मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी ९ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी ९ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी ९ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २७४ )श्लोकउरि धारै अंतरि नामु सरब मै पेखै भगवानु ।निमख निमख ठाकुर नमसकारै ।नानक ओहु अपरसु सगल निसतारै ॥१॥पद १ लेमिथिआ नाही रसना परस ।मन हि प्रीति निरंजन दरस ॥पर त्रिअ रुपु न पेखै नेत्र ।साध की टहल संत संगि हेत ॥करन न सुनै काहू की निंदा ।सभ ते जानै आपस कउ मंदा ॥गुर प्रसादि बिखा परहरै ।मन की बासना मन ते टरै ॥इंद्री जित पंच दोख ते रहत ।नानक कोटि मधे को ऐसा अपरस ॥१॥पद २ रे बैसनो सौ जिसु ऊपरि सु प्रसंन ।बिसन की माइआ ते होइ भिंन ॥करम करत होवै निहकरम ।तिसु बैसनो का निरमल धरम ॥काहू फल की इच्छा नही बाछै ।केवल भगति कीरतन संगि राचै ॥मन तन अंतरि सिमरन गोपाल ।सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥आपि द्रिड़ै अवरह नामु जपावै ।नानक ओहु बैसनो परम गति पावै ॥२॥पद ३ रेभगउती भगवंत भगति का रंगु ।सगला तिआगै दुसट का संगु ॥मन ते बिनसै सगला भरमु ।करि पूजै सगला पारब्रहमु ॥साध संगि पापा मलु खोवै ।तिसु भगउती की मति ऊतम होवै ॥भगवंत की टहल करै नित नीति ।मनु तनु अरपै बिसन परीति ॥हरि के चरन हिरदै बसावै ।नानक ऐसा भगउती भगवंत कउ पावै ॥३॥पद ४ थेसो पंडितु जो मनु परबोधै ।राम नमौ आतम महि सोधै ॥राम नाम सारु रसु पीवै ।उसु पंडित कै उपदेसि जगु जीवै ॥हरि की कथा हिरदै बसावै ।सो पंडितु फिरि जोनि न आवै ॥बेद पुरान सिम्रिति बूझै मूलु ।सूखम महि जानै असथूलु ॥चहु वरना कउ दे उपदेसु ।नानक उसु पंडित कउ सदा अदेसु ॥४॥पद ५ वेबीज मंत्रु सरब को गिआनु ।चहु वरना महि जपै कोऊ नामु ॥जो जो जपै तिस की गति होइ ।साध संगि पावै जनु कोइ ॥करि किरपा अंतरि उरधारै ।पसु प्रेत मुघद पाथर कउ तारै ॥सरब रोग का अउखदु नामु ।कलिआण रुप मंगल गुण गाम ॥काहू जुगति कितै न पाईऐ धरमि ।नानक तिसु मिलै जिसु लिखिआ धुरि करमि ॥५॥पद ६ वेजिस कै मनि पारब्रहम का निवासु ।तिस का नामु सति रामदासु ॥आतम रामु तिसु नदरी आइआ ।दास द्संतण भाइ तिनि पाइआ ॥सदा निकटि निकटि हरि जानु ।सो दासु दरगह परवानु ॥अपुने दास कउ आपि किरपा करै ।तितु दास कउ सभ सोझी परै ॥सगल संगि आतम उदासु ।ऐसी जुगति नानक रामदासु ॥६॥पद ७ वेप्रभ की आगिआ आतम हितावै ।जीवन मुकति सोऊ कहावै ॥तैसा हरखु तैसा उसु सोगु ।सदा अनंदु तद नही बोओगु ॥तैसा अंम्रित तैसी बिखु खाटी ॥तैसा मानु तैसा अभिमानु ।तैसा रंकु तैसा राजानु ॥जो वरताए साई जुगति ।नानक ओहु पुरखु कहिऐ जीवन मुकति ॥७॥पद ८ वेपारब्रहम के सगले ठाउ ।जितु जितु घरि राखै तैसा तिन नाउ ॥आपे करन करावन जोगु ।प्रभ भावै सोई फुनि होगु ।पसरिओ आपि होइ अनत तरंग।लखे न जाहि पारब्रहम के रंग ॥जैसी मति देह तैसा परगास ।पारब्रहमु करता अबिनास ॥सदा सद सदा दइआल ।सिमरि सिमरि नानक भए निहाल ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP