजनसे पवित्र हुई ) उत्तम आयु ही है । सारांश , भगवत्प्राप्तिका एक भी साधन मेरे पास नहीं है , सब प्रकारसे निराधार हूँ ॥२॥

जिससे मैं ( प्यासके मारे ) पानी माँगता हूँ , वह उलटा मुझसे ही अमृत पिलानेके लिये कहता है । मैं अपनी बात किससे कहूँ ? किसीसे भी कहनेकी हिम्मत - सी नहीं पड़ती ॥३॥

हे बापजी ! बलिहारी ! आप ही मेरे लिये वैसा कोई अच्छा उपाय कर दीजिये । क्योंकि आपके ( कृपादृष्टिसे ) देखते ही हारनेपर भी अच्छा दाँव - सा हाथ लग जाता है । भाव , बड़े - बड़े पापी भी आपकी कृपासे वैकुण्ठके अधिकारी हो जाते हैं ॥४॥

आप यदि सुझा दें तो अदृश्य वस्तु भी दीखने लगती हैं , और आपके समझा देनेपर नहीं समझमें आनेवाला ( आपका स्वरुप ) पदार्थ भी समझमें आ जाता है ; अब आप उसे ही सुझा और समझा दीजिये ॥५॥

देखिये , आपके नामका जो अवलम्बन है , वही तो पानी है और उसमें रहनेवाला मैं दीन मीनोंका राजा - सा हूँ , बड़े भारी मत्स्यके समान हूँ । मैं जो प्रभुके सामने इसमें कुछ भी बनावटी बात कहता होऊँ तो मेरी यह जीभ जल जाय ॥६॥

मेरी बात सभी तरहसे बिगड़ चुकी है , केवल एक ही अच्छा बानक - सा बना हुआ है , और वह यह कि तुलसीदासने यह बात अपने दयालु स्वामीको जना दी है । ( अब स्वामी आप ही बिगड़ी बनावेंगे ) ॥७॥

N/A

References : N/A
Last Updated : November 11, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP