मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १६ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १६ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १६ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब - पान २८३ )श्लोकरुपु न रेख न रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन ।तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन्न ॥१॥पद १ लेअबिनासी प्रभु मन महि राखु ।मानुख की तू प्रीति तिआगु ॥तिस ते परै नाही किछु कोइ ।सरब निरंतरि एको सोइ ॥आपे बीना आपे दाना ।गहिर गंभीरु गहीरु सुजाना ॥पारब्रम्ह परमेसुर गोबिंद ।क्रिपा निधान दइआल बखसंद ।साध तेरे की चरनी पाउ ॥नानक कै मनि इहु अनराउ ॥१॥पद २ रेमनसा पूरन सरना जोग ।जो करि पाइआ सोई होगु ॥हरन भरन जा का नेत्र फोरु ।तिस का मंत्रु न जानै होरु ॥अनद रुप मंगल सदा जा कै ।सरब थोक सुनीअहि घरि ता कै ॥राज महि राजु जोग महि जोगी ।तप महि तपीसरु ग्रिहसत महि भोगी ॥धिआइ धिआइ भगतह सुखु पाइआ ।नानक तिसु पुरख का किनै अंतु न पाइआ ॥२॥पद ३ रेजा की लीला की मिति नाहि ।सगल देव हारे अवगाहि ॥पिता का जनमु कि जानै पूतु ।सगल परोई अपुनै सूति ॥सुमति गिआनु धिआनु जिन देइ ।जन दास नामु धिआवहि सेइ ॥तिहु गुण महि जा कउ भरमाए ।जनमि मरै फिरि आवै जाए ॥ऊच नीच तिस के असथान ।जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥पद ४ थे नाना रुप नाना जा के रंग ।नाना भेख करहि इक रंग ॥नाना बिधि कीनो बिसथारु ।प्रभु अबिनासी एकंकारु ॥नाना चलित करे खिन माहि ।पूरि रहिओ पूरनु सभ ठाइ ॥नाना बिधि करि बनत बनाई ।अपनी कीमति आपे पाई ॥सभ घट तिस के सभ तिस के ठाउ ।जपि जपि जीवै नानक हरि नाउ ॥४॥पद ५ वे नाम के धारे सगले जतं ॥नाम के धारे खंड ब्रहमंड ॥नाम के धारे सिम्रिति बेद पुरान ।नाम के धारे सुनन गिआन धिआन ॥नाम के धारे आगास पाताल ।नाम के धारे सगल आकार ॥नाम के धारे पुरीआ सभ भवन ।नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन ॥करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए ।नानक चउथे पद महि सो जनु गति पाए ॥५॥पद ६ वेरुपु सति जा का सति असथानु ।पुरखु सति केवल परधानु ॥ करतूति सति सति जा की बाणी ।सति पुरख सभ माहि समाणी ॥सति करमु जा की रचना सति ।मूलु सति सति उतपति ॥सति करणी निरमल निरमली ।जिसहि बुझाए तिसहि सभ भली ॥सति नामु प्रभ का सुखदाई ।बिस्वासु सति नानक गुर ते पाई ॥६॥पद ७ वेसति बचन साधू उपदे स ।सति ते जन जा कै रिदै प्रवेस ॥सति निरति बूझै जे कोइ ।नामु जपत ता की गति होइ ॥आपि सति कीआ सभु सति ।आपे जानै अपनी मिति गति ॥जिस की स्रिसटि सु करणैहारु ।अवर न बुझि करत बीचारु ॥करते की मिति न जानै कीआ ।नानक जो तिसु भावै सो वरतीआ ॥७॥पद ८ वेबिसमन बिसम भए बिसमाद ।जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद ॥प्रभ कै रंगि राचि जन रहे ।गुर कै बचनि पदारथ लहे ॥ओइ दाते दुख काटनहार ।जा कै संगि तरै संसार ॥जन का सेवकु सो वडभागी ।जन कै संगि एक लिव लागी ॥गुन गोबिंद लीरतनु जनु गावै ।गुर प्रसादि नानक फलु पावै ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP