मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी ७ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी ७ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी ७ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २७१ )श्लोक अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ जो जो कहै सु मुकता होइ ।सुनि मीता नानकु बिनवंता साध जना की अचरज कथा ॥१॥पद १ ले साध कै संगि मुख ऊजल होत ।साध संगि मलु सगली खोत ॥साध कै संगि मिटें अभिमानु ।साध कै संगि प्रगटै सुगिआनु ॥साध कै संगि बुझै प्रभु नेरा ।साध संगि संभु होत निबेरा ॥साध कै संगि पाए नाम रतनु ।साध कै संगि एक ऊपरि जतनु ॥साध की महिमा बरनै कउनु प्रानी ।नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥१॥पद २ रेसाध कै संगि अगोचरु मिलै ।साध कै संगि सदा परफुलै ॥साध कै संगि आवहि बसि पंचा ।साध संगि अंम्रित रसु भुंचा ॥साध संगि होइ सभ की रेन ।साध के संगि मनोहर बैन ॥साध कै संगि न कतहूं धावै ।साध संगि असथिति मनु पावै ॥साध कै संगि माइआ ते भिंन ।साध संगि नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥पद ३ रेसाध संधि दुसमन सभि मीत । साधू कै संगि महा पुनीत ॥साध संगि किस सिउ नही बैरु ।साध कै संगि न बीगा पैरु ॥साध कै संगि नाही को मंदा ।साध संगि जाने परमानंदा ॥साध कै संगि नाही हउ तापु ।साध कै संगि तजै सभु आपु ॥आपे जानै साद बडाई ।नानक साध प्रभू बनि आई ॥३॥पद ४ थे साध कै संगि न कबहू धावै ।साध कै संगि सदा सुखु पावै ॥साध संगि सदा सुखु लहै ।साधू कै संगि अजरू सहै ॥साध कै संगि बसै थानि ऊचै ।साधू कै संगि महलि पहूचै ॥साध कै संगि द्रिड़ै सभि धरम ।साध कै संगि केवल पारब्रहम ॥साध कै संगि पाए नाम निधान ।नानक साधू कै कुरबान ॥४॥पद ५ वेसाध कै संगि सभ कुल उधारै ।साध संगि साजन मीत कुटंब निसतारैं ॥साधू कै संगि सो धनु पावै ।जिसु धन ते सभु को वरसावै ॥साध संगि धरमराइ करे सेवा ।साध कै संगि सोभा सुर देवा ॥साधू कै संगि पाप पलाइन ।साध संगि अंम्रित गुन गाइन ॥साध कै संगि स्त्रब थान गंमि ।नानक साध कै संगि सफल जनंम ॥५॥पद ६ वेसाध कै संगि नही कछु घाल ।दरसनु भेटत होत निहाल ॥साध कै संगि कलूखत हरै ।साध कै संगि नरक परहरै ॥साध कै संगि ईहा ऊहा सुहेला ।साध सांगि बिछुरत हरि मेला ॥जो इछै सोई फलु पावै ।साध कै संगि न बिरथा जावै ॥पारब्रहमु साध रिद बसै ।नानक उधरै सुनि रसै ॥६॥पद ७ वेसाध कै संगि सनुउ हरि नाउ ।साध संगि हिर के गुन गाउ ॥साध कै संगि न मन ते बिसरै ।साध संगि सरपर निसतरै ॥साध कै संगि लगै प्रभु मीठा ।साधू कै संगि घटि घटि डीठा ॥साध संगि भए आगिआकारी ।साध संगि गति भई हमारी ॥साध कै संगि मिटे सभि रोग ।नानक साध भेटे संजोग ॥७॥पद ८ वेसाध की महिमा बेद न जानहि ।जेता सुनहि तेता बखिआनहि ॥साध की महिमा तिहु गुण ते दूरि ।साध की उपमा रही भरपूरि ॥साध की सोभा का नाही अंत ।साध की सोभा सदा बेसंत ॥साध की सोभा ऊच ते ऊची ।साध की सोभा मूच ते मूची ॥साध की सोभा साध बनि आई ।नानक साध प्रभ भेदु न भई ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP