संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|विष्णुधर्माः| अध्याय ७१ विष्णुधर्माः अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ विष्णुधर्माः - अध्याय ७१ विष्णुधर्माः Tags : puransanskritVishnu dharmaपुराणविष्णुधर्माःसंस्कृत विष्णुधर्माः - अध्याय ७१ Translation - भाषांतर अथैकसप्ततितमोऽध्यायः ।शतानीक उवाच ।ब्रह्मन्नसारे संसारे रोगादिव्याप्तमानसः ।शब्दादिलुब्धः पुरुषः किं कुर्वन्नावसीदति १शौनक उवाच ।स्वे महिम्नि स्थितं देवमप्रमेयमजं विभुम् ।शोकमोहविनिर्मुक्तं विष्णुं ध्यायन्न सीदति २अप्राणचितिकं ब्रह्म वेदान्तेषु प्रकाशितम् ।आद्यं पुरुषमीशानं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ३अशनाद्यैरसंस्पृष्टं सेवितं योगिभिः सदा ।सर्वदोषविनिर्मुक्तं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ४धामत्रयविनिर्मुक्तं सुप्रभातं सुनिर्मलम् ।निष्कलं शाश्वतं देवं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ५क्षराक्षरविनिर्मुक्तं जन्ममृत्युविवर्जितम् ।अभयं सत्यसङ्कल्पं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ६अमृतं साधनं साध्यं यं पश्यन्ति मनीषिणः ।ज्ञेयाख्यं परमात्मानं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ७अतुलं सुखधर्माणं व्योमदेहं सनातनम् ।धर्माधर्मविनिर्मुक्तं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ८व्यासाद्यैर्मुनिभिः सर्वैर्ध्यानयोगपरायणैः ।अर्चितं भावकुसुमैर्विष्णुं ध्यायन्न सीदति ९विष्ण्वष्टकमिदं पुण्यं योगिनां प्रीतिवर्धनम् ।यः पठेत्परया प्रीत्या स गच्छेद्विष्णुसात्म्यताम् १०एतत्पुण्यं पापहरं धन्यं दुःस्वप्ननाशनम् ।पठतां शृण्वतां चैव विष्णोर्माहात्म्यमुत्तमम् ११इति विष्णुधर्मेषु विष्ण्वष्टकम् । N/A References : N/A Last Updated : February 28, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP