हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|विनय पत्रिका|
विनयावली १४२

विनय पत्रिका - विनयावली १४२

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


रघुपति बिपति - दवन ।

परम कृपालु , प्रनत - प्रतिपालक , पतित - पवन ॥१॥

कूर , कुटिल , कुलहीन , दीन , अति मलिन जवन ।

सुमिरत नाम राम पठये सब अपने भवन ॥२॥

गज - पिंगला - अजामिल - से खल गनै धौं कवन ।

तुलसिदास प्रभु केहि न दीन्हि गति जानकी - रवन ॥३॥

भावार्थः - श्रीरघुनाथजी विपत्तियोंको दूर करनेवाले हैं । आप बड़े ही कृपालु , शरणागतोंके प्रतिपालक और पापियोंको पवित्र करनेवाले हैं ॥१॥

निर्दयी , दुष्ट , नीच जाति , गरीब और बड़े ही मलिन म्लेच्छतकको राम - नामका स्मरण करते ही आपने अपने परमधामको भेज दिया ॥२॥

गजेन्द्र , पिंगला वेश्या , अजामिल आदि ( विषयोंमें मतवाले ) दुष्टोंको कौन गिने ( न जाने इनके समान कितने पापियोंको अपना धाम दे दिया ) हे तुलसीदास ! बात तो यह है कि जानकीनाथ प्रभु रामचन्द्रजीने किस - किसको मुक्त नहीं कर दिया ( जिसने शरण ली , उसीको मुक्ति दे दी , फिर मुझे क्यों न देंगे ? ) ॥३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : November 13, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP