मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी ४ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी ४ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी ४ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २६७ )श्लोकनिरगुनीआर इआनिआ सो प्रभु सदा समालि ।जिन कीआ तिसु चीति रखु नानक निबही नालि ॥१॥पद १ लेरमईआ के गुन चेति परानी । कवन मूल ते कवन द्रिसटानी ॥जिनि तूं साजि सवारि सीगारिआ ।बार बिवसथा तुझहि पिआरै दूध ।भरि जोबन भोजन सुख सूध ॥बिरधि भइआ ऊपरि साक सैन ।मुखि अपिआउ बैठ कउ दैन ॥इहु निरगुनु गुनु कछू न बूझै ।बखसि लेहु तउ नानक सीझै ॥१॥ पद २ रेजिह प्रसाहि धर ऊपरि सुखि बसहि ।सुत भ्रात मीत बनिता संगि हसहि ॥जिह प्रसादि पीवहि सीतल जला ।सुखदाई पवनु पावकु अमुला ॥जिह प्रसादि भोगहि सभि रसा ।सगल समग्री संगि साथि बसा ॥दीने हसत पाव करन नेत्र रसना ।तिसहि तिआगि अवर संगि रचना । ऐसे दोख मूड अंध बिआपे । नानक काढि लेहु प्रभ आपे ॥२॥पद ३ रेआदि अंति जो राखनहारु ।तिस सिउ प्रीति न करै गवारु ॥जा की सेवा नव निधि पावै ।ता सिउ मूडा़ मनु नही लावै ॥जो ठाकुरु सद सदा हजुरे ।ता कउ अंधा जानत दूरे ॥जा की टहल पावै दरगह मानु ।तिसहि बिसारै मुगधु अजानु ॥सदा सदा इहु भूलनहारू ।नानक राखनहारु अपारु ॥३॥पद ४ थे रतनु तिआगि कउडी संगि रचै ।साचु छोडि झूठ संगि मचै ॥जो छडना सु असथिरु करि मानै ।जो होवनु सो दूरि परानै ॥छोडि जाइ तिस परहरै ॥चंदन लेपु उतारै धोइ ।गरधब प्रीति भसम संगि होइ ॥अंध कूप महि पतित बिकराल ।नानक काढि लोहु प्रभ दइआल ॥४॥पद ५ वेकरतूति पसू की मानस जाति ।लोक पचारा करै दिनु राति ॥बाहरि भेख अंतरि मलु माइआ ।छपसि नाहि कछु करै छपाइआ ॥बाहरि गिआन धिआन इसनान ।अंतरि बिआपै लोभु सुआनु ॥अंतरी अगनि बाहरि तनु सुआह ।गलि पाथर कैसे तरै अथाह ॥जा कै अंतरि बसै प्रभु आपि ।नानक ते जन सहजि समाति ॥५॥पद ६ वेसुनि अंधा कैसे मारगु पावै ।करु गहि लेहु ओड़ि निबहावै ॥कहा बुझारति बूझै डोरा । निसि कहीऐ तउ समझै भोरा ॥कहा बिसनपद गावै गुंग ।जतन करै तउ भी सुर भंग ॥कह पिंगुल परबत परभवन ।नही होत ऊहा उसु गवन ॥करतार करुणामै दीनु बेनती करै ।नानक तुमरी किरपा तरै ॥६॥पद ७ वेसंगि सहाई सु आवै न चीति ।जो बैराई ता सिउ प्रीति ॥बलूआ के ग्रिह भीतरि बसै ।अनद केल माइआ रंगि रसै ॥द्रिडु करि मानै मनहि प्रतीति ।कालु न आवै मूड़े चीति ॥बैर बिरोध काम क्रोध मोह ।झूठ बिकार महा लोभ ध्रोध ॥इआहू जुगति बिहाने कई जनम ।नानक राखि लेहु आपन करि करम ॥७॥पद ८ वे तू ठाकुरु तुम पहि अरदासि ।जीउ पिंडु सभु तेरी रासि ॥तुम माता पिता हम बारिक तेरे ।तुमरी क्रिपा महि सूख घनेरे ॥कोइ न जानै तुमरा अंतु ।ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥सगल समग्नी तुमरै सूत्रि धारी ।तुम ते होइ सु सागिआकारी ॥तुमरी गति मिति तुम ही जानी ।नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP