मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|गाणी व कविता|मध्वमुनीश्वरांची कविता|
पदे २१ ते २८

हिंदी पदें - पदे २१ ते २८

मध्वमुनीश्वरांची कविता


पद २१ वें
जिन्ने तुजकू पैदा किया कर उसका संदेशा रे । इंद्रजाल तव प्रपंच सारा सुत वंध्येचा जैसा रे ॥ध्रु०॥
तन जोबन आशक हुवा । क्या पाया आराम रे । इंद्रिय जन्म सुखातें भावुनी । नेणसी आत्मारामा रे ॥१॥
क्यौं गफलतमे गाफल हुवा । किस लालचपर प्यारे । किरण न जाणुनी भ्रमती हरणें । जातीं उदकाभासा रे ॥२॥
किआस नहीं किये कुफरसे । क्योंकरहि हुवा दिवानारे । आत्मा तूं अविनाश होऊनी । मानिसी जन्मा मरणारे ॥३॥
तनकियेमे एक जनार्दन । लाख खडा बेपरव रे । त्र्यंबक कवि हे त्याला अर्पुनि । भोगी सुखाचा ठेवा रे ॥४॥

पद २२ वें
बाजीगार
बडा बाजीगार । साई बडा बाजीगार । बाजीगरकी बाजी झूटी । अकेला आखर ॥१॥
सबकी नरजबंद करकर । दिखावता है पर । एक परके पलखम्याने । छतीस कबुतर ॥२॥
एक रस्सीका साप करे । जबून उसका जहर । लहर चढे ते शहर भुलता । इस चौक मे कहर ॥३॥
हांडीबाग का गला काटे । मारे पेटमे छुरी । जीवना मरना वैसा झूटा । बात तैसी बुरी ॥४॥
बाजीगरके हंडीबागकु कही नहीं डर । मध्वनाथका गुरु जबरदस्त है शिरपर ॥५॥

पद २३ वें
राखो प्रभुजी लाज । आपने शरणागतकी लाज ॥ध्रु०॥
पतितपावन नाम तुम्हारो । गुरुजी गरीबनवाज ॥१॥
भवसिंधूके पार उतारो । इतना हमारो काज ॥२॥
कहत है माधोनाथ गुसाई । मुनिजनके महाराज ॥३॥

पद २४ वें
साच्या गोदड गावोजी । निजरूप निजपद पावोजी ॥ध्रु०॥
दत्त दिगंबर गुरु साहेबजी अखया मोचे बैठे । पीतांबरसे कास कसाई ब्रह्म भुवनसे लेटे ॥१॥
देखत देखत भूल परी है दुनया मस्त दिवानी । तकियात तखतो धारा बैठे बिरला जाने ग्यानी ॥२॥
सब धरतीसो परवत ऊंचा मेरुसिखरका हवे । मार दिगंबर आसन बैठे खेचरी मुद्रा लावे ॥३॥
तख्त बिराजे साहे निरंजन अवधूतोंका राजा । आठो पाहार झांगड लागे अनुहातका बाजा ॥४॥
गंगातीरमो सनान सारे पंढरपुर सिरखंडा । कोल्हापुरमो भिच्छा मागे लेकर हातमो दंडा ॥५॥
पांचालेसर रोटी खावे तुलजापुर कर धोवे । शेषाचलपर आसन ज्याके माहुर गडपर सोवे ॥६॥
निराकारमो वस्ती जाकी नीरंजेसे बाता । निर्गुण साई दत्त दिगंबर फिरे येकला रमता ॥७॥
सब दुनयाके आगे साई त्रिभुवनको जो राजा । मध्वनाथ नैनो भर पायो सुनो संत महाराजा ॥८॥

पद २५ वें
यारो समजो रे दो दिनकी जिनगी यारो ॥ध्रु०॥
नंगे आना नंगे जाना काका बाबा भाई । काकी अंमा नानी दादी लालुच देख लुगाई ॥१॥
कहांकी संपत उंच हवेली कहांका खेषकबिला । कहांकी नौबद हाथी घोडा जहां का वाही तबिला ॥२॥
हात दियो कुछ कर बे दान, पगसे कर तीर्थाटन । संपत नही तो भिच्छा मांगकर खूप खिलावे बह्मन ॥३॥
अखंड माधव साधव नहीं भाई स्ब संतनका लडका । हरिभजनमो मस्त भया है खूप लगावे कडका ॥४॥

पद २६ वें
बंगला जोर बनाया बे । वामो नारायण डोले ॥ध्रु०॥
नीचे मट्टी ऊपर पानी वामो लगाये बत्ती । साततालका महल बनाया खूप बसाई बस्ती ॥१॥
चार देहेका मठ बनाया पचीस लगाये फत्तर । पांच तख्तपर पांच बगीचे नहर चलाये अंतर ॥२॥
काला पीला सुफेत हारा नहि कछु जरदे रंगका । अखंड माधव रामभजनसे महाल बना बिन्धोका ॥३॥

पद २७ वें
मुहमें राम हाय जी । उन घर क्या कम हायजी ॥ध्रु०॥
भजन पुजन तो कछु नहि जाने, अर्जव करत है दुनिया । आटा चावट दाल तुवरकी घी शक्कर दे बनिया ॥१॥
चेले चाटी भिच्छा मांग ते हम तो बैठे डेरे । गौवा बम्मन रोटी खाते हम तो सबसे चेरे ॥२॥
अखंड माधव साधु नहीं भई राम नामका सुख लेता । जगद्गुरूसे साई हमारा जो चाहे सो देता ॥३॥

पद २८ वें
झटपट भज ले सीताराम । प्यारे झटपट ॥ध्रु०॥
दुसरेका घर मुंडमुंडाकर बडे हिम्मतसे जमावे दाम । धरम करे बेशरम गठडा गरम किया नर बडा गुलाम ॥१॥
जातपात खुप संत मिले पर बखत पडे तो नावे काम । लालुच लुगाई भाई बेटा क्यौंबे गिदिंकरे हाम ॥२॥
अखंड माधव कहत दिवाना बडे संतनके घरका गुलाम । गस्त अइ भई सुस्त रहो मत फकडका टुक लेवो सलाम ॥३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : May 29, 2017

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP