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हनुमंत स्तुति १२

विनय पत्रिका - हनुमंत स्तुति १२

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राग गौरी

मंगल - मूरति मारुत - नंदन । सकल - अमंगल - मूल - निकंदन ॥१॥

पवनतनय संतन - हितकारी । हदय बिराजत अवध - बिहारी ॥२॥

मातु - पिता, गुरु, गनपति, सारद । सिवा - समेत संभु, सुक, नारद ॥३॥

चरन बंदि बिनवौं सब काहू । देहु रामपद - नेह - निबाहू ॥४॥

बंदौं राम - लखन - बैदेही । जे तुलसीके परम सनेही ॥५॥

भावार्थः-- पवनकुमार हनुमानजी कल्याणकी मूर्ति हैं । वे सारी बुराइयोंकी जड़ काटनेवाले हैं ॥१॥

पवनके पुत्र हैं, संतोंका हित करनेवाले हैं । अवधविहारी श्रीरामजी सदा इनके हदयमें विराजते हैं ॥२॥

इनके तथा माता - पिता, गुरु, गणेश, सरस्वती, पार्वतीसहित शिवजी, शुकदेवजी, नारद ॥३॥

इन सबके चरणोंमें प्रणाम करके मैं यह विनती करता हूँ कि श्रीरघुनाथजीके चरण - कमलोंमें मेरा प्रेम सदा एक - सा निबह रहे, यह वरदान दीजिये ॥४॥

अन्तमें मैं श्रीराम, लक्ष्मण और जानकीजीको प्रणाम करता हूँ, जो तुलसीदासके परमप्रेमी और सर्वस्व हैं ॥५॥

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Last Updated : August 21, 2009

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