संस्कृत सूची|शास्त्रः|आयुर्वेदः|योगरत्नाकरः| ॥ अथ धान्यादिफलकन्दशाकगुणाः ॥ योगरत्नाकरः अथ योगरत्नाकरस्यानुक्रमणिका । विषयसूची ॥ अथ योगरत्नाकरः ॥ ॥ अथ पादचतुष्टयम् ॥ ॥ अथ दूतपरीक्षा ॥ ॥ अथ दूतपरीक्षा ॥ ॥ अथ शकुनाः ॥ ॥ अथ रोगिणां अष्टस्थानानि लक्षयेत् ॥ ॥ अथ नाडीपरीक्षा ॥ ॥ अथ मूत्रपरीक्षा ॥ ॥ अथ दोषत्रयलक्षणानि ॥ ॥ अथ मलपरीक्षा ॥ ॥ अथ शब्दपरीक्षा ॥ ॥ अथ स्पर्शपरीक्षा ॥ ॥ अथ रूपपरीक्षा ॥ ॥ अथ दृक्परीक्षा ॥ ॥ अथास्यपरीक्षा ॥ ॥ अथ जिव्हापरीक्षा ॥ ॥ अथ कालज्ञानम् ॥ ॥ अथ देशाः ॥ ॥ अथ केषु मासेषु दोषत्रयप्रकोपः ॥ ॥ केषु ऋतुषु दोषोत्पत्तिः ॥ ॥ अथ वातादिप्रकोपः ॥ ॥ अथ दोषत्रयलक्षणानि ॥ ॥ अथ दोषत्रयशमनम् ॥ ॥ अथाहर्निशदोषत्रयप्रवर्तनम् ॥ ॥ अथ आमव्याधिलक्षणम् ॥ ॥ अथ तत्प्रतीकारः ॥ ॥ अथ वयोविचारः ॥ ॥ अथ प्रकृतिः ॥ ॥ अथारोगलक्षणम् ॥ ॥ अथ परिभाषा ॥ ॥ अथ कलिङ्गपरिभाषा ॥ ॥ अथ धान्यादिफलकन्दशाकगुणाः ॥ ॥ अथ तमाखुगुणाः ॥ ॥ अथ मांसगुणाः ॥ ॥ अथानूपजातिलक्षणं तद्रुणाश्च ॥ ॥ अथ जाङ्गलमांसगुणाः ॥ ॥ अथानूपमांसगुणाः ॥ ॥ अथ मत्स्यादिजलजन्तवः ॥ ॥ अथ शङ्खादिगुणाः ॥ ॥ अथ सिद्धान्नादिपाकगुणकथनम् ॥ ॥ अथ साराणि ॥ ॥ अथ यूषाः ॥ ॥ अथ सूपाः ॥ ॥ अथ पर्पटाः ॥ ॥ अथ मुद्गतण्डुलकृशरा ॥ ॥ अथ पायसम् ॥ ॥ अथ पोलिका ॥ ॥ अथाङ्गारिका ॥ ॥ अथ वटकाः ॥ ॥ अथ पिष्टभक्ष्यजनितगुणाः ॥ ॥ अथ पानकानि ॥ ॥ अथ रागखाण्डवः ॥ ॥ अथ रसाला शिखरिणी ॥ ॥ अथ भरित्थम् ॥ ॥ अथ पृथुकादयः ॥ ॥ अथ वेसवारः ॥ ॥ अथ आयुर्विचारमाह ॥ ॥ अथ स्वल्पायुषो लक्षणानि ॥ ॥ अथ नित्यप्रकारमाह ॥ ॥ अथ रसादीनां पाकलक्षणमाह ॥ ॥ अथ रात्रिचर्या ॥ ॥ अथ ऋतुचर्यामाह ॥ ॥ अथ वर्षासु हिताहितमाह ॥ ॥ अथ शरदि हिताहितमाह ॥ ॥ अथ हेमन्ते हिताहितमाह ॥ ॥ अथ शिशिरे हिताहितमाह ॥ ॥ अथ वसन्ते हिताहितमाह ॥ ॥ अथ ग्रीष्मे हिताहितमाह ॥ ॥ अथ जलगुणाः ॥ ॥ अथोष्णवारिगुणाः ॥ ॥ अथ ऋतुविशेषे जलक्काथनियमः ॥ ॥ अथ रात्रिसेवितोष्णोदकगुणाः ॥ ॥ अथ निषिद्धमुष्णोदकम् ॥ ॥ अथोष्णोदकप्रयोगः ॥ ॥ अथोष्णवारिमन्दाचरणम् ॥ ॥ अथ शृतशीतगुणाः ॥ ॥ अथोष्णजलविधिः ॥ ॥ अथ दुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ तत्र वर्णभेदाः ॥ ॥ अथ माहिषम् ॥ ॥ अथाजम् ॥ ॥ अथाविकम् ॥ ॥ अथौष्ट्रम् ॥ ॥ अथैभम् ॥ ॥ अथाश्वम् ॥ ॥ अथ गार्दभम् ॥ ॥ अथ मानुषम् ॥ ॥ अथ धारोष्णगुणाः ॥ ॥ अथापक्कदुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ क्वथितदुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ क्षीरमित्राणि ॥ ॥ अथ क्षीरामित्राणि ॥ ॥ अथ सन्तानिकागुणाः ॥ ॥ अथ दधिगुणाः । ॥ अथ निःसारदुग्धदधिगुणाः ॥ ॥ अथ मन्ददधिगुणाः ॥ ॥ अथ सरगुणाः ॥ ॥ अथ तक्रगुणाः ॥ ॥ अथ क्वथिततक्रगुणाः ॥ ॥ अथ नवनीतम् ॥ ॥ अथ चिरन्तननवनीतगुणाः ॥ ॥ अथ घृतगुणाः ॥ ॥ अथ माहिषम् ॥ ॥ अथ आजम् ॥ ॥ अथाविकम् ॥ ॥ अथ नूतनघृतगुणाः ॥ ॥ अथ पुराणघृतम् ॥ ॥ अथ रोगविशेषे घृतनिषेधः ॥ ॥ अथ तैलगुणाः ॥ ॥ अथैरण्डतैलम् ॥ ॥ अथ सार्षपतैलम् ॥ ॥ अथ कुसुम्भतैलम् ॥ ॥ अथ राजिकातैलम् ॥ ॥ अथ क्षौमादितैलगुणाः ॥ ॥ अथ धान्यतैलम् ॥ ॥ अथ मधुगुणाः ॥ ॥ अथ विशिष्टगुणाः ॥ ॥ अथेक्षुगुणाः ॥ ॥ अथ फाणितम् ॥ ॥अथ गुडः ॥ ॥ अथ जीर्णगुडगुणाः ॥ ॥ अथ शर्करागुणाः ॥ ॥ अथ रायपुरी ॥ ॥ अथ मूत्राष्टकम् ॥ ॥ अथ त्रिफला ॥ ॥ अथ त्रिकटु ॥ ॥ अथ पञ्चकोलम् ॥ ॥ अथ षडूषणम् ॥ ॥ अथ चतुरूषणम् ॥ ॥ अथ चातुर्जातम् ॥ ॥ अथ दशमूलम् ॥ ॥ अथ मध्यमपञ्चमूलानि ॥ ॥ अथ पञ्चवल्कलानि ॥ ॥ अथ पञ्चभृङ्गगुणाः ॥ ॥ अथाम्लपञ्चकम् ॥ ॥ अथ पञ्चाङ्गानि ॥ ॥ अथ संतर्पणगुणाः ॥ ॥ अथ यक्षकर्दमगुणाः ॥ ॥ अथ केशरनामगुणाश्च ॥ ॥ अथ पञ्चसुगन्धिकगुणाः ॥ ॥ अथ षड्रसाः ॥ ॥ अथ मधुरत्रिकम् ॥ ॥ अथ समत्रिकम् ॥ ॥ अथ क्षारत्रयम् ॥ ॥ अथ क्षारपञ्चकम् ॥ ॥ अथ क्षाराष्टकम् ॥ ॥ अथ क्षारद्वयम् ॥ ॥ अथ लवणत्रयम् ॥ ॥ अथ लवणपञ्चकम् ॥ ॥ अथ लवणषट्कम् ॥ ॥ अथ चन्दनम् ॥ ॥ अथ गुडूचीसत्त्वगुणाः ॥ ॥ अथ स्वरसादयः ॥ ॥ अथ स्वरसकल्पना ॥ ॥ अथ पुटपाककल्पना ॥ ॥ अथ कल्कः ॥ ॥ अथ क्वाथः ॥ ॥ अथ हिमकल्पना ॥ ॥ अथ फाण्टकल्पना ॥ ॥ अथ चूर्णकल्पना ॥ ॥ अथ वटककल्पना ॥ ॥ अथावलेहः ॥ ॥ अथ स्नेहपाकविधिः ॥ ॥ अथ लाक्षारसविधिः ॥ ॥ अथासवारिष्टः ॥ ॥ अथ शिलाजतुकरणम् ॥ ॥अधुना धात्वादीनां लक्षणशोधनमारणगुणानाह ॥ ॥ अथ सप्तधातुवर्णाः ॥ ॥ अथ सर्वधातुसामान्यमारणम् ॥ ॥ अथ स्वर्णम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ गुणाः ॥ ॥ अथ शुद्धस्वर्णदलगुणाः ॥ ॥ अथ रौप्यम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ तद्गुणाः ॥ ॥ अथ ताम्रम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथान्यच्च त्रपुताम्रम् ॥ ॥ अथ सोमनाथताम्रम् ॥ ॥ अथ सामान्यताम्रगुणाः ॥ ॥ अथ रीतिकांस्ये ॥ ॥ अथ लोहम् ॥ ॥ अथ कान्तलक्षणम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ निरुत्थानम् ॥ ॥ अथ गुणाः ॥ ॥ अथानुपानानि ॥ ॥ अथ मण्डूरकरणम् ॥ ॥ अथ वङ्गम् ॥ ॥ अथ नागम् ॥ ॥ अथाभ्रकम् ॥ ॥ अथ स्वर्णमाक्षिकम् ॥ ॥ अथ पारद: ॥ ॥ अथ गन्धक: ॥ ॥ अथ हिड्गुल: ॥ ॥ अथ रत्नानां शोधनमारणे ॥ ॥ अथ वैक्रन्तम् ॥ ॥ अथ शेषरत्नशोधनमारणानि ॥ ॥ अथ शिलाजतु ॥ ॥ अथ सिन्दूरम् ॥ ॥ अथ समुद्रफेन: ॥ ॥ अथैरण्डबीजशुद्धि: ॥ ॥ अथ शड्ख: ॥ ॥ अथ भूनागसत्वमयूरपक्षसत्वगुणा: ॥ ॥ अथ कर्पूरशुद्धि: ॥ ॥ अथ टड्कणशोधनम् ॥ ॥ अथ विषम् ॥ ॥ अथ गौरीपाषाणाभेद: ॥ ॥ अथाश्रसत्वपातनविधि: ॥ ॥ अथ क्षारकल्पना ॥ ॥ अथ वमनम् ॥ ॥ अथ विरेचनम् ॥ ॥ अथ रेचनम् ॥ ॥ अथ मेघनादरेचनरस: ॥ ॥ अथ नस्यम् ॥ ॥ अथ कर्णपूरणम् ॥ ॥ अथ रक्तस्त्रुति: ॥ ॥ अथ जृम्भालक्षणम् ॥ ॥ अथ हृल्लासलक्षणम् ॥ ॥ तत्र क्रमप्राप्तं प्रथमं ज्वरलक्षणम् ॥ ॥ अथ ज्वरनिदानम् ॥ ॥ अथ क्रमप्राप्तस्थ ज्वरस्य चिकित्सा ॥ ॥ अथौषधाद्यजीर्णेऽन्नं न ग्राह्यम् ॥ ॥ अथ ज्वरे पथ्यानि ॥ ॥ अथ पाचनम् ॥ ॥ अथाष्टाड्गावलेहिका ॥ ॥ अथ सन्धिकादीनां चिकित्सा ॥ ॥ शीताड्गसंनिपातोऽसाध्य: ॥ ॥ अथ विषमज्वर: ॥ ॥ अथ चूर्णानि ॥ ॥ अथ कुरण्टकादिनामा लेह: ॥ ॥ अथ घृतानि ॥ ॥ अथ तैलानि ॥ ॥ अथ पाका: ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथ सप्तधातुगतज्वराणां लक्षणम् ॥ ॥ अथातीसारनिदानम् ॥ ॥ अथ अवलेह: ॥ ॥ अथ अष्टकम् ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथ ग्रहणीनिदानम् ॥ ॥ अथातो ग्रहणीचिकित्सितं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्लेष्मग्रहणीचिकित्सा ॥ ॥ अथ चित्रकादिगुटिका ॥ ॥ अथ तक्रहरीतकी ॥ ॥ अथ कल्याणकावलेह: ॥ ॥ अथ चूर्णम् ॥ ॥ अथ बिल्वाद्यं घृतम् ॥ ॥ अथ द्राक्षासवः ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथार्शोरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ त्रिदोषजसहजार्शसोर्लक्षणम् ॥ ॥ अथौपद्रवादसाध्यत्वमाह ॥ ॥ अथ तिलादिमोदक:॥ ॥ अथ काड्कायनगुटिका ॥ ॥ अथ बाहुशालगुड: ॥ ॥ अथार्शसि शर्करासव: ॥ ॥ अथ व्योषाद्यं चूर्णम् ॥ ॥ अथ भस्मकलक्षणमाह ॥ ॥ अथ विषूच्यादिचिकित्सा ॥ ॥ अथ भस्मकरोगनिदानचिकित्से ॥ ॥ अथ क्रिमिनिदानम् ॥ ॥ अथात: पाण्डुरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ रक्तपित्तनिदानम् ॥ ॥ अथ राजयक्ष्मनिदानम् ॥ ॥ अथ क्षयरोगचिकित्सा ॥ ॥ अथ कासनिदानम् ॥ ॥ अथ कासचिकित्सा । ॥ अथातो हिक्कानिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्वासचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ तमकस्यैव पित्तानुबन्धाज्ज्वरादियोगेन प्रतमकसंज्ञामाह ॥ ॥ अथ श्वासचिकित्सा ॥ ॥ अथ स्वरभेदनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातोऽरोचकनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातश्छर्दिनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ छर्दिचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ सैन्धवादियोग: ॥ ॥ अथ त्रिदोषच्छर्दि: ॥ ॥ अथ तृष्णानिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ तृष्णाचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ मूर्च्छानिदानम् ॥ ॥ अथ पानात्ययपरमदपानाजीर्णपानविभ्रमनिदानचिकित्से ॥ ॥ अथ दाहनिदानम् ॥ ॥ अथोन्मादनिदानं चिकित्सा च ॥ ॥ अथ भूतोन्मादनिदानमाह ॥ ॥ अथापस्मारनिदानमाह ॥ ॥ अथ वातरोगनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्रोत्रादिगतलक्षणमाह ॥ ॥ अथाक्षेपकादिरोगलक्षणान्याह ॥ ॥ अथानुक्तवातरोगसड्वहार्थमाह ॥ ॥ अथ तच्चिकित्सा ॥ ॥ अथ हिड्ग्वादिचूर्णम् ॥ ॥ अथ प्रत्याध्मानोरुस्तम्भयो: कल्कादि ॥ ॥ अथावशिष्टानां प्रतीकार: ॥ ॥ अथ सर्ववातरोगाणां सामान्यप्रतीकारानाह ॥ ॥ अथ गुग्गुलव: ॥ ॥ अथ तैलानि ॥ ॥ अथ पञ्चतिक्तघृतम् ॥ ॥ अथ वातरक्तनिदानम् ॥ ॥ अथ वातरक्तचिकित्सा ॥ ॥ अथोरुस्तम्भ्रनिदानमाह ॥ ॥ अथामवातनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथ शूलनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ परिणामशूलनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथातोदावर्तनिदानम् ॥ ॥ अथानाहनिदानम् ॥ ॥ अथातो हृद्रोगनिदानम् ॥ ॥ अथोरग्रहनिदानम् ॥ ॥ अथ मूत्राघातनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातो मेहनिदानम् ॥ ॥ अथ ग्रन्थान्तरे बहुमूत्रमेहनिदानम् ॥ ॥ अथोदरनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथ तच्चिकित्सा ॥ ॥ अथ सर्वोदरेषु सामान्यविधि: ॥ ॥ अथात: शोथनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ मुष्कान्त्रवृद्धिवर्ध्मरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ गलगण्डगण्डमालापचीग्रन्थ्यर्बुदनिदानमाह ॥ ॥ अथ श्लीपदनिदानम् ॥ ॥ अथ विद्रधिनिदानम् ॥ ॥ अथातो विद्रधिचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ व्रणशोथनिदानम् ॥ ॥ अथ सद्योव्रणनिदानमाह ॥ ॥ अथाग्निदग्धव्रननिदानमाह ॥ ॥ अथ भग्नव्रणनिदानमाह ॥ ॥ अथ नाडीव्रणनिदानम् ॥ ॥ अथ भगन्दरनिदानम् ॥ ॥ अथोपदंशनिदानम् ॥ ॥ अथ शूकदोषनिदानम् ॥ ॥ अथ कुष्ठनिदानम् ॥ ॥ अथ शीतपित्तोदर्दकोठनिदानम् ॥ ॥ अथाम्लपित्तनिदानम् ॥ ॥ अथ विसर्पनिदानमाह ॥ ॥ अथ विस्फोटनिदानमाह ॥ ॥ अथ स्त्रायुकनिदानम् ॥ ॥ अथ मसूरिकानिदानमाह ॥ ॥ अथ क्षुद्ररोगनिदानमाह ॥ ॥ अथ मुखरोगाणां निदानान्याह ॥ ॥ अथ कर्णरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ नासारोगाधिकार: ॥ ॥ अथ शिरोरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ नेत्ररोगाणांधिकार: ॥ ॥ अथ स्त्रीरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ धान्यादिफलकन्दशाकगुणाः ॥ ’ योगरत्नाकर ’ हा आयुर्वेदावरील मूळ प्राचीन ग्रंथ आहे. Tags : ayurvedyogaratnakarआयुर्वेदयोगरत्नाकर ॥ अथ धान्यादिफलकन्दशाकगुणाः ॥ Translation - भाषांतर श्वेता रक्ता स्थूलसूक्ष्मा ये चान्ये शालयः शुभाः । स्वादुपाकरसाः स्निग्धा वृष्या बद्धाल्पवर्चसः ॥१॥ कषायानुरसाः पथ्या लघवो मूत्रला हिमाः । षष्टिका व्रीहिषु श्रेष्ठा गौराश्चासितगौरतः ॥२॥ रूक्षः शीतो गुरुः स्वादुः सरो विड्वातकृद्यवः । सन्धानकारी मधुरो गोधूमः स्थैर्यकृत्सरः ॥३॥युगन्धरस्त्रिदोषघ्नः स्वादुः पथ्यो रसायनः । मुद्राढकीमसूरादि शिम्बिधान्यं विबन्धकृत् ॥४॥कषायं स्वादु सङ्ग्राहि कटुपाकं हिमं लघु । मेदश्लेष्मास्रपित्तेषु हितं लेपोपसेकयोः ॥५॥ मुद्रस्तु पथ्यः संशुद्धव्रणकण्ठाक्षिरोगिणाम् । वातानुलोमी कौलत्थोगुल्मतूनिप्रतृनिजित् ॥६॥ वरोऽत्र मुद्गोऽल्पबलः कलायस्त्वतिवातलः । चणको वातलस्तद्वत्कु लत्थः कफवातहृत् ॥७॥ वास्तुकं ग्रहणीकुष्ठत्रिदोषार्शोहरं सरम् । तद्वल्लघुदला चिल्ली काचमाची च मेथिका ॥८॥तन्दुलीयो हिमो रूक्षो विशपित्तास्रकासजित् । चाङ्गेरी कफवातास्रसंग्रहण्यतिसारजित् ॥९॥ हृद्यं पटोलं कृमिजित् स्वादु शीतं रुचिप्रदम् । पटोलपत्रं पित्तघ्नं नालं तस्य कफापहम् ॥१०॥फलं त्रिदोषशमनं मूलं चास्यविरेचनम् । पित्तलं दीपनं भेदि वातघ्नं बृहतीद्वयम् ॥११॥कारवेल्लं सतिक्तं स्याद्दीपनं कफजित्परम् । कर्कोटकं ज्वरश्वासदद्रुकुष्ठविषापहम् ॥१२॥वार्ताकं कफवातघ्नं किञ्चित्पित्तप्रकोपनम् । सरलं मूत्रलं प्रोक्तं बलकृद्वालमेव तत् ॥१३॥ भेण्डी त्वम्लरसा सोष्णा ग्राहिका रुचिकारिका । बिम्बीफलं स्वादु शीतं स्तम्भनं लेखनं गुरु ॥१४॥पित्तास्रदाहशोफघ्नं वाताध्मानविबन्धकृत् । कूष्माण्डं बृंहणं शीतं गुरु पित्तास्रवातजित् ॥१५॥ बालं पित्तापहं शीतं मध्यमं कफकारकम् । पक्कं नातिहिमं स्वादु सारकं दीपनं लघु ॥१६॥बस्तिशुद्धिकरं चेतोरोगदोषत्रयापहम् । मिष्टतुम्बीफलं वृष्यं कफपित्तहरं गुरु ॥१७॥कटुतुम्बी हिमा हृद्या पित्तकासकफापहा । त्रपुसं मूत्रलं शीतं रूक्षं पित्तास्रकृच्छ्रजित् ॥१८॥तत्पक्कमुष्णमम्लं स्यात्पित्तलं कफवातजित् । कोशातकी लघुस्तिक्ता रूक्षामाशयशोधिनी ॥१९॥शोफपाण्डूदरप्लीहकुष्ठार्शःकफपित्तजित् । तत्पत्रं भेदनं शीतं लघु मेहविशोषजित् ॥२०॥शतपुष्पा कटुः स्निग्धा तिक्तोष्णा श्लेष्मवातहा । रुच्या बस्तिहिता नेत्र्या बद्धविट्क्रिमिशुक्रनुत् ॥२१॥ चक्रवर्त्याभिधं शाकं गुणैर्वास्तुकवन्मतम् । सरं शीतं त्रिदोषघ्नं लघु दीपनपाचनम् ॥२२॥शाकं तु सर्षपोद्भूतं चक्षुर्ध्नं दाहि रोचनम् । बद्धविट्कं बद्धमूत्रं गुरूष्णं च त्रिदोषकृत् ॥२३॥कौसुम्भं स्वादु रूक्षोष्णं कफजित्पित्तलं लघु । चणकं शाकमुद्दिष्टं दुर्जरं कफवातकृत् ॥२४॥ शिग्रुस्तीक्ष्णो लघुर्ग्राही वह्निदः कफवातजित् । तीक्ष्णोष्णो विद्रधिप्लीहव्रणघ्नश्चाम्लपित्तजित् ॥२५॥[ ग्रन्थान्तरे ] मधुशिग्रुः कटुस्तिक्तः शोफघ्नोदीपनः सरः । तत्पत्रं वातपित्तघ्नं चक्षुष्यं स्वादु शीतलम् ॥२६॥शिग्रुजं कुसुमं स्वादु कफपित्तहरं गुरु । सकषायं गुरु ग्राहि चक्षुष्यं कृमिनाशनम् ॥२७॥सौभाञ्जनफलं स्वादु कषायं कफपित्तजित् । शूलकुष्ठक्षयश्वासगुल्मघ्नं दीपनं परम् ॥२८॥ आर्द्रां कुस्तुम्बरी कुर्यात् स्वादुसौगन्ध्यहृद्यताः । शुष्का स्निग्धा स्वादुपाका कषाया कटुका लघुः ॥२९॥कदलीकुसुमं तिक्तं कषायं ग्राहि दीपनम् । उष्णवीर्यं बलासघ्नं तद्गुणं चास्फुटं दलम् ॥३०॥ आगस्त्यपुष्पं शिशिरं चतुर्थज्वरशान्तिकृत् । नक्तान्ध्यनाशनं प्रोक्तं दीपनं श्लेष्मपित्तनुत् ॥३१॥ सतिक्तं कटुकं पाके कषायं वातलं मतम् । आगस्त्यशिम्बः सदृशो गुणैः पुष्पस्य दुर्जरः ॥३२॥शतपत्री तरुण्युक्ता कर्णिका चारुकेसरा । सहाकुमारी गन्धाढ्या लाक्षापुष्पातिमञ्जुला ॥३३॥शतपत्री हिमा हृद्या ग्राहिणी शुक्रला लघुः । दोषत्रयास्रजिद्वर्ण्या तिक्ता कट्व्री च पाचनी ॥३४॥मूलकं बालकं रुच्यं वीर्योष्णं पाचनं लघु । महत्तदेव रूक्षोष्णं गुरु दोषत्रयप्रदम् ॥३५॥ सोरणो दीपनो रूक्षः कफार्शःकृमिजिल्लघुः । तद्वद्वन्यो विशेषेण कफघ्नो रक्तपित्तकृत् ॥३६॥ गर्जरं मधुरं तीक्ष्णं तिक्तोष्णं दीपनं लघु । संग्राहि रक्तपितार्शोग्रहणीकफवातजित् ॥३७॥शीतलः कदलीकन्दो ग्राही रूक्शोऽस्रपित्तजित् । ईषत्कषायः कफकृत् वातलः प्रदरे हितः ॥३८॥रूक्षातिपित्तकृद्गुर्वी वातला गौरवाकुची । तिक्ता नोदरिणां पथ्या ग्रहण्यर्शोविकारनुत् ॥३९॥क्षुपजं मरिचं रुच्यं दोषलं सर्वरोगकृत् । विशेषतः प्रमेहार्शोविकारेषु न शस्यते ॥४०॥ बृहन्मरीचं क्षुपजं ततोऽप्यल्पतरं गुणैः । क्षीराकर्कटिका त्वन्या राजकर्कटिका च सा ॥४१॥सुदीर्घा राजिलफला वाणैः कुलककर्कटी । वालुकं श्लेष्मलं स्वादु लघु भेदि च पित्तजित् ॥४२॥मधुराम्लरसः पित्तरक्तजित्पक्कमुत्तमम् । अग्निदीप्तिकरं श्वेतं शाकूटममलं सरम् ॥४३॥दुर्नामकृमिमेहघ्नं कफपित्तहरं परम् । दुर्नामहृत् श्यामलशाकुटं तु मन्दाग्निविण्मूत्रविबन्धहन्तृ । द्राक्षाबालफलं कटूष्णविशदं पित्तास्नदोशप्रदं मध्यं चाम्लरसं रसान्तरगतं रुच्यातिवह्निप्रदम् । पक्कं चेन्मधुरं तथाम्लसहितं तृश्णास्रपित्तापहं पक्कं शुष्कतमं श्रमार्तिशमनं सन्तर्पणं पुष्टिदम् ॥४४॥द्राक्षा पक्का सरा शीता चक्षुष्या बृंहणी गुरुः । हन्ति तृष्णाज्वरश्वासवातवान्तास्रकामलाः ॥४५॥कृच्छ्रास्रपित्तसंओहदाहशोषमदात्ययान् । आमा स्वल्पगुणा गुर्वी सैवाम्ल रक्तपित्तजित् ॥४६॥आम्रो ग्राही प्रमेहास्रकफपित्तव्रणान्जयेत् । तत्फलं बालमत्यम्लं रूक्षं दोषत्रयास्रकृत् ॥४७॥बद्धास्थि तादृगेवाक्तं वातहारि च पित्तलम् । पक्कं तु मधुरं वृष्यं स्निग्धं हृद्यं बलप्रदम् ॥४८॥गुरु वातहरं रुच्यं वर्ण्यं शीतमपित्तलम् । सन्तर्पणो यः सकलेन्द्रियाणाम बलप्रदो वॄष्यतमश्च हृद्यः । स्त्रीषु प्रहर्षं प्रचुरं ददाति फलाधिराजः सहकार एव ॥४९॥रसस्त्वस्य स्निग्धो रोचनो बलर्ण्कृत् ।आम्रबीजं कषायं स्याच्छर्द्यतीसारनाशकृत् ॥५०॥आम्रपुष्पमतीसारकफपित्तप्रमेहनुत् । असृग्दोषहरं शीतं रुचिकृद्वातनाशनम् ॥५१॥ आम्रस्य पल्लवं रुच्यं कफपित्तविनाशनम् । पनसं शीतलं पक्कं स्निग्धं पित्तानिलापहम् ॥५२॥बल्यं शुक्रप्रदं हन्ति रक्तपित्तक्षतक्षयान् । आमं तदेव विष्टम्भि वातलं तुवरं गुरु ॥५३॥ ईषत्कषायं मधुरं तद्बीजं वातलं गुरु । तत्फलं च विकारघ्नं रुच्यं त्वग्दोषनाशनम् ॥५४॥ कदली योनिदोषाश्मरक्तपित्तहरा हिमा । तत्कन्दः शीतलो बल्यः केश्यः पित्तकफास्रजित् ॥५५॥तत्फलं मधुरं शीतं विष्टम्भि बलकृद्रुरु । स्निग्धं पित्तास्रहृद्दाहक्षतक्षयसमीरजित् ॥५६॥ बालं फलं मधुरमम्लमथो कषायं पित्तापहं शशिररुच्यमथापि नालम् । पुष्पं तदप्यनुगुणं कृमिहारि कन्दं पर्णं च शूलशमनं कदलीभवं स्यात् ॥५७॥ रम्भापक्कफलं कषायमधुरं बल्यं च शीतं तथा पित्तं चास्रविमर्दनं गुरुतरं पथ्यं न मन्दानले । सद्यः शुक्रविवर्धनं कृमिहरं तृष्णापहं कान्तिदं दीप्ताग्नौ सुखदं कफामयहरं सन्तर्पणं दुर्जरम् ॥५७॥ नारीकेलफलं शीतं दुर्जरं बस्तिशोधनम् । विष्टम्भि बृंहणं बल्यं वातपित्तास्रदाहजित् ॥५८॥तस्याम्भः शीतलं हृद्यं दीपनं शुक्रलं लघु । तत्पादपशिरोमज्जा शुक्रला वातपित्तजित् ॥५९॥वेशषतः कोमलनारिकेलं निहन्ति पित्तज्वरपित्तदोषान् । तदप्यजीर्णं गुरुपित्तकारि विदाहि विष्टम्भि मतं भिषग्भिः ॥६०॥खर्जूरिकाफलं शीतं स्वादु स्निग्धं क्षुदास्रजित् । बल्यं हन्ति मरुत्पित्तमदमूर्छामदात्ययान् ॥६१॥तस्मात्स्वल्पगुणं ज्ञेयमन्यत्खर्जूरिकाफलम् । दाडिमं ग्राहि दोषघ्नं हृद्यं रोचनदीपनम् ॥६२॥ तद्वदामलकं पथ्यं मधुराम्लरसं सरम् । बदरंझ लघु संग्राहि रुच्यमुष्णं समीरजित् ॥६३॥कफपित्तकरं तद्वत्कोमलं गुरु संमतम् । सौवीरं बदरं शीतं भेदनं गुरु शुक्रलम् ॥६४॥ बृंहणं पित्तदाहास्रक्षयतृशःणानिलापहम् । जम्बूफलं ग्राहि रूक्षं कफपित्तव्रणास्रजित् ॥६५॥ क्षुद्रजम्बूफलं तद्वद्विशेशाद्वातनाशनम् । खर्बुजं मूत्रलं बल्यं कोष्ठशुद्धिकरं गुरु ॥६६॥स्निग्धं स्वादुतरं शीतं वृष्यं पित्तानिलापहम् ।वाताममुष्णं सुस्निग्धं वातहृद्बलशुक्रकृत् ॥६७॥ अक्षोटं मधुरं बल्यं गुरूष्णं वातहृत्सरम् । सेव्यं समीरपित्तघ्नं बृंहणं कफकृत् गुरु ॥६८॥रसे पाके च मधुरं शिशिरं रुचिशुक्रकृत् । शीताफलं तु मधुरं शीतं पित्तविनाशनम् ॥६९॥हृद्यं बलकरं स्वादु पुष्टिदं स्वल्प वातलम् । रामाह्वयफलं तद्वदीषत्स्वादु च वातकृत् ॥७०॥शृङ्गाटं मधुरं रूक्षं गुरु ग्राहि हिमं तथा । शुक्रानिलश्लेष्मकरं शुष्कमार्द्रं विशेषतः ॥७१॥विरेचनफलः शाखी श्यामः करभवल्लभः । अर्कार्धः कटुकः पीलुः कषायो मधुराम्लकः ॥७२॥रसः स्वादुश्च गुल्मार्श । शमनो दीपनः परः । मधुरस्तु महापीलुर्वृष्यो विषविनाशनः ॥७३॥पित्तप्रशमनो रुच्यो ह्यामघ्नो दीपनः परः । सुस्वादु पाकरसयोर्गुरु शीतलं च श्लेष्मामवातकरमञ्जिरमग्निशत्रु । आमं तु कैतकं रुच्यं कफपित्तकरं गुरु । अन्नप्ररोचकं हृद्यं श्रमक्लमनिबर्हणम् ॥७४॥पक्कं तु पित्तहृत्स्वादुरसमातपदोषनुत् ।बीजपूरफलं रुच्यं रसेऽम्लं दीपनं लघु ॥७५॥रक्तपित्तकरं ग्राहि जिह्वाहृच्छोधनं परम् ।त्वक् तस्य तिक्ता गुर्व्युष्णा कॄमिवातकफापहा ॥७६॥ तन्मांसं बृंहणं शीतं गुरु पित्तसमीरजित् । केसरो मधुरो ग्राही शूलगुल्मोदरापहः ॥७७॥बीजमुष्णं कृमिश्लेष्मवातजित् गर्भदं गुरु । तत्पुष्पं शीतलं ग्राहि रक्तपित्तहरं लघु ॥७८॥मधुकर्कटिका शीता रक्तपित्तहरा गुरुः । कालिङ्गं ग्राहि दृक्पित्तशुक्रहृत् शीतलं गुरु ॥७९॥नारङ्गमम्लमत्युष्णं रुच्यं वातहरं सरम् । कट्वम्लमपरं हृद्यं दुर्जरं वातनाशनम् ॥८०॥जम्बीरमम्लं शूलघ्नं गुरूष्णं कफवातजित् । आस्यवैरस्यहृत्पीडावह्निमान्द्यकृमीन्जयेत् ॥८१॥अम्लवेतसमत्यम्लं भेदनं शतवेधि च । हृद्रोगशूलगुल्मघ्नं पित्तास्रकफदूषणम् ॥८२॥साराम्लमम्लं वातघ्नं गुरुपित्तकफप्रदम् । कर्मरङ्गं हिमं ग्राहि स्वाद्वम्लं कफपित्तजित् ॥८३॥निम्बूकमम्लं वातघ्नं पाचनं दीपनं लघु । राजनिम्बुफलं स्वादु कफपित्तसमीरजित् ॥८४॥मिष्टनिम्बूफलं पित्तवातहृत् गुरु रोचनम् । भ्रमतृड्दाहपित्तास्रच्छर्दिक्षयगरापहम् ॥८५॥आम्लिकाभागुरुर्वातहरा पित्तकफास्रजित् । पक्का तद्वत्सरा रुच्या वह्निबस्तिविशुद्धिकृत् ॥८६॥शुष्का हृद्या श्रमभ्रान्तितृष्णाकृमिहरा लघुः ।तित्तिडीकं समीरघ्नमाममुष्णं परं गुरु ॥८७॥तत्पक्कं लघु संग्राहि ग्रहणीकफवातजित् । करमर्दं गुरूष्णाम्लं रक्तपित्तकफप्रदम् ॥८८॥तत्पक्कं मधुरं रुच्यं लघु पित्तसमीरजित् । शुष्कं पक्कवच्छ्यामं पक्कमप्यार्द्रमामवत् ॥८९॥ कपित्थमामं सङ्ग्राहि लघु दोषत्रयापहम् । पक्कं गुरु तृशाहिक्काशमनं वातपित्तजित् ॥९०॥स्वाद्वम्लं तुवरं कण्ठशोधनं ग्राहि दुर्जरम् ।आम्रातमामं वातघ्नं गुरूष्णं रुचिकृत्सरम् ॥९१॥ पक्कं स्वादु हिमं वृष्यं मरुत्पित्तक्षतास्रजित् । पूगं गुरु हिमं रूक्षं कषायं कफपित्तजित् ॥९२॥मोहनं दीपनं रुच्यमास्यवैरस्यनाशनम् । आर्द्रं तु गुर्वभिष्पन्दिवह्निदृष्टिकरं सरम् ॥९३॥स्विन्नं त्रिदोषहृत्सर्वं तद्भेदांस्ताद्वदादिशेत् । लशुनो बृंहणो वृष्यः स्निग्धोष्णः पाचनः सरः ॥९४॥ भग्नसन्धानकृत् केश्यो गुरुः पित्तास्रबुद्धिदः । रसायनं कफश्वासकासगुल्मज्वरारुचीः ॥९५॥हन्ति शोफप्रमेहार्शः कुष्ठशूलानिलं कृमीन् । तत्पत्रं मधुरं क्षारं नालो मधुरपिच्छिलः ॥९६॥पलाण्डुस्त गुणैस्तुल्यः कफकृन्नातिपित्तलः । अनुष्णः केवलं वातं स्वादुपाकरसैर्जयेत् ॥९७॥आर्द्रं पाचनदीपनं रुचिकरं वृष्यं कटूष्णं वरं स्वर्यं मेदहरं कफामयहरं शोफापहं शूलजित् । जिह्वाकण्ठविशोधनं सलवणं पथ्यं सदा भोजने निम्बूतोयविमिश्रितं रुचिकरं संदीपनं सारणम् ॥९८॥कुष्ठे पाण्ड्वामये कृच्छ्रे रक्तपित्ते व्रणे ज्वरे । दाहे निदाघे शरदि नैव पूजितमार्द्रकम् ॥९९॥शाकेषु सर्वेषु वसन्ति रोगाः सहेतवो देहविनाशनाय । तस्माद्बुधः शाकविवर्जनं हि कुर्यात्तथाम्लेषु स नैव दोषः ॥१००॥ N/A References : N/A Last Updated : December 10, 2017 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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