मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|गाणी व कविता|साने गुरूजी|
पुशी अहंता निज पापमूळ। खर...

प्रसन्नता - पुशी अहंता निज पापमूळ। खर...

साने गुरूजींचे संपूर्ण नाव - पांडुरंग सदाशिव साने


पुशी अहंता निज पापमूळ। खराखुरा होउन राहि मूल
जिथे अहंकार जिथे घमेंड। प्रसन्नता तेथ न दावि तोंड॥

समस्तपापस्मृति जै जळेल। गळा पिशाच्चापरी ना बसेल
जणू पुनर्जन्मच मानसाचा। तदा घडे लाभ प्रसन्नतेचा॥

प्रसन्नता स्वस्त न वस्तु बापा। प्रसन्नता मुक्तिच मूर्तरूपा
प्रसन्नता वस्तु न मर्त्यभूची। प्रसन्नता सुंदरता प्रभूची॥

प्रसन्नता बाळ मनोजयाचे। प्रसन्नता बाळ तपोबळाचे
प्रसन्नता संयमन-प्रसूती। प्रसन्नता मंगलपुण्य-मूर्ति॥

सदैव सेवारत शांत दात। त्वदिंद्रिये पाहुन विश्वकांत
तदंगि लोभे फिरवी कराते। प्रसन्नता तै वरिते तयांते॥

सुधारसाचा प्रभुच्या कराचा। जया शुभ स्पर्श घडेल साचा
तदीय ते जीवन होइ नव्य। प्रसन्नता-लाभ तयास दिव्य॥

वसुंधरेच्या हृदयामधून। जसा झरा येत उचंबळून
तसा मनोमोद अनंत आत। प्रसन्नतारूप धरून येत॥

असेल ज्याच्या हृदयी अथांगा। मनोहरा मंगलभावगंगा
तदार्द्रता जी झिरपे कृतीत। प्रसन्नतानाम तिलाच देत॥

अनंत जन्म प्रथम श्रमावे। अनंत जन्मावधि संतपावे
अनंत वेळा पडुनी चढावे। प्रसन्नतेने मग रे नटावे॥

-नाशिक तुरुंग, मे १९३३

N/A

References : N/A
Last Updated : April 20, 2018

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP