संस्कृत सूची|शास्त्रः|आयुर्वेदः|योगरत्नाकरः| ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥ योगरत्नाकरः अथ योगरत्नाकरस्यानुक्रमणिका । विषयसूची ॥ अथ योगरत्नाकरः ॥ ॥ अथ पादचतुष्टयम् ॥ ॥ अथ दूतपरीक्षा ॥ ॥ अथ दूतपरीक्षा ॥ ॥ अथ शकुनाः ॥ ॥ अथ रोगिणां अष्टस्थानानि लक्षयेत् ॥ ॥ अथ नाडीपरीक्षा ॥ ॥ अथ मूत्रपरीक्षा ॥ ॥ अथ दोषत्रयलक्षणानि ॥ ॥ अथ मलपरीक्षा ॥ ॥ अथ शब्दपरीक्षा ॥ ॥ अथ स्पर्शपरीक्षा ॥ ॥ अथ रूपपरीक्षा ॥ ॥ अथ दृक्परीक्षा ॥ ॥ अथास्यपरीक्षा ॥ ॥ अथ जिव्हापरीक्षा ॥ ॥ अथ कालज्ञानम् ॥ ॥ अथ देशाः ॥ ॥ अथ केषु मासेषु दोषत्रयप्रकोपः ॥ ॥ केषु ऋतुषु दोषोत्पत्तिः ॥ ॥ अथ वातादिप्रकोपः ॥ ॥ अथ दोषत्रयलक्षणानि ॥ ॥ अथ दोषत्रयशमनम् ॥ ॥ अथाहर्निशदोषत्रयप्रवर्तनम् ॥ ॥ अथ आमव्याधिलक्षणम् ॥ ॥ अथ तत्प्रतीकारः ॥ ॥ अथ वयोविचारः ॥ ॥ अथ प्रकृतिः ॥ ॥ अथारोगलक्षणम् ॥ ॥ अथ परिभाषा ॥ ॥ अथ कलिङ्गपरिभाषा ॥ ॥ अथ धान्यादिफलकन्दशाकगुणाः ॥ ॥ अथ तमाखुगुणाः ॥ ॥ अथ मांसगुणाः ॥ ॥ अथानूपजातिलक्षणं तद्रुणाश्च ॥ ॥ अथ जाङ्गलमांसगुणाः ॥ ॥ अथानूपमांसगुणाः ॥ ॥ अथ मत्स्यादिजलजन्तवः ॥ ॥ अथ शङ्खादिगुणाः ॥ ॥ अथ सिद्धान्नादिपाकगुणकथनम् ॥ ॥ अथ साराणि ॥ ॥ अथ यूषाः ॥ ॥ अथ सूपाः ॥ ॥ अथ पर्पटाः ॥ ॥ अथ मुद्गतण्डुलकृशरा ॥ ॥ अथ पायसम् ॥ ॥ अथ पोलिका ॥ ॥ अथाङ्गारिका ॥ ॥ अथ वटकाः ॥ ॥ अथ पिष्टभक्ष्यजनितगुणाः ॥ ॥ अथ पानकानि ॥ ॥ अथ रागखाण्डवः ॥ ॥ अथ रसाला शिखरिणी ॥ ॥ अथ भरित्थम् ॥ ॥ अथ पृथुकादयः ॥ ॥ अथ वेसवारः ॥ ॥ अथ आयुर्विचारमाह ॥ ॥ अथ स्वल्पायुषो लक्षणानि ॥ ॥ अथ नित्यप्रकारमाह ॥ ॥ अथ रसादीनां पाकलक्षणमाह ॥ ॥ अथ रात्रिचर्या ॥ ॥ अथ ऋतुचर्यामाह ॥ ॥ अथ वर्षासु हिताहितमाह ॥ ॥ अथ शरदि हिताहितमाह ॥ ॥ अथ हेमन्ते हिताहितमाह ॥ ॥ अथ शिशिरे हिताहितमाह ॥ ॥ अथ वसन्ते हिताहितमाह ॥ ॥ अथ ग्रीष्मे हिताहितमाह ॥ ॥ अथ जलगुणाः ॥ ॥ अथोष्णवारिगुणाः ॥ ॥ अथ ऋतुविशेषे जलक्काथनियमः ॥ ॥ अथ रात्रिसेवितोष्णोदकगुणाः ॥ ॥ अथ निषिद्धमुष्णोदकम् ॥ ॥ अथोष्णोदकप्रयोगः ॥ ॥ अथोष्णवारिमन्दाचरणम् ॥ ॥ अथ शृतशीतगुणाः ॥ ॥ अथोष्णजलविधिः ॥ ॥ अथ दुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ तत्र वर्णभेदाः ॥ ॥ अथ माहिषम् ॥ ॥ अथाजम् ॥ ॥ अथाविकम् ॥ ॥ अथौष्ट्रम् ॥ ॥ अथैभम् ॥ ॥ अथाश्वम् ॥ ॥ अथ गार्दभम् ॥ ॥ अथ मानुषम् ॥ ॥ अथ धारोष्णगुणाः ॥ ॥ अथापक्कदुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ क्वथितदुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ क्षीरमित्राणि ॥ ॥ अथ क्षीरामित्राणि ॥ ॥ अथ सन्तानिकागुणाः ॥ ॥ अथ दधिगुणाः । ॥ अथ निःसारदुग्धदधिगुणाः ॥ ॥ अथ मन्ददधिगुणाः ॥ ॥ अथ सरगुणाः ॥ ॥ अथ तक्रगुणाः ॥ ॥ अथ क्वथिततक्रगुणाः ॥ ॥ अथ नवनीतम् ॥ ॥ अथ चिरन्तननवनीतगुणाः ॥ ॥ अथ घृतगुणाः ॥ ॥ अथ माहिषम् ॥ ॥ अथ आजम् ॥ ॥ अथाविकम् ॥ ॥ अथ नूतनघृतगुणाः ॥ ॥ अथ पुराणघृतम् ॥ ॥ अथ रोगविशेषे घृतनिषेधः ॥ ॥ अथ तैलगुणाः ॥ ॥ अथैरण्डतैलम् ॥ ॥ अथ सार्षपतैलम् ॥ ॥ अथ कुसुम्भतैलम् ॥ ॥ अथ राजिकातैलम् ॥ ॥ अथ क्षौमादितैलगुणाः ॥ ॥ अथ धान्यतैलम् ॥ ॥ अथ मधुगुणाः ॥ ॥ अथ विशिष्टगुणाः ॥ ॥ अथेक्षुगुणाः ॥ ॥ अथ फाणितम् ॥ ॥अथ गुडः ॥ ॥ अथ जीर्णगुडगुणाः ॥ ॥ अथ शर्करागुणाः ॥ ॥ अथ रायपुरी ॥ ॥ अथ मूत्राष्टकम् ॥ ॥ अथ त्रिफला ॥ ॥ अथ त्रिकटु ॥ ॥ अथ पञ्चकोलम् ॥ ॥ अथ षडूषणम् ॥ ॥ अथ चतुरूषणम् ॥ ॥ अथ चातुर्जातम् ॥ ॥ अथ दशमूलम् ॥ ॥ अथ मध्यमपञ्चमूलानि ॥ ॥ अथ पञ्चवल्कलानि ॥ ॥ अथ पञ्चभृङ्गगुणाः ॥ ॥ अथाम्लपञ्चकम् ॥ ॥ अथ पञ्चाङ्गानि ॥ ॥ अथ संतर्पणगुणाः ॥ ॥ अथ यक्षकर्दमगुणाः ॥ ॥ अथ केशरनामगुणाश्च ॥ ॥ अथ पञ्चसुगन्धिकगुणाः ॥ ॥ अथ षड्रसाः ॥ ॥ अथ मधुरत्रिकम् ॥ ॥ अथ समत्रिकम् ॥ ॥ अथ क्षारत्रयम् ॥ ॥ अथ क्षारपञ्चकम् ॥ ॥ अथ क्षाराष्टकम् ॥ ॥ अथ क्षारद्वयम् ॥ ॥ अथ लवणत्रयम् ॥ ॥ अथ लवणपञ्चकम् ॥ ॥ अथ लवणषट्कम् ॥ ॥ अथ चन्दनम् ॥ ॥ अथ गुडूचीसत्त्वगुणाः ॥ ॥ अथ स्वरसादयः ॥ ॥ अथ स्वरसकल्पना ॥ ॥ अथ पुटपाककल्पना ॥ ॥ अथ कल्कः ॥ ॥ अथ क्वाथः ॥ ॥ अथ हिमकल्पना ॥ ॥ अथ फाण्टकल्पना ॥ ॥ अथ चूर्णकल्पना ॥ ॥ अथ वटककल्पना ॥ ॥ अथावलेहः ॥ ॥ अथ स्नेहपाकविधिः ॥ ॥ अथ लाक्षारसविधिः ॥ ॥ अथासवारिष्टः ॥ ॥ अथ शिलाजतुकरणम् ॥ ॥अधुना धात्वादीनां लक्षणशोधनमारणगुणानाह ॥ ॥ अथ सप्तधातुवर्णाः ॥ ॥ अथ सर्वधातुसामान्यमारणम् ॥ ॥ अथ स्वर्णम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ गुणाः ॥ ॥ अथ शुद्धस्वर्णदलगुणाः ॥ ॥ अथ रौप्यम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ तद्गुणाः ॥ ॥ अथ ताम्रम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथान्यच्च त्रपुताम्रम् ॥ ॥ अथ सोमनाथताम्रम् ॥ ॥ अथ सामान्यताम्रगुणाः ॥ ॥ अथ रीतिकांस्ये ॥ ॥ अथ लोहम् ॥ ॥ अथ कान्तलक्षणम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ निरुत्थानम् ॥ ॥ अथ गुणाः ॥ ॥ अथानुपानानि ॥ ॥ अथ मण्डूरकरणम् ॥ ॥ अथ वङ्गम् ॥ ॥ अथ नागम् ॥ ॥ अथाभ्रकम् ॥ ॥ अथ स्वर्णमाक्षिकम् ॥ ॥ अथ पारद: ॥ ॥ अथ गन्धक: ॥ ॥ अथ हिड्गुल: ॥ ॥ अथ रत्नानां शोधनमारणे ॥ ॥ अथ वैक्रन्तम् ॥ ॥ अथ शेषरत्नशोधनमारणानि ॥ ॥ अथ शिलाजतु ॥ ॥ अथ सिन्दूरम् ॥ ॥ अथ समुद्रफेन: ॥ ॥ अथैरण्डबीजशुद्धि: ॥ ॥ अथ शड्ख: ॥ ॥ अथ भूनागसत्वमयूरपक्षसत्वगुणा: ॥ ॥ अथ कर्पूरशुद्धि: ॥ ॥ अथ टड्कणशोधनम् ॥ ॥ अथ विषम् ॥ ॥ अथ गौरीपाषाणाभेद: ॥ ॥ अथाश्रसत्वपातनविधि: ॥ ॥ अथ क्षारकल्पना ॥ ॥ अथ वमनम् ॥ ॥ अथ विरेचनम् ॥ ॥ अथ रेचनम् ॥ ॥ अथ मेघनादरेचनरस: ॥ ॥ अथ नस्यम् ॥ ॥ अथ कर्णपूरणम् ॥ ॥ अथ रक्तस्त्रुति: ॥ ॥ अथ जृम्भालक्षणम् ॥ ॥ अथ हृल्लासलक्षणम् ॥ ॥ तत्र क्रमप्राप्तं प्रथमं ज्वरलक्षणम् ॥ ॥ अथ ज्वरनिदानम् ॥ ॥ अथ क्रमप्राप्तस्थ ज्वरस्य चिकित्सा ॥ ॥ अथौषधाद्यजीर्णेऽन्नं न ग्राह्यम् ॥ ॥ अथ ज्वरे पथ्यानि ॥ ॥ अथ पाचनम् ॥ ॥ अथाष्टाड्गावलेहिका ॥ ॥ अथ सन्धिकादीनां चिकित्सा ॥ ॥ शीताड्गसंनिपातोऽसाध्य: ॥ ॥ अथ विषमज्वर: ॥ ॥ अथ चूर्णानि ॥ ॥ अथ कुरण्टकादिनामा लेह: ॥ ॥ अथ घृतानि ॥ ॥ अथ तैलानि ॥ ॥ अथ पाका: ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथ सप्तधातुगतज्वराणां लक्षणम् ॥ ॥ अथातीसारनिदानम् ॥ ॥ अथ अवलेह: ॥ ॥ अथ अष्टकम् ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथ ग्रहणीनिदानम् ॥ ॥ अथातो ग्रहणीचिकित्सितं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्लेष्मग्रहणीचिकित्सा ॥ ॥ अथ चित्रकादिगुटिका ॥ ॥ अथ तक्रहरीतकी ॥ ॥ अथ कल्याणकावलेह: ॥ ॥ अथ चूर्णम् ॥ ॥ अथ बिल्वाद्यं घृतम् ॥ ॥ अथ द्राक्षासवः ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथार्शोरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ त्रिदोषजसहजार्शसोर्लक्षणम् ॥ ॥ अथौपद्रवादसाध्यत्वमाह ॥ ॥ अथ तिलादिमोदक:॥ ॥ अथ काड्कायनगुटिका ॥ ॥ अथ बाहुशालगुड: ॥ ॥ अथार्शसि शर्करासव: ॥ ॥ अथ व्योषाद्यं चूर्णम् ॥ ॥ अथ भस्मकलक्षणमाह ॥ ॥ अथ विषूच्यादिचिकित्सा ॥ ॥ अथ भस्मकरोगनिदानचिकित्से ॥ ॥ अथ क्रिमिनिदानम् ॥ ॥ अथात: पाण्डुरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ रक्तपित्तनिदानम् ॥ ॥ अथ राजयक्ष्मनिदानम् ॥ ॥ अथ क्षयरोगचिकित्सा ॥ ॥ अथ कासनिदानम् ॥ ॥ अथ कासचिकित्सा । ॥ अथातो हिक्कानिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्वासचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ तमकस्यैव पित्तानुबन्धाज्ज्वरादियोगेन प्रतमकसंज्ञामाह ॥ ॥ अथ श्वासचिकित्सा ॥ ॥ अथ स्वरभेदनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातोऽरोचकनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातश्छर्दिनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ छर्दिचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ सैन्धवादियोग: ॥ ॥ अथ त्रिदोषच्छर्दि: ॥ ॥ अथ तृष्णानिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ तृष्णाचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ मूर्च्छानिदानम् ॥ ॥ अथ पानात्ययपरमदपानाजीर्णपानविभ्रमनिदानचिकित्से ॥ ॥ अथ दाहनिदानम् ॥ ॥ अथोन्मादनिदानं चिकित्सा च ॥ ॥ अथ भूतोन्मादनिदानमाह ॥ ॥ अथापस्मारनिदानमाह ॥ ॥ अथ वातरोगनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्रोत्रादिगतलक्षणमाह ॥ ॥ अथाक्षेपकादिरोगलक्षणान्याह ॥ ॥ अथानुक्तवातरोगसड्वहार्थमाह ॥ ॥ अथ तच्चिकित्सा ॥ ॥ अथ हिड्ग्वादिचूर्णम् ॥ ॥ अथ प्रत्याध्मानोरुस्तम्भयो: कल्कादि ॥ ॥ अथावशिष्टानां प्रतीकार: ॥ ॥ अथ सर्ववातरोगाणां सामान्यप्रतीकारानाह ॥ ॥ अथ गुग्गुलव: ॥ ॥ अथ तैलानि ॥ ॥ अथ पञ्चतिक्तघृतम् ॥ ॥ अथ वातरक्तनिदानम् ॥ ॥ अथ वातरक्तचिकित्सा ॥ ॥ अथोरुस्तम्भ्रनिदानमाह ॥ ॥ अथामवातनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथ शूलनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ परिणामशूलनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथातोदावर्तनिदानम् ॥ ॥ अथानाहनिदानम् ॥ ॥ अथातो हृद्रोगनिदानम् ॥ ॥ अथोरग्रहनिदानम् ॥ ॥ अथ मूत्राघातनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातो मेहनिदानम् ॥ ॥ अथ ग्रन्थान्तरे बहुमूत्रमेहनिदानम् ॥ ॥ अथोदरनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथ तच्चिकित्सा ॥ ॥ अथ सर्वोदरेषु सामान्यविधि: ॥ ॥ अथात: शोथनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ मुष्कान्त्रवृद्धिवर्ध्मरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ गलगण्डगण्डमालापचीग्रन्थ्यर्बुदनिदानमाह ॥ ॥ अथ श्लीपदनिदानम् ॥ ॥ अथ विद्रधिनिदानम् ॥ ॥ अथातो विद्रधिचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ व्रणशोथनिदानम् ॥ ॥ अथ सद्योव्रणनिदानमाह ॥ ॥ अथाग्निदग्धव्रननिदानमाह ॥ ॥ अथ भग्नव्रणनिदानमाह ॥ ॥ अथ नाडीव्रणनिदानम् ॥ ॥ अथ भगन्दरनिदानम् ॥ ॥ अथोपदंशनिदानम् ॥ ॥ अथ शूकदोषनिदानम् ॥ ॥ अथ कुष्ठनिदानम् ॥ ॥ अथ शीतपित्तोदर्दकोठनिदानम् ॥ ॥ अथाम्लपित्तनिदानम् ॥ ॥ अथ विसर्पनिदानमाह ॥ ॥ अथ विस्फोटनिदानमाह ॥ ॥ अथ स्त्रायुकनिदानम् ॥ ॥ अथ मसूरिकानिदानमाह ॥ ॥ अथ क्षुद्ररोगनिदानमाह ॥ ॥ अथ मुखरोगाणां निदानान्याह ॥ ॥ अथ कर्णरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ नासारोगाधिकार: ॥ ॥ अथ शिरोरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ नेत्ररोगाणांधिकार: ॥ ॥ अथ स्त्रीरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥ ’ योगरत्नाकर ’ हा आयुर्वेदावरील मूळ प्राचीन ग्रंथ आहे. Tags : ayurvedyogaratnakarआयुर्वेदयोगरत्नाकर ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥ Translation - भाषांतर ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥तत्र योनिव्यापद्रोगाणां निदानान्याह ॥ विंशतिर्व्यापदो योनेर्निर्दिष्टा रोगसड्गहे । मिथ्याचारेण ता: स्त्रीणां प्रदुष्टेनार्तवेन च ॥ जायन्ते बीजदोषाच्च दैवाद्वा शृणु ता: पृथक् ॥१॥अथ रोगिणीनां योनीनां नामान्याह ॥ उदावर्ता तथा वन्ध्या विप्लुता च परिप्लुता । वातला योनिरुग्ज्ञेया वातदोषेण पञ्चधा । पञ्चधा पित्तदोषेण तत्रादौ लोहितक्षया । प्रस्त्रंसिनी वामिनी च पुत्रघ्नी पित्तला तथा ॥२॥अल्पानन्दा कर्णिनी च चरणानन्दपूर्विका । अतिपूर्वापि सा ज्ञेया श्लेष्मला च कफादिमा: ॥३॥षण्ढयण्डिना च महती सूचीवक्रा त्रिदोषिणी । पञ्चैता योनय: प्रोक्ता: सर्वदोषप्रकोपत: ॥४॥अथ तासां लक्षणमाह ॥ सा फेनिलमुदावर्ता रज: कृच्छ्रेण मुञ्चति । सा तु योनि: कफेनैवमार्तवं च विमुञ्चति ॥१॥वन्ध्या नष्टार्तवा ज्ञेया विप्लुता नित्यवेदना । परिप्लुतायां भवति ग्राम्यधर्मेण रुग् भृशम् ॥२॥वातला कर्कशा स्तब्धा शूलनिस्तोदपीडिता । चतसृष्वपि चाद्यासु भवन्त्यानिलवेदना: ॥३॥सदाहं क्षीयते रक्तं यस्यां सा लोहितक्षया । प्रस्त्रंसिनी स्त्रंसते च क्षोभिता दुष्प्रजायिनी ॥४॥सवातमुद्गिरेद्वीजं वामिनी रजसा युतम् । स्थितं स्थितं हन्ति गर्भ पुत्रघ्नी रक्तसंक्षयात् ॥५॥अत्यर्थं पित्तला योनिर्दाहपाकज्वरान्विता । चतसृष्वपि चाद्यासु पित्तलिड्गोच्छ्रयो भवेत् ॥६॥अल्पानन्दा न सन्तोषं ग्राम्यधर्मेण गच्छति । कर्णिन्यां योनौ श्लेष्मासृग्भ्यां प्रजायते ॥७॥मैथुनाचरणात्पूर्वं पुरुषादतिरिच्यते । बहुशश्चातिचरणा तयोर्बीजं न विन्दति ॥८॥श्लेष्मला पिच्छिला योनि: कण्डूग्रस्तातिशीतला । चतसृष्वपि चाद्यासु श्लेष्मलिड्गोच्छ्रयो भवेत् ॥९॥अनार्तवास्तनी खण्डी खरस्पर्शी च मैथुने । अतिकायगृहीतायास्तरूण्या अण्डिनी भवेत् ॥१०॥विवृता तु महायोनि: सूचीवक्रातिसंवृता । सर्वलिड्गसमुत्थाना सर्वदोषप्रकोपजा ॥११॥चतसृश्वपि चाद्यासु सर्वलिड्गनिदर्शनम् । पञ्चासाध्या भवन्तीह योनय: सर्वदोषजा: ॥१२॥इति योनिव्यापद्रोगनिदानम् ॥ अथ योनिकन्दस्य निदानमाह ॥ दिवा स्वप्नादतिकोधाद् व्यायामादतिमैथुनात् । क्षताच्च नखदन्ताद्द्यैर्वाताद्या: कुपिता मला: ॥१॥पूयशोणितसड्गाशं लकुचाकृतिसन्निभम् । जनयन्ति यदा योनि नाम्ना कन्दं तु योनित: ॥२॥रुक्षं विवर्णं स्फुटितं वातिकं तं विनिर्दिशेत् । दाहरागज्वरयुतं विद्यात्पित्तात्मकं तु तम् ॥३॥नीलपुष्पप्रतीकाशं कण्डूमन्तं कफात्मकम् । सर्वलिड्गसमायुक्तं सन्निपातात्मकं वदेत् ॥४॥इति योनिकन्दनिदानम् ॥ अथ योनिव्यापद्रोगाणां चिकित्सा ॥ तत्र वन्ध्या चिकित्सा ॥ आर्तवादर्शने नारी मत्स्यान्सेवेत नित्यश: । काञ्जिकं च तिलान्माषानुदश्विच्च तथा दधि ॥१॥पीतं ज्योतिष्मतीपत्रराजिकोग्रासनं त्र्यहम् । शीतेन पयसा पिष्टं कुसुमं जनयेद् ध्रुवम् ॥२॥सगुड: श्यामतिलानां क्वाथ: पीत: सुशीतलो नार्या । जनयति कुसुमं सहसा गतमपि सुचिरं निरातड्कम् ॥३॥तिलशेलुकारवीणां क्वाथं पीत्वा नष्टरजा महिला । सगुडं शिशिरं त्रिदिनाज्जनयति कुसुमं न संदेह: ॥४॥इक्ष्वाकुबीजदन्तीचपलागुडमदनकिण्वयावशूकै: । सस्नुकक्षीरैर्वर्तिर्योनिगता कुसुमसंजननी ॥५॥इति वन्द्याचिकित्सा ॥ अथ वन्ध्याया: गर्भप्रदभेषजमाह ॥ बलासिता सातिबला मधूकं वटस्य शृड्गं गजकेशरं च । एतन्मधुक्षीरघृतैर्निपीय वन्ध्या सुपुत्रं नियतं प्रसूते ॥१॥अश्वगन्धाकषायेण सिद्धं दुग्धं घृतान्वितम् । ऋतुस्नाताड्गना प्रात: पीत्वा गर्भ दधाति हि ॥२॥पुष्पोद्धृतं लक्ष्मणाया मूलं दुग्धेन कन्यया । पिष्टं पीत्वा ऋतुस्नाता गर्भं धत्ते न संशय: ॥३॥कुरण्टमूलं धातक्या: कुसुमानि वटाड्कुरा: । नीलोत्पलं पयोयुक्तमेतद्गर्भप्रदं ध्रुवम् ॥४॥याबला पिबति पार्श्वपिप्पलं जीरकेण सहितं हिताशना । श्वेतया विशिखपुड्खया युतं सा सुतं जनयतीह नान्यथा ॥५॥पत्रमेकं पलाशस्य पिष्ट्वा दुग्धेन गर्भिणी । पीत्वा पुत्रमवाप्नोति वीर्यवन्तं न संशय: ॥६॥शूकरशिम्बीमूलं मध्यं वा दधिफलस्य सपयस्कम् पीत्वाथोभयलिड्गीबीजं कन्यां न सूते स्त्री ॥७॥क्षीरेण श्वेतबृहतीमूलं नासापुटे पिबेत् । पुत्रार्थं दक्षिणानासा वामया कन्यकार्थिनी ॥८॥लक्ष्मणा क्षीरसंयुक्ता नस्ये पाने प्रदाप्यताम् । तेन सापि लभेद्गर्भं पुत्रो विद्याधरो भवेत् ॥९॥वामनाट्या भवेत्कन्या पुत्रो दक्षिणया भवेत् । रक्तेऽधिके भवेत्कन्या पुत्र: शुक्रेऽधिके भवेत् ॥१०॥शुक्रशोणितमिश्रेण भवेद्योऽसौ नपुंसक: । एरण्डस्य तु बीजानि मातुलुड्गस्य चैव हि । सर्पिषा परिपिष्टानि पिबेद्गर्भप्रदानि च ॥११॥इति चक्रदत्तात् ॥ लड्कारं लक्ष्मणायाश्च मूलं कण्ठे बद्धं सर्पिषा नस्ययोगात् । पीत्वा सूते पुत्रत्यन्तवीर्यं पश्चादन्यनप्यमन्दाड्गयष्टि: ॥१२॥तिलतैलदुग्धफाणितदधिघृतमेकत्र पाणिना मथितम् । पीतं सपिप्पलीकं जनयति पुत्रं परं महिला ॥१३॥एकस्य मातुलिड्गस्य बीजानि सकलान्यपि । ऋत्वन्ते दुग्धपिष्टानि पीत्वाप्रोत्यबला सुतम् ॥१४॥अथ फलघृतम् ॥ मञ्जिष्ठा मधुकं कुष्ठं त्रिफला शर्करा बला । मेदे पयस्या काकोली मूलं चैवाश्मगन्धजम् ॥१॥अजमोदा हरिद्रे द्वे प्रियड्गु: कटुरोहिणी । उत्पलं कुमुदं लाक्षा काकोल्यौ चन्दनद्वयम् ॥२॥एतेषां कार्षिकैर्भागैर्घृतप्रस्थं विपाचयेत् । शतावरीरसं क्षीरं घृताद्देयं चतुर्गुणम् ॥३॥सर्पिरेतन्नर: पीत्वा स्त्रीषु नित्यं वृषायते । पुत्राञ्जनयते वीरान्मेधाढ्यान्प्रियदर्शनात् ॥४॥या चैवारिथगर्भा स्यात्पुत्रं वा जनयेन्मृतम् । अल्पायुषं वा जनयेद्या च कन्यां प्रसूयते ॥५॥योनिरोगे रजोदोषे परिस्त्रावे च शस्यते । प्रजावर्धनमायुष्यं सर्वग्रहनिवारणम् ॥६॥नाम्ना फलघृतं ह्येतदश्विभ्यां परिकीर्तितम् । अनक्तं लक्ष्मणामूलं क्षिपन्त्यत्र चिकित्सका: ॥७॥जीवद्वत्सैकवर्णाया घृतं त्वत्र प्रयुज्यते । आरण्यगोमयेनेह वह्निज्वाला च दीयते ॥८॥इति वन्ध्याचिकित्सा ॥ अथ गर्भनिवारणम् ॥ पिप्पलिविडड्गटाड्कसमचूर्णं या पिबेत्पयसा । ऋतुसमये न हि तस्या गर्भ: संजायते क्वापि ॥१॥आरनालपरिपेषितं त्र्यहं या जपाकुसुममत्ति पुष्पिणी । सत्पुराणगुडमुष्टिसेविनी सा दधाति न हि गर्भमड्गना ॥२॥तैलाविलं सैन्धवखण्डमादौ निधाय रण्डा निजयोनिमध्ये । नरेण सार्धं रतिमाततोनि या सा न गर्भं लभते कदाचित् ॥३॥तण्डुलीयकमूलानि पिष्ट्वा तण्डुलवारिणा । ऋत्वन्ते तु त्र्यहं पीत्वा वन्ध्या: कुर्वन्ति योषित: ॥४॥धूपिते योनिरन्ध्रे तु निम्बकाष्ठैश्च युक्तित: । ऋत्वन्ते रमते या स्त्री न सा गर्भमवाप्नुयात् ॥५॥तालीसगैरिके पीते बिडालपदमात्रके । शीताम्बुना चतुर्थेऽह्नि वन्ध्या नारी प्रजायते ॥६॥ग्राह्यं कृष्णचतुर्दश्यां धत्तूरस्य च मूलकम् । कटिं बद्ध्वा रमेत्कान्तं न गर्भ: संभवेत्क्वचित् ॥७॥मुक्ते न लभते गर्भं पुरा नागार्जुनोदितम् । तन्मूलचूर्णं योनिस्थं न गर्भ: संभवेत्क्वचित् ॥८॥इति गर्भनिवारणम् ॥ अथ गर्भपातनविधि: ॥ गृञ्जनबीजं टड्कत्रितयं तावच्च दाडिमीमूलम् । तुवरीमीमूलम् । तुवरीटड्कद्वितयं सिन्दूरं टड्कयुगुलं च ॥१॥संमर्द्य खल्वमध्ये तोयेनैतन्निपीय गर्भवती । रण्डा योषिद् गर्भं वेश्या वा पातयत्याशु ॥२॥निर्गुण्डीद्रवसंपिष्टं चित्रमूलं मधुप्लुतम् । कर्षं पीत्वा स्त्रवत्याशु गर्भं रण्डा कुलोद्भवम् ॥३॥काण्डमेरण्डपत्रस्य योनावष्टाड्गुलं क्षिपेत् । चतुर्मासोद्भवो गर्भ: स्त्रवत्येव हि तत्क्षणात् ॥४॥देवालये तु यच्चूर्णं कर्षैकं तोयपेषितम् । पिबेद् गर्भवती नारी गर्भ: स्त्रवति तत्क्षणात् ॥५॥आलोड्य काञ्जिकैर्घोटीपुरीषं वस्त्रगालितम् । संसीधूग्रासुरीतैलविषमागतगर्भनुत् ॥६॥इति गर्भपातनम् ॥ अथावशिष्ठयोनिव्यापद्रोगाणां चिकित्सा ॥ तासु योनिषु चाद्यासु स्नेहादिक्रम इष्यते । वत्स्यभ्यड्गपरीषेकप्रलेपा: पिचुधारणम् ॥१॥नतवार्ताकिनीकुष्ठसैन्धवामरदारुभि: । तिलतैलं पचेन्नारी पिचुं तस्य विधारयेत् । विप्लुतायां सदा योनौ व्यथा तेन प्रशाम्यति । वातलां कर्कशां स्तब्धामल्पस्पर्शो तथैव च ॥३॥कुम्भीस्वेदैरुपचरेदन्तर्वेश्मनि संवृते । धारयेद्वा पिचुं योनौ तिलतैलस्य सा सदा ॥४॥रास्त्राश्वगन्धावृषकैर्योनिशूलहरं पय: । गुडूचीत्रिफलादन्तीक्वाथैश्च परिषेचनम् ॥५॥बिल्वमार्कवजं बीजं कल्कं मद्येन पाययेत् । तेन योनिगतं शूलमाशु शाम्यति योषिताम् ॥६॥उपकुञ्चिकां पिपलीं च मदिरालाभत: पिबेत् । सौवर्चलेन संयुक्तं योनिशूलानिवारणम् ॥७॥पित्तलानां च योनीनां सेकाभ्यड्गपिचुक्रिया: । शीता: पित्तहरा: कार्या: स्नेहनार्थं घृतानि च ॥८॥प्रस्त्रंसिनीं घृताभ्यक्तां क्षीरस्विन्नां प्रवेशयेत् । विधाय वेसवारेण ततो बन्धं समाचरेत् ॥९॥अथ वेसवार: ॥ शुण्ठीमरीचकृष्णाभिर्धान्यकाजाजिदाडिमै: । पिप्पलीमूलसंयुक्तैर्वेसवार: स्मृतो बुधै: ॥१॥धात्रीरसं सितायुक्तं योनिदाहे पिबेत्सदा । सूर्यक्रान्ताभवं मूलम् पिबेद्वा तण्डुलाम्बुना ॥२॥योन्यां तु पूयस्त्राविण्यां शोधनद्रव्यनिर्मितै: । सगोमूत्रै: सवलणै: पिण्डै: संपूरणं हितम् ॥३॥पिचवश्च घृताभ्यक्ताश्चन्दनाम्भ:समुत्थिता: । योनौ स्थाप्या: स्त्रिया दाहकृच्छ्रपाकप्रशान्तये ॥४॥योन्यां बलासजुष्टायां सर्वं रुक्षोष्णमौषधम् । तैलं साधु यवान्नं च पथ्यारिष्टं च योजयेत् ॥५॥गुडूचीत्रिफलादन्तीक्वथितोदकधारया । योनिं प्रक्षालयेत्तेन तत: कण्डू: प्रशाम्यति ॥६॥मुद्गपुष्पं सखदिरं पथ्या जातीफलं तथा । वृकीपूगं च संचूर्ण्य वस्त्रपूतं क्षिपेद्भगे ॥७॥योनिर्भवति संकीर्णा न स्त्रवेच्च जलं तत: । कपिकच्छूभवम् मूलं क्वाथयेद्विधिना भवेत् ॥८॥योनि: सड्कीर्णतां याति क्वाथेनानेन धावनात् । पिप्पल्या मरिचैर्माषै: शताह्वाकुष्ठसैन्धवै: ॥९॥वर्तिस्तुल्या प्रदेशिन्या धार्या योनिविशोधनी । सुरामण्डोत्थितो धार्य: पिचुर्योनौ कफात्मनि ॥१०॥कण्डूपैच्छिल्यसंस्त्रावशैथिल्यविनिवृत्तये । सुगन्धानां पदार्थानां कल्कचूर्णै: शृतै: कृत: ॥११॥योनौ दौर्गन्ध्यशमन: पूयपैच्छिल्यभाजि च । सन्निपातसमुत्थानां कार्या योन्या यदा क्रिया: ॥११॥साधारणा दशाड्घ्रीश्रीमदाक्वाथपिचुर्हित: । जीरकद्वितयं कृष्णा सुषवी सुरभिर्वचा ॥१३॥वासकं सैन्धवश्चापि यवक्षारो यवानिका । एषां चूर्णं घृते किंचिद् भृष्ट्वा खण्डेन मोदकम् ॥१४॥कृत्वा खादेद्यथावह्नि योनिरोगाद्विमुच्यते । मूषकक्वाथसंसिद्धतिलतैलकृत: पित्तु: ॥ नाशयेद्योनिरोगांस्तान्धृतो योनौ न संशय: ॥१५॥अथ त्रिफलादिघृतम् ॥ त्रिफलां द्वौ सहचरौ गुडूचीं सपुनर्नवाम् । शुकनासं हरिद्रे द्वे रास्त्रामेदाशतावरी: ॥१॥कल्कीकृत्य घृतप्रस्थं पचेत्क्षीरे चतुर्गुणे । तत्सिद्धं पाययेन्नारीं योनिरोगप्रशान्तये ॥२॥इति योनिव्यापद्रोगचिकित्सा ॥ अथ योनिकन्दस्य चिकित्सा ॥ गैरिकाम्रास्थिजठररजन्यञ्जनकट्फला: । पूरयेद्योनिमेतेषां चूर्णै: क्षौद्रसमन्वितै: ॥१॥त्रिफलाया: कषायेण सक्षौद्रेण च सेचयेत् । प्रमदायोनिकन्देन व्याधिना परिमुच्यते ॥२॥आखोर्मांसं सपदि बहुधा सूक्ष्मखण्डीकृतं तत्तैले पाच्यं द्रवति नियतं यावदेतेन सम्यक् । तत्तैलाक्तं वसनमनिशं योनिभागे दधाना सत्यं व्रीडाजनकमबलायोनिकन्दं निहन्ति ॥३॥इति योनिकन्दचिकित्सा ॥ इति योनिरोगाधिकार: ॥ N/A References : N/A Last Updated : March 17, 2018 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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