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विनयावली २६

विनय पत्रिका - विनयावली २६

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


जौ पै जिय धरिहौ अवगुन जनके ।

तौ क्यों कटत सुकृत - नखते मो पै, बिपुल बृंद अघ - बनके ॥१॥

कहिहै कौन कलुष मेरे कृत, करम बचन अरु मनके ।

हारहि अमित सेष सारद श्रुति, गिनत एक - एक छनके ॥२॥

जो चित चढ़ैं नाम - महिमा निज, गुनगन पावन पनके ।

तो तुलसिहिं तारिहौ बिप्र ज्यों दसन तोरि जमगनके ॥३॥

भावार्थः- हे नाथ ! यदि आप इस दासके दोषोंपर ध्यान देंगे, तब तो पुण्यरुपी नखसे पापरुपी बड़े - बड़े वनोंके समूह मुझसे कैसे कटेंगे ? ( मेरे जरा - से पुण्यसे भारी - भारी पाप कैसे दूर होंगे ? ) ॥१॥

मन, वचन और शरीरसे किये हुए मेरे पापोंका वर्णन भी कौन कर सकता है ? एक - एक क्षणके पापोंका हिसाब जोडनेमे अनेक शेष, सरस्वती और वेद हार जायँगे ॥२॥

( मेरे पुण्योंके भरोसे तो पापोंसे छूटकर उद्धार होना असम्भव हे ) यदि आपके मनमें अपने नामकी महिमा और पतितोंको पावन करनेवाले अपने गुणोंका स्मरण आ जाय तो आप इस तुलसीदासको यमदूतोंके दाँत तोड़कर संसार - सागरसे अवश्य वैसे ही तार देंगे, जैसे अजामिल ब्राह्मणको तार दिया था ॥३॥

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Last Updated : September 09, 2009

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