संस्कृत सूची|शास्त्रः|आयुर्वेदः|योगरत्नाकरः| ॥ अथ रात्रिचर्या ॥ योगरत्नाकरः अथ योगरत्नाकरस्यानुक्रमणिका । विषयसूची ॥ अथ योगरत्नाकरः ॥ ॥ अथ पादचतुष्टयम् ॥ ॥ अथ दूतपरीक्षा ॥ ॥ अथ दूतपरीक्षा ॥ ॥ अथ शकुनाः ॥ ॥ अथ रोगिणां अष्टस्थानानि लक्षयेत् ॥ ॥ अथ नाडीपरीक्षा ॥ ॥ अथ मूत्रपरीक्षा ॥ ॥ अथ दोषत्रयलक्षणानि ॥ ॥ अथ मलपरीक्षा ॥ ॥ अथ शब्दपरीक्षा ॥ ॥ अथ स्पर्शपरीक्षा ॥ ॥ अथ रूपपरीक्षा ॥ ॥ अथ दृक्परीक्षा ॥ ॥ अथास्यपरीक्षा ॥ ॥ अथ जिव्हापरीक्षा ॥ ॥ अथ कालज्ञानम् ॥ ॥ अथ देशाः ॥ ॥ अथ केषु मासेषु दोषत्रयप्रकोपः ॥ ॥ केषु ऋतुषु दोषोत्पत्तिः ॥ ॥ अथ वातादिप्रकोपः ॥ ॥ अथ दोषत्रयलक्षणानि ॥ ॥ अथ दोषत्रयशमनम् ॥ ॥ अथाहर्निशदोषत्रयप्रवर्तनम् ॥ ॥ अथ आमव्याधिलक्षणम् ॥ ॥ अथ तत्प्रतीकारः ॥ ॥ अथ वयोविचारः ॥ ॥ अथ प्रकृतिः ॥ ॥ अथारोगलक्षणम् ॥ ॥ अथ परिभाषा ॥ ॥ अथ कलिङ्गपरिभाषा ॥ ॥ अथ धान्यादिफलकन्दशाकगुणाः ॥ ॥ अथ तमाखुगुणाः ॥ ॥ अथ मांसगुणाः ॥ ॥ अथानूपजातिलक्षणं तद्रुणाश्च ॥ ॥ अथ जाङ्गलमांसगुणाः ॥ ॥ अथानूपमांसगुणाः ॥ ॥ अथ मत्स्यादिजलजन्तवः ॥ ॥ अथ शङ्खादिगुणाः ॥ ॥ अथ सिद्धान्नादिपाकगुणकथनम् ॥ ॥ अथ साराणि ॥ ॥ अथ यूषाः ॥ ॥ अथ सूपाः ॥ ॥ अथ पर्पटाः ॥ ॥ अथ मुद्गतण्डुलकृशरा ॥ ॥ अथ पायसम् ॥ ॥ अथ पोलिका ॥ ॥ अथाङ्गारिका ॥ ॥ अथ वटकाः ॥ ॥ अथ पिष्टभक्ष्यजनितगुणाः ॥ ॥ अथ पानकानि ॥ ॥ अथ रागखाण्डवः ॥ ॥ अथ रसाला शिखरिणी ॥ ॥ अथ भरित्थम् ॥ ॥ अथ पृथुकादयः ॥ ॥ अथ वेसवारः ॥ ॥ अथ आयुर्विचारमाह ॥ ॥ अथ स्वल्पायुषो लक्षणानि ॥ ॥ अथ नित्यप्रकारमाह ॥ ॥ अथ रसादीनां पाकलक्षणमाह ॥ ॥ अथ रात्रिचर्या ॥ ॥ अथ ऋतुचर्यामाह ॥ ॥ अथ वर्षासु हिताहितमाह ॥ ॥ अथ शरदि हिताहितमाह ॥ ॥ अथ हेमन्ते हिताहितमाह ॥ ॥ अथ शिशिरे हिताहितमाह ॥ ॥ अथ वसन्ते हिताहितमाह ॥ ॥ अथ ग्रीष्मे हिताहितमाह ॥ ॥ अथ जलगुणाः ॥ ॥ अथोष्णवारिगुणाः ॥ ॥ अथ ऋतुविशेषे जलक्काथनियमः ॥ ॥ अथ रात्रिसेवितोष्णोदकगुणाः ॥ ॥ अथ निषिद्धमुष्णोदकम् ॥ ॥ अथोष्णोदकप्रयोगः ॥ ॥ अथोष्णवारिमन्दाचरणम् ॥ ॥ अथ शृतशीतगुणाः ॥ ॥ अथोष्णजलविधिः ॥ ॥ अथ दुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ तत्र वर्णभेदाः ॥ ॥ अथ माहिषम् ॥ ॥ अथाजम् ॥ ॥ अथाविकम् ॥ ॥ अथौष्ट्रम् ॥ ॥ अथैभम् ॥ ॥ अथाश्वम् ॥ ॥ अथ गार्दभम् ॥ ॥ अथ मानुषम् ॥ ॥ अथ धारोष्णगुणाः ॥ ॥ अथापक्कदुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ क्वथितदुग्धगुणाः ॥ ॥ अथ क्षीरमित्राणि ॥ ॥ अथ क्षीरामित्राणि ॥ ॥ अथ सन्तानिकागुणाः ॥ ॥ अथ दधिगुणाः । ॥ अथ निःसारदुग्धदधिगुणाः ॥ ॥ अथ मन्ददधिगुणाः ॥ ॥ अथ सरगुणाः ॥ ॥ अथ तक्रगुणाः ॥ ॥ अथ क्वथिततक्रगुणाः ॥ ॥ अथ नवनीतम् ॥ ॥ अथ चिरन्तननवनीतगुणाः ॥ ॥ अथ घृतगुणाः ॥ ॥ अथ माहिषम् ॥ ॥ अथ आजम् ॥ ॥ अथाविकम् ॥ ॥ अथ नूतनघृतगुणाः ॥ ॥ अथ पुराणघृतम् ॥ ॥ अथ रोगविशेषे घृतनिषेधः ॥ ॥ अथ तैलगुणाः ॥ ॥ अथैरण्डतैलम् ॥ ॥ अथ सार्षपतैलम् ॥ ॥ अथ कुसुम्भतैलम् ॥ ॥ अथ राजिकातैलम् ॥ ॥ अथ क्षौमादितैलगुणाः ॥ ॥ अथ धान्यतैलम् ॥ ॥ अथ मधुगुणाः ॥ ॥ अथ विशिष्टगुणाः ॥ ॥ अथेक्षुगुणाः ॥ ॥ अथ फाणितम् ॥ ॥अथ गुडः ॥ ॥ अथ जीर्णगुडगुणाः ॥ ॥ अथ शर्करागुणाः ॥ ॥ अथ रायपुरी ॥ ॥ अथ मूत्राष्टकम् ॥ ॥ अथ त्रिफला ॥ ॥ अथ त्रिकटु ॥ ॥ अथ पञ्चकोलम् ॥ ॥ अथ षडूषणम् ॥ ॥ अथ चतुरूषणम् ॥ ॥ अथ चातुर्जातम् ॥ ॥ अथ दशमूलम् ॥ ॥ अथ मध्यमपञ्चमूलानि ॥ ॥ अथ पञ्चवल्कलानि ॥ ॥ अथ पञ्चभृङ्गगुणाः ॥ ॥ अथाम्लपञ्चकम् ॥ ॥ अथ पञ्चाङ्गानि ॥ ॥ अथ संतर्पणगुणाः ॥ ॥ अथ यक्षकर्दमगुणाः ॥ ॥ अथ केशरनामगुणाश्च ॥ ॥ अथ पञ्चसुगन्धिकगुणाः ॥ ॥ अथ षड्रसाः ॥ ॥ अथ मधुरत्रिकम् ॥ ॥ अथ समत्रिकम् ॥ ॥ अथ क्षारत्रयम् ॥ ॥ अथ क्षारपञ्चकम् ॥ ॥ अथ क्षाराष्टकम् ॥ ॥ अथ क्षारद्वयम् ॥ ॥ अथ लवणत्रयम् ॥ ॥ अथ लवणपञ्चकम् ॥ ॥ अथ लवणषट्कम् ॥ ॥ अथ चन्दनम् ॥ ॥ अथ गुडूचीसत्त्वगुणाः ॥ ॥ अथ स्वरसादयः ॥ ॥ अथ स्वरसकल्पना ॥ ॥ अथ पुटपाककल्पना ॥ ॥ अथ कल्कः ॥ ॥ अथ क्वाथः ॥ ॥ अथ हिमकल्पना ॥ ॥ अथ फाण्टकल्पना ॥ ॥ अथ चूर्णकल्पना ॥ ॥ अथ वटककल्पना ॥ ॥ अथावलेहः ॥ ॥ अथ स्नेहपाकविधिः ॥ ॥ अथ लाक्षारसविधिः ॥ ॥ अथासवारिष्टः ॥ ॥ अथ शिलाजतुकरणम् ॥ ॥अधुना धात्वादीनां लक्षणशोधनमारणगुणानाह ॥ ॥ अथ सप्तधातुवर्णाः ॥ ॥ अथ सर्वधातुसामान्यमारणम् ॥ ॥ अथ स्वर्णम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ गुणाः ॥ ॥ अथ शुद्धस्वर्णदलगुणाः ॥ ॥ अथ रौप्यम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ तद्गुणाः ॥ ॥ अथ ताम्रम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथान्यच्च त्रपुताम्रम् ॥ ॥ अथ सोमनाथताम्रम् ॥ ॥ अथ सामान्यताम्रगुणाः ॥ ॥ अथ रीतिकांस्ये ॥ ॥ अथ लोहम् ॥ ॥ अथ कान्तलक्षणम् ॥ ॥ अथ शोधनम् ॥ ॥ अथ मारणम् ॥ ॥ अथ निरुत्थानम् ॥ ॥ अथ गुणाः ॥ ॥ अथानुपानानि ॥ ॥ अथ मण्डूरकरणम् ॥ ॥ अथ वङ्गम् ॥ ॥ अथ नागम् ॥ ॥ अथाभ्रकम् ॥ ॥ अथ स्वर्णमाक्षिकम् ॥ ॥ अथ पारद: ॥ ॥ अथ गन्धक: ॥ ॥ अथ हिड्गुल: ॥ ॥ अथ रत्नानां शोधनमारणे ॥ ॥ अथ वैक्रन्तम् ॥ ॥ अथ शेषरत्नशोधनमारणानि ॥ ॥ अथ शिलाजतु ॥ ॥ अथ सिन्दूरम् ॥ ॥ अथ समुद्रफेन: ॥ ॥ अथैरण्डबीजशुद्धि: ॥ ॥ अथ शड्ख: ॥ ॥ अथ भूनागसत्वमयूरपक्षसत्वगुणा: ॥ ॥ अथ कर्पूरशुद्धि: ॥ ॥ अथ टड्कणशोधनम् ॥ ॥ अथ विषम् ॥ ॥ अथ गौरीपाषाणाभेद: ॥ ॥ अथाश्रसत्वपातनविधि: ॥ ॥ अथ क्षारकल्पना ॥ ॥ अथ वमनम् ॥ ॥ अथ विरेचनम् ॥ ॥ अथ रेचनम् ॥ ॥ अथ मेघनादरेचनरस: ॥ ॥ अथ नस्यम् ॥ ॥ अथ कर्णपूरणम् ॥ ॥ अथ रक्तस्त्रुति: ॥ ॥ अथ जृम्भालक्षणम् ॥ ॥ अथ हृल्लासलक्षणम् ॥ ॥ तत्र क्रमप्राप्तं प्रथमं ज्वरलक्षणम् ॥ ॥ अथ ज्वरनिदानम् ॥ ॥ अथ क्रमप्राप्तस्थ ज्वरस्य चिकित्सा ॥ ॥ अथौषधाद्यजीर्णेऽन्नं न ग्राह्यम् ॥ ॥ अथ ज्वरे पथ्यानि ॥ ॥ अथ पाचनम् ॥ ॥ अथाष्टाड्गावलेहिका ॥ ॥ अथ सन्धिकादीनां चिकित्सा ॥ ॥ शीताड्गसंनिपातोऽसाध्य: ॥ ॥ अथ विषमज्वर: ॥ ॥ अथ चूर्णानि ॥ ॥ अथ कुरण्टकादिनामा लेह: ॥ ॥ अथ घृतानि ॥ ॥ अथ तैलानि ॥ ॥ अथ पाका: ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथ सप्तधातुगतज्वराणां लक्षणम् ॥ ॥ अथातीसारनिदानम् ॥ ॥ अथ अवलेह: ॥ ॥ अथ अष्टकम् ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथ ग्रहणीनिदानम् ॥ ॥ अथातो ग्रहणीचिकित्सितं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्लेष्मग्रहणीचिकित्सा ॥ ॥ अथ चित्रकादिगुटिका ॥ ॥ अथ तक्रहरीतकी ॥ ॥ अथ कल्याणकावलेह: ॥ ॥ अथ चूर्णम् ॥ ॥ अथ बिल्वाद्यं घृतम् ॥ ॥ अथ द्राक्षासवः ॥ ॥ अथ रसा: ॥ ॥ अथार्शोरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ त्रिदोषजसहजार्शसोर्लक्षणम् ॥ ॥ अथौपद्रवादसाध्यत्वमाह ॥ ॥ अथ तिलादिमोदक:॥ ॥ अथ काड्कायनगुटिका ॥ ॥ अथ बाहुशालगुड: ॥ ॥ अथार्शसि शर्करासव: ॥ ॥ अथ व्योषाद्यं चूर्णम् ॥ ॥ अथ भस्मकलक्षणमाह ॥ ॥ अथ विषूच्यादिचिकित्सा ॥ ॥ अथ भस्मकरोगनिदानचिकित्से ॥ ॥ अथ क्रिमिनिदानम् ॥ ॥ अथात: पाण्डुरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ रक्तपित्तनिदानम् ॥ ॥ अथ राजयक्ष्मनिदानम् ॥ ॥ अथ क्षयरोगचिकित्सा ॥ ॥ अथ कासनिदानम् ॥ ॥ अथ कासचिकित्सा । ॥ अथातो हिक्कानिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्वासचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ तमकस्यैव पित्तानुबन्धाज्ज्वरादियोगेन प्रतमकसंज्ञामाह ॥ ॥ अथ श्वासचिकित्सा ॥ ॥ अथ स्वरभेदनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातोऽरोचकनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातश्छर्दिनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ छर्दिचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ सैन्धवादियोग: ॥ ॥ अथ त्रिदोषच्छर्दि: ॥ ॥ अथ तृष्णानिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ तृष्णाचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ मूर्च्छानिदानम् ॥ ॥ अथ पानात्ययपरमदपानाजीर्णपानविभ्रमनिदानचिकित्से ॥ ॥ अथ दाहनिदानम् ॥ ॥ अथोन्मादनिदानं चिकित्सा च ॥ ॥ अथ भूतोन्मादनिदानमाह ॥ ॥ अथापस्मारनिदानमाह ॥ ॥ अथ वातरोगनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ श्रोत्रादिगतलक्षणमाह ॥ ॥ अथाक्षेपकादिरोगलक्षणान्याह ॥ ॥ अथानुक्तवातरोगसड्वहार्थमाह ॥ ॥ अथ तच्चिकित्सा ॥ ॥ अथ हिड्ग्वादिचूर्णम् ॥ ॥ अथ प्रत्याध्मानोरुस्तम्भयो: कल्कादि ॥ ॥ अथावशिष्टानां प्रतीकार: ॥ ॥ अथ सर्ववातरोगाणां सामान्यप्रतीकारानाह ॥ ॥ अथ गुग्गुलव: ॥ ॥ अथ तैलानि ॥ ॥ अथ पञ्चतिक्तघृतम् ॥ ॥ अथ वातरक्तनिदानम् ॥ ॥ अथ वातरक्तचिकित्सा ॥ ॥ अथोरुस्तम्भ्रनिदानमाह ॥ ॥ अथामवातनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथ शूलनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ परिणामशूलनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथातोदावर्तनिदानम् ॥ ॥ अथानाहनिदानम् ॥ ॥ अथातो हृद्रोगनिदानम् ॥ ॥ अथोरग्रहनिदानम् ॥ ॥ अथ मूत्राघातनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथातो मेहनिदानम् ॥ ॥ अथ ग्रन्थान्तरे बहुमूत्रमेहनिदानम् ॥ ॥ अथोदरनिदानप्रारम्भ: ॥ ॥ अथ तच्चिकित्सा ॥ ॥ अथ सर्वोदरेषु सामान्यविधि: ॥ ॥ अथात: शोथनिदानं व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ मुष्कान्त्रवृद्धिवर्ध्मरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ गलगण्डगण्डमालापचीग्रन्थ्यर्बुदनिदानमाह ॥ ॥ अथ श्लीपदनिदानम् ॥ ॥ अथ विद्रधिनिदानम् ॥ ॥ अथातो विद्रधिचिकित्सां व्याख्यास्याम: ॥ ॥ अथ व्रणशोथनिदानम् ॥ ॥ अथ सद्योव्रणनिदानमाह ॥ ॥ अथाग्निदग्धव्रननिदानमाह ॥ ॥ अथ भग्नव्रणनिदानमाह ॥ ॥ अथ नाडीव्रणनिदानम् ॥ ॥ अथ भगन्दरनिदानम् ॥ ॥ अथोपदंशनिदानम् ॥ ॥ अथ शूकदोषनिदानम् ॥ ॥ अथ कुष्ठनिदानम् ॥ ॥ अथ शीतपित्तोदर्दकोठनिदानम् ॥ ॥ अथाम्लपित्तनिदानम् ॥ ॥ अथ विसर्पनिदानमाह ॥ ॥ अथ विस्फोटनिदानमाह ॥ ॥ अथ स्त्रायुकनिदानम् ॥ ॥ अथ मसूरिकानिदानमाह ॥ ॥ अथ क्षुद्ररोगनिदानमाह ॥ ॥ अथ मुखरोगाणां निदानान्याह ॥ ॥ अथ कर्णरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ नासारोगाधिकार: ॥ ॥ अथ शिरोरोगनिदानम् ॥ ॥ अथ नेत्ररोगाणांधिकार: ॥ ॥ अथ स्त्रीरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ योनिरोगाधिकार: ॥ ॥ अथ रात्रिचर्या ॥ ’ योगरत्नाकर ’ हा आयुर्वेदावरील मूळ प्राचीन ग्रंथ आहे. Tags : ayurvedyogaratnakarआयुर्वेदयोगरत्नाकर ॥ अथ रात्रिचर्या ॥ Translation - भाषांतर ज्योत्स्ना शीता स्मरानन्दप्रदा तृट्पित्तदाहहृत् । ततो हीनगुणः कुर्यादवश्यायोऽनिलं कफम् ॥१॥तमो भयावहं मोहदिङ्भोहजननं भवेत् ।पित्तहृत्कफकृत्कामवर्धनं क्लमकृच्च तत् ॥२॥रात्रौ तु भोजनं कुर्यात् प्रथमप्रहरान्तरे ।किञ्चिदूनं समश्नीयाद्दुर्जरं तत्र वर्जयेत् ॥३॥शरीरे जायते नित्यं देहिनां सुरतस्पृहा । अव्यवायान्मेहमेदोवृद्धिः शिथिलता तनौ ॥४॥बलिनो मनसो रोधात् क्रोधाद्वा ब्रह्मचर्यतः । नारीणामरसज्ञत्वात् क्षीणं शुक्रं भवेन्नृणाम् ॥५॥दौर्बल्यं मुखशोषश्च पाण्डूत्वं सदनं भ्रमः ।क्लैब्यं शुक्रविसर्गश्च क्षीणशुक्रस्य लक्षणम् ॥६॥संबन्धिन्यरिवल्लभा नृपवधूर्मित्राङ्गना रोगिणी शिष्यब्राह्मणवल्लभातिपतितोन्मत्ता महापापिनी ।पिङ्गा प्रव्रजिता सती गुरुवधूर्वृद्धा तथा गर्भिणी म्लेच्छा कृष्णतमा तथापरिचिता त्याज्या इमा योषितः ॥७॥सेवनं योषितां कुर्याद्बुधो बुद्ध्वा रतिक्रमम् बालामुग्धाधिरूढानामनुरागविभावनात् ॥८॥बालेति गीयते नारी यावद्वर्षाणिषोडश ।ततस्तु तरुणी ज्ञेया द्वात्रिंशद्वत्सरावधि ॥९॥तदूर्ध्वमधिरूढा स्यात्पञ्चाशद्वत्सरावधि ।वृद्धा तत्परतो ज्ञेया सुरतोत्त्सववर्जिता ॥१०॥निदाघशरदोर्बाला हिता विषयिणे मता ।तरुणी शीतसमये प्रौढा वर्षावसन्तयोः ॥११॥नित्यं बाला सेव्यमाना नित्यं वर्धयते बलम् ।तरुणी ह्रासयेच्छक्तिं प्रौढोद्भासयते जराम् ॥१२॥सद्योमांसं नवान्नं च बाला स्त्री क्षीरभोजनम् ।घृतमुष्णोदकस्नानं सद्यःप्राणकराणि षट् ॥१३॥पूतिमांसं स्त्रियो द्वृद्धा बालार्कस्तरुणं दधि ।प्रभाते मैथुनं निद्रा सद्यः प्राणहराणि षट् ॥१४॥वृद्धोऽपि तरुणीं गत्वा तरुणत्वमवाप्रुयात् ।वयोऽधिकां स्त्रियः गत्वा तरुणं स्थविरायते ॥१५॥आयुष्मन्तो मन्दजरा वपुर्वर्णबलान्विताः । स्थिरोपचितमांसाश्च भवन्ति स्त्रीषु संयत्ताः ॥१६॥ सेवेत कामतः कामं बलाद्वाजीकृतो हिमे । प्रकामं तु निषेवेत मैथुनं शिशिरागमे ॥१७॥त्र्यहाद्वसन्तशरदोः पक्षाद्वृष्टिनिदाघयोः । शीते रात्रौ दिवा ग्रीष्मे वन्सते तु दिवा निशि ॥१८॥वर्षासु वारिदध्वाने शरत्सु सरसः स्मरः । त्रिभिस्त्रिभिरहोभिर्हि समेयात्प्रमदां नरः ॥१९॥ सर्वेष्वृतुषु धर्मेषु पक्षात्पक्षाद्व्रजेद्बुधः ।आयुःक्षयभयाद्विद्वान्नाह्नि सेवेत कामिनीम् ॥२०॥अवशो यदि सेवेत तदा ग्रीष्मवसन्तयोः ।आस्यावर्णकफस्थौल्यसौकुमार्यसुखप्रदाम् ॥२१॥नोपेयात्पुरुषो नारीं सन्ध्ययोर्न च पर्वसु ।गोसर्गे चार्धरात्रे च तथा संध्यादिनेऽपि च ॥२२॥काम्यस्योदग्रवयसो वाजीकरणसेविनः ।सर्वेष्वृतुष्वहरहो व्यवायो न निवार्यते ॥२३॥घृतक्षीराशिनो निर्भीर्निर्व्याधिर्नित्यगो युवा ।विहारं भार्यया कुर्याद्देशेऽतिशयसंवृते ॥२४॥रम्ये श्राव्याङ्गनागाने सुगन्धिसुखमारुते ।देशे गुरुजनासन्नेऽनिभृतेऽतित्रपाकरे ॥२५॥श्रूयमाणव्यथाहेतुवचने च रमेत न ।स्नातश्चन्दनलिप्ताङ्गः सुगन्धसुमनोऽन्वितः ॥२६॥भुक्तवृष्यः सुवसनः सुवेषः समलङ्कृतः ।ताम्बूलवदनः पत्न्यामनुरक्तोऽधिकस्मरः ॥२७॥पुत्रार्थी पुरुषो नारीमुपेयाच्छयने शुभे ।अत्याशितोऽधृतिः क्षुद्वान् सव्यथाङ्गः पिपासितः ॥२८॥बालो वृद्धोऽन्यवेगार्तस्त्यजेद्रोगी च मैथुनम् ।भार्यां तुल्यगुणोपेतां तुल्यशीलां कुलोद्भवाम् ॥२९॥अधिकामोऽभिकामां च हृष्टो हृष्टामलङ्कृताम् ।सेवेत प्रमदां युक्त्या वाजीकरणबृंहितः ॥३०॥सीमन्ताक्ष्यधरे कपोलगलके कुक्षौ कुचोरःस्थले नाभिश्रोणिवराङ्गजानुषु तथा गुल्फे पादाङ्गुष्ठके । वामाङ्के हरिणीदृशां मनसिजो मासस्य पक्षद्वये शुक्लश्यामविभागतः सुविहरत्यूर्ध्वाध एवं क्रमात् ॥३१॥सीमन्ते नखरं सुचुम्बनविधिं नेत्रे कपोलेऽधरे दन्ताग्रे विदधीत किञ्च नखरं कुक्षौ सुकण्ठेऽपि च ।मन्दं वक्षसि ताडनं कुचयुगे श्रोणौ दृढं मर्दनं नाभौ किञ्च चपेटिकां स्मरगृहे मातङ्गलीलायितम् ॥३२॥गुल्फजानुपदाङ्गुष्ठसमये घातनानि च ।इष्टचन्द्रकलास्पर्शाद्द्रावयेदम्बुजेक्षणाम् ॥३३॥रजस्वलामकामां च मलिनामप्रियां त्तथा ।वर्णवृद्धां वयोवृद्धां तथा व्याधिप्रपीडिताम् ॥३४॥हीनाङ्गीं गर्भिणीं द्वेष्यां योनिरोगसमन्विताम् । सगोत्रां गुरुपत्नीं च तथा प्रव्रजितामपि ॥३५॥नाभिगच्छेत्ततो नारीं भोरिवैगुण्यशङ्कया ।रजस्वलां गतवतो नरस्यासंयतात्मनः ॥३६॥दृष्ट्वायुस्तेजसां हानिरधर्मश्च ततो भवेत् ।लिङ्गिनीं गुरुपत्नीं च सगोत्रामथ पर्वसु ॥३७॥वृद्धां च संध्ययोश्चापि गच्छतो जीवनक्षयः । गर्भिण्यां गर्भपीडा स्याद्व्याधितायां बलक्षयः ॥३८॥हीनाङ्गीं मलिनां द्वेष्यां क्षामां वन्ध्यामसंवृते । देशेऽभिगच्छतो रेतः क्षीणं म्लानं मनो हरेत् ॥३९॥क्षुधितः क्रुद्धचित्तश्च मध्याह्ने तृषितोऽबलः ।स्थितस्य हानि शुक्रस्य वायोः कोपं च विन्दति ॥४०॥व्याधितस्य रुजा प्लीहा मूर्छामृत्युश्च जायते ।प्रत्युषस्यर्धरात्रे च वातपित्ते प्रकुप्यतः ॥४१॥तिर्यग्योनावयोनौवा दुष्टयोनौ तथैव च ।उपदंशस्तथा वायोः कोपःशुक्रसुखक्षयः ॥४२॥उच्चारिते मूत्रिते च रेतसश्च विधारणे ।उत्ताने च भवेच्छिघ्रं शुक्राश्मर्यास्तु सम्भवः ॥४३॥सर्वमेतत्त्यजेत्तस्माद्यतोलोकद्वये हितम् ।शुक्रं तूपस्थितं मोहान्न संधार्यं कदाचन ॥४४॥स्नानानुलेपनहिमानिलखण्डखाद्यशीताम्बुदुग्धरसपूपसुराः प्रसन्नाः ।सेवेत चातुदिवसं विरतौ रतस्य त अस्यैवमाशु वपुषः पुनरेति धाम ॥४५॥स्नानं सशर्करं क्षीरं भक्ष्यमैक्षवसंस्कृतम् ।ततो मांसरसः स्वप्नो व्यवायान्ते हिता अमी ॥४६॥अतिव्यवायाज्जायन्ते रोगाश्चाक्षेपकादयः ।शूलकासज्वरश्वासकार्श्यपाण्ड्वामयक्षयाः ॥४७॥रात्रौ जागरणं रूक्षं कफदोषविषार्तिजित् ।निद्रा तु सेविता काले धातुसाम्यमतन्द्रितम् ।पुष्टिवर्णबलोत्साहवह्निदीप्तिं करोति च ॥४८॥यो लेढि शयनसमये मधुमिश्रं बीजपूरदलचूर्णम् ।स व्रीडाकरवातप्रसरनिरोधात्सुखं स्वपिति ॥४९॥सवितुरुदयकाले प्रसृतीः सलिलस्य पिबेदष्टौ । रोगजरापरिमुक्तो जीवेद्वत्सरशतं साग्रम् ॥५०॥ अनुदिनं त्वरुणे रविमण्डले पिबति तोयमनुज्झितमूत्रविट् ।अनिलपित्तकफानलदोषहृच्छतसमा रमते तरुणीशतम् ॥५१॥विगतघननिशीथे प्रातरुत्थाय नित्यं पिबति खलु नरो यो घ्राणरन्ध्रेण वारि । स भवति मतिपूर्णश्चक्षुषा तार्क्ष्यतुल्यो वलिपलितविहीनः सर्वरोगैर्विमुक्तः ॥५२॥अर्शःशोथग्रहण्यो ज्वरजठरजराकोष्ठमेदोविकारा मूत्राघातास्रपित्तश्रवणगलशिरःश्रोणिशूलाक्षिरोगाः ।ये चान्ये वातपित्तक्षतजकफकृता व्याधयः सन्ति जन्तोस्तांस्तानभ्यासयोगादपहरति पयः पीतमन्ते निशायाः ॥५३॥स्नेहपीते क्षतेऽशुद्ध्वावाध्माने स्तिमितोदरे ।हिक्कायां कफवातोत्थे व्याधौ तद्वारि वारयेत् ॥५४॥नरो दिनादिचर्याभिर्यो न वर्तेत नित्यशः ।स एव लभते रोगं ततः पथ्यं समाचरेत् ॥५५॥इति दिनरात्रिचर्या ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 12, 2017 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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