मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १२ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १२ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १२ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २७६ )श्लोकसुखी बसै मसकीनीआ आपु निवारि तले ।बडे बडे अहंकारीआ नानक गरबि गले ॥१॥पद १ लेजिस कै अंतरि राज अभिमानु ।सो नरक पाती होवत सुआनु ॥जो जानै मै जोबनवंतु ।सो होवत बिसटा का जंतु ॥आपस कउ करमवंतु कहावै ।जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावै ॥धन भूमि का जो करै गुमानु ।सो मूरखु अंधा अगिआनु ।करि किरपा जिस कै हिरदै गरीबी बसावै ।नानक ईहा मुकतु आगै सुखु पावै ॥१॥पद २ रे धनवंता होइ करि गरबावै ।त्रिण समानि कछु संगि न जावै ॥बहु लसकर मानुख ऊपरि करे आस ।पल भीतरि ता का होइ बिनास ॥सभ ते आप जानै बलमंतु ।खिन महि होइ जाइ भसमंतु ॥किसै न बदै आपि अहंकारी ।धरमराइ तिसु करे सुआरी ॥गुर प्रसादि जा का मिटै अभिमानु ।सो जनु नानक दरगह पर वानु ॥२॥पद ३ रे कोटि करम करै हउ धारे ।स्र्मु पावै सगले बिरथारे ॥अनिक तपसिआ करे अहंकार ।नरक सुरग फिरि फिरि अवतार ॥अनिक जतन करि आतम नही द्र्वै ।हरि दरगह कहु कैसे गवै ॥आपस कउ जो भला कहावै ।तिसहि भलाई निकटि न आवै ॥सरब की रेन जा का मनु होइ ।कहु नानक ता की निरमल निरमल सोइ ॥३॥पद ४ थे जब लगु जानै मुझ ते कछु होइ ।तब इस कउ सुखु नाही कोइ ॥जब इह जानै मै किछु करता ।तब लगु गरभ जोनि महि फिरता ॥जब धारै कोऊ बैरी मीतु ।तब लगु निहचलु नाही चीतु ॥जब लगु मोह मगन संगि माइ ।तब लगु धरमराइ देइ सजाइ ॥प्रभ किरपा ते बंधन तूटै ।गुर प्रसादि नानक इउ छूटै ॥४॥पद ५ वे सहस खटे लख कउ उठि धावै ।त्रिपति न आवै माइआ पाछै पावै ॥अनिक भोग बिखिआ के करै ।नह त्रिपतावै खपि खपि मरै ॥बिना संतोख नही कोऊ राजै ।सुपन मनोरथ ब्रिथे सभ काजै ॥नाम रंगि सरब सुखु होइ ।बडभागी किसै परापति होइ ॥करन करावन आपे आपि ।सदा सदा नानक हरि जापि ॥५॥पद ६ वे करन करावन करनैहारु ।इस कै हथि कहा बीचारु ॥जैसी द्रिसटि करे तैसा होइ ।आपे आपि आपि प्रभु सोइ ॥जो किछु कीनो सु अपनै रंगि ।सभ ते दूरि सभहू कै संगि ॥बूझै देखै करै बिबेक ।आपहि एक आपहि अनेक ॥मरै न बिनसै आवै न जाइ ।नानक सद ही रहिआ समाइ ॥६॥पद ७ वे आपि उपदेसै समझै आपि ।आपे रचिआ सभ कै साथि ॥आपि कीनो आपन बिसथारु ।सभु कछु उस का ओहु करनैहारु ॥उस ते भिंन कहहु किछु होइ ।थान थनंतरि एकै सोइ ॥अपुने चलित आपि करणैहार ।कउतक करै रंग आपार ॥मन महि आपि मन अपुने माहि ।नानक कीमति कहनु न जाइ ॥७॥पद ८ वे सति सति सति प्रभु सुआमी ।गुर परसादि किनै वखिआनी ॥सचु सचु सचु सभु कीना ।कोटि मधे किनै बिरलै चीना ॥भला भला भला तेरा रुप ।अति सुंदर अपार अनूप ॥निरमल निरमल निरलम तेरी बाणी ।घटि घटि सुनी स्रवन बख्याणी ॥पवित्र पवित्र पवित्र पुनीत ।नामु जपै नानक मनि प्रीति ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP