मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १३ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १३ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १३ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब - पान क्र. २७९ )संत सरनि जो जनु परै सो जनु उधरनहारु ॥संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार ॥१॥पद १ ले संत कै दूखनि आरजा घटै ।संत कै दूखनि जम ते नही छुटै ॥संत कै दूखनि सुखु सभु जाइ ।संत कै दूखनि नरक महि पाइ ॥संत कै दूखनि मति होइ मलीन ।संत कै दूखनि सोभा ते हीन ॥संत कै हते कउ रखै न कोइ ।संत कै दूखनि थान भ्रसटु होइ ॥संत क्रिपाल क्रिपा जै करै ।नानक संत संगि निंदकु भी तरै ॥१॥पद २ रे संत के दूखन ते मुखु भवै ।संत कै दूखनि काग जिउ लवै ॥संत कै दूखनि सरप जोनि पाइ ।संत कै दूखनि त्रिगद जोनि किरमाइ ॥संत कै दूखनि त्रिसना महि जलै ।संत कै दूखनि सभु को छलै ॥संत कै दूखनि तेजु सभु जाइ ।संत कै दूखनि नीचु निचाइ ॥संत दोखी का थाऊ को नाहि ।नानक संत भावै तोओइ भी गति पाहि ॥२॥पद ३ रे संत का निंदकु महा अतताई ।संत का निंदकु खिनु टिकनु न पाई ॥संत का निंदक महा हतिआरा ।संत का निंदक परमेसुरि मारा ॥संत का निंदक राज ते हीनु ।संत का निंदुक दुखीआ अरु दीनु ॥संत के निदक कउ सरब रोग ।संत की निंदक कउ सदा बिजोग ॥संत की निंदा दोख महि दोखु ।नानक संत भावै ता उस का भी होइ मोखु ॥३॥पद ४ थे संत का दोखी सदा अपवितु ।संत का दोखी किसै का नही मितु ॥संत के दोखी कउ डानु लागै ।संत के दोखी कऊ सभ तिआगै ॥संत का दोखी माह अहंकारी ।संत का दोखी जनमै मरै ।संत की दूखना सुख ते टरै ॥संत के दोखी कउ नाही ठाउ ।नानक संत भावै ता लए मिलाइ ॥४॥पद ५ वे संत का दोखी अध बीच ते टूटै ।संत का दोखी कितै काजि न पहूचै ॥संत के दोखी कउ उदिआन भ्रमाईऐ ।संत का दोखी उझड़ि पाईऐ ॥संत का दोखी अंतर ते थोथा ।जिउ सास बिना मिरतक की लोथा ॥संत के दोखी की जड़ किछु नाहि ।आपन बीजि आपे ही खाहि ॥संत के दोखी कउ अवरु न राखन हारु ।नानक संत भावै ता लए उबारि ॥५॥पद ६ वेसंत का दोखी इउ बिललाइ ।जिउ जल बिहून मछुली तड़फड़ाइ ॥संत का दोखी भूखा नही राजै ।जिउ पावकु ईधनि नही ध्रापै ॥संत का दोखी छुटै इकेला ।जिउ बूआडु तिलु खेत माहि दुहेला ॥संत को दोखी धरम ते रहत ।संत का दोखी सद मिथिआ कहत ॥किरतु निंदक का धुरि ही पइआ ।नानक जा तिसु भावै सोई थिआ ॥६॥पद ७ वे संत का दोखी बिगड़ रुपु होइ जाइ ।संत के दोखी कउ दरगह मिलै सजाइ ॥संत का दोखी सदा सहाकाईऐ ।संत का दोखी न मरै न जीवाईऐ ॥संत के दोखी की पुजै न आसा ।संत का दोखी उठि चलै निरासा ॥संत कै दोखि न त्रिसटै कोइ ।जैसा भावै तैसा कोई होइ ॥पइआ किरतु न मेटै कोइ ।नानक जानै सचा सोइ ॥७॥पद ८ वेसभ घट तिस के ओहु करनैहारु ।सदा सदा तिस कउ नमसकारु ॥प्रभ की उसतति करहु दिनु राति ।तिसहि धिआवहु सासि गिरासि ॥सभु कछु वरतै तिस का कीआ ।जैस करे तैसा को थीआ ॥अपना खेलु आपि करनैहारु ।दूसर कउनु कहै बीचारु ॥जिस नो क्रिपा करै तिसु आपन नामु देइ ।बडभागी नानक जन सेइ ॥८॥१३॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP