मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १ Translation - भाषांतर ॥ एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥अष्टपदी १( श्री गुरु ग्रंथ साहिब - पान क्रा. २२ )श्लोक आदि गुरए नमह । जुगादि गुरए नमह ।सतिगुरए नमह । स्त्री गुरदेवए नमह ॥१॥पद १ लेसिमरउ सिमरि सिमरि सुखु पावउ ।कलि कलेस तन माहि मिटावउ ॥सिमरउ जासु बिसुंभर एकै ॥नामु जपत अगनत अनेकै ।बेद पुरान सिंम्रिति सुधाख्यर ॥कीने राम नाम इक आख्यर ।किनका एक जिसु जीअ बसावै ॥ता की महिमा गनी न आवै ।कांखी एकै दरस तुहारो ॥नानक उन संगि मोहि उधारो ॥१॥सुख मनी सुख अंम्रित प्रभ नामु ।भगत जना कै मनि बिस्त्राम ॥ रहाउ ॥पद २ रे प्रभ कै सिमरनि गरभि न बसै ।प्रभ कै सिमरनि दूखु जमु नसै ॥प्रभ कै सिमरनि कालु परहरै ।प्रभ कै सिमरनि दुसमनु टरै ॥प्रभ सिमरत कछु बिघनु न लागै ।प्रभ के सिमरनि अनदिनु जागै ॥प्रभ के सिमरनि भउ न बिआपै ।प्रभ कै सिमरनि दुखु न संतापै ॥प्रभ का सिमरनु साध कै संगि ।सरब निधान नानक हरि रंगि ॥२॥पद ३ रे प्रभ कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि ।प्रभ कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि ॥प्रभ कै सिमरनि जप तप पूजा ।प्रभ कै सिमरनि बिनसै दूजा ॥प्रभ कै सिमरनि तीरथ इसनानी ।प्रभ कै सिमरनि दरगह मानी ॥प्रभ कै सिमरनि होई सु भला ।प्रभ कै सिमरनि सुफल फला ॥से सिमरहि जिन आपि सिमराए ।नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥पद ४ थे प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ।प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा ॥प्रभ कै सिमरनि त्रिसना बुझै ।प्रभ कै सिमरनि सभु किछु सुझै ॥प्रभ कै सिमरनि नाही जम त्रासा ।प्रभ कै सिमरनि पूरन आसा ॥प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ ।अंम्रित नामु रिद माहि समाइ ॥प्रभ जी बसहि साध की रसना ।नानक जन का दासनि दसना ॥४॥पद ५ वे प्रभ कउ सिमरहि से धनवंते ।प्रभ कउ सिमरहि से पतिवंते ॥प्रभ कउ सिमरहि से जन परवान ।प्रभ कउ सिमरहि से पुरख प्रधान ॥प्रभ कउ सिमरहि सि बेमुहताजे ।प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे ॥प्रभ कउ सिमरहि से सुखवासी ।प्रभ कउ सिमरहि सदा अबिनासी ॥सिमरन ते लागे जिन आपि दइआला ।नानक जन की मंगै र वाला ॥५॥पद ६ वे प्रभ कउ सिमरहि से पर उपकारी ।प्रभ कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी ॥प्रभ कउ सिमरहि से मुख सुहावे ।प्रभ कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै ॥प्रभ कउ सिमरहि तिन आतमु जीता ।प्रभ कउ सिमरहि तिन निरमल रीता ॥प्रभ कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे ।प्रभ कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे ॥संत क्रि पा ते अनदिनु जागि ।नानक सिमरनु पूरै भागि ॥६॥पद ७ वेप्रभ कै सिमरनि कारज पूरे ।प्रभ कै सिमरनि कबहु न झूरे ॥प्रभ कै सिमरनि हरि गुन बानी ।प्रभ कै सिमरनि सहजि समानी ॥प्रभ कै सिमरनि निहचल आसनु ।प्रभ कै सिमरनि कमल बिगासनु ॥प्रभ कै सिमरनि सनहद झुनकार ।सुखु प्रभ सिमरन का अंतु न पार ॥सिमरहि से जन जिन कउ प्रभ मइआ ।नानक तिन जन सरनी पइआ ॥७॥पद ८ वेहरि सिमरनु करि भगत प्रगटाए ।हरि सिमरनि लगि बेद उपाए ॥हरि सिमरनि भए सिध जती दाते ।हरि सिमरनि नीच चहु कुंट जाते ॥हरि सिमरनि धारी सभ धरना ।सिमरि सिमरि हरि कारन करना ॥हरि सिमरनि कीओ सगल अकारा ।हरि सिमरन महि आपि निरंकारा ॥करि किरपा जिसु आपि बुझाइआ ।नानक गुरमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP