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हनुमंत स्तुति ३

विनय पत्रिका - हनुमंत स्तुति ३

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी ।

राम - रोषानल - ज्वालमाला - मिष ध्वांतचर - सलभ - संहारकारी ॥१॥

जयति मरुदंजनामोद - मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव - दुःखैकबंधो ।

यातुधानोद्धत - क्रुद्ध - कालाग्निहर, सिद्ध - सुर - सज्जनानंद - सिंधो ॥२॥

जयति रुद्राग्रणी, विश्व - वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात - भट - चक्रवर्ती ।

सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती ॥३॥

जयति संग्रामजय, रामसंदेसहर, कौशला - कुशल - कल्याणभाषी ।

राम - विरहार्क - संतप्त - भरतादि - नरनारि - शीतलकरण कल्पशाषी ॥४॥

जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निरखि, निर्भरहरष नृत्यकारी ।

राम संभ्राज शोभा - सहित सर्वदा तुलसिमानस - रामपुर - विहारी ॥५॥

भावार्थः-- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो । तुम कल्याणके स्थान, संसारज्के भारको हरनेवाले, बन्दरके आकारमें साक्षात् शिवस्वरुप हो । तुम राक्षसरुपी पतंगोंको भस्म करनेवाली श्रीरामचन्द्रजीके क्रोधरुपी अग्निकी ज्वालामालाके मूर्तिमान् स्वरुप हो ॥१॥

तुम्हारी जय हो । तुम पवन और अंजनी देवीके आनन्दके स्थान हो । नीची गर्दन किये हुए, दुःखी सुग्रीवके दुःखमें तुम सच्चे बन्धुके समान सहायक हुए थे । तुम राक्षसोंके कराल क्रोधरुपी प्रलयकालकी अग्निका नाश करनेवाले और सिद्ध, देवता तथा सज्जनोंके लिये आनन्दके समुद्र हो ॥२॥

तुम्हारी जय हो । तुम एकादश रुद्रोंमें और जगत्पूज्य ज्ञानियोंमें अग्रगण्य हो, संसारभरके शूरवीरोंके प्रसिद्ध सम्राट हो । तुम सामवेदका गान करनेवालोंमें और कामदेवको जीतनेवालोंमें सबसे श्रेष्ठ हो । तुम श्रीरामजीके हितकारी और श्रीराम - भक्तोंके साथ रहनेवाले रक्षक हो ॥३॥

तुम्हारी जय हो । तुम संग्राममें विजय पानेवाले, श्रीरामजीका सन्देशा ( सीताजीके पास ) पहुँचानेवाले और अयोध्याका कुशल - मंगल ( श्रीरघुनाथजीसे ) कहनेवाले हो । तुम श्रीरामजीके वियोगरुपी सूर्यसे जलते हुए भरत आदि अयोध्यावासी नर - नारियोंका ताप मिटानेके लिये कल्पवृक्ष हो ॥४॥

तुम्हारी जय हो । तुम श्रीरामजीको राज्य - सिंहासनपर विराजमान देख, आनन्दमें विह्वल होकर नाचनेवाले हो । जैसे श्रीरामजी अयोध्यामें सिंहासनपर विराजित हो शोभा पा रहे थे, वैसे ही तुम इस तुलसीदासकी मानसरुपी अयोध्यामें सदा विहार करते रहो ॥५॥

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Last Updated : August 19, 2009

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