मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १० सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १० हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १० Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र, २७५ )श्लोकउसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार ।नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥पद १ लेकई कोटि होए पूजारी ।कई कोटि आचार बिउहारी ॥कई कोटि भए तीरथ वासी ।कई कोटि बन भ्रमहि उदासी ॥कई कोटि बेद के स्त्रोते ।कई कोटि तपीसुर होते ॥कई कोटि आतम धिआनु धारहि ।कई कोटि कबि काबि बीचारहि ॥कई कोटि नवतन नाम धिआवहि ।नानक करते का अंतु न पावहि ॥१॥पद २ रेकई कोटि भए अभिमानी ।कई कोटि अंध अगिआनी ॥कई कोटि किरपन कठोर ।कई कोटि अभिग आतम निकोर ॥कई कोटि पर दरब कउ हिरहि ।कई कोटि पर दूखना करहि ॥कई कोटि माइआ स्रम माहि ।कई कोटि परदेस भ्रमाहि ॥जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ।नानक करते की जानै करता रचान ॥२॥पद ३ रेकई कोटि सिध जती जोगी ।कई कोटि राजे रस भोगी ॥कई कोटि पंखी सरप उपाए ।कई कोटि पाथर बिरख निपजाए ॥कई कोटि पवण पाणी बैसंतर ।कई कोटि देस भू मंडल ॥कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र । कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र ॥सगल समग्री अपनै सूति धारै ।नानक जिसु जिसु भावै तिसु निसतारै ॥३॥पद ४ थे कई कोटि राजस तामस सातक ।कई कोटि बेद पुरान सिम्रिति अरु सासत ॥कई कोटि कीए रतन समुंद ।कई कोटि नाना प्रकार जंत ॥कई कोटि कीए चिर जीवे ।कई कोटि गिरि मेर सुवरन थीवे ॥कई कोटि जख्य किंनर पिसाच ।कई कोटि भूत प्रेत सूकर म्रिगाच ॥सभ ते नेरै सभहू ते दूरि ॥नानक आपि अलिपतु रहिआ भरपूरि ॥४॥पद ५ वे कई कोटि पाताल के वासी ।कई कोटि नरक सुरग निवासी ॥कई कोटि जनमहि जीवहि मरहि ।कई कोटि बहु जोनी फिरहि ॥कई कोटि बैठत ही खाहि ।कई कोटि घालहि थकि पाहि ॥कई कोटि कीए धनवंत ।कई कोटि काइआ महि चिंत ॥जह जह भाणा तह तह राखे ।नानक सभु किछु प्रभ कै हाथे ॥५॥पद ६ वेकई कोटि भए बैरागी ।राम नाम संगि तिनि लिव लागी ॥कई कोटि प्रभ कउ खोजंते ।आतम महि पारब्रहमु लहंते ॥कई कोटि दरसन प्रभ अबिनास ॥कई कोटि मागहि सतसंगु ।पारब्रहम तिन लागा रंगु ॥जिन कउ होए आपि सुप्रसंन ।नानक ते जन सदा धनि धंनि ॥६॥पद ७ वेकई कोटि खाणी अरु खंड ।कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥कई कोटि होए अवतार ।कई जुगति कीनो बिसथार ॥कई बार पसरिओ पासार ।सदा सदा इकु एकं कार ॥कई कोटि कीने बहु भाति ।प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति ॥ता का अंतु न जानै कोइ ।आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥७॥पद ८ वेकई कोटि पारब्रहम के दास ।तिन होवत आतम परगास ॥कई कोटि तत के बेते ।सदा निहारहि एको नेत्रे ॥कई कोटि नाम रसु पीवहि ।अमर भए सद सद ही जीवहि ॥कईकोटि नाम गुन गावहि ।आतम रसि सुखि सहजि समावहि ॥अपुने जन कउ सासि सासि समारे ।नानक ओइ परमेसुर के पिआरे ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP