मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी २१ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी २१ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी २१ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २९० )श्लोकसरगुन निरगुन निरंकार सुंन समाधी आपि ॥आपन कीआ नानका आपे ही फिरी जापि ॥१॥पद १ लेजब आकारु इहु कछु न द्रिसटेता । पाप पुं न तब क ह ते हो ता ॥जब धारी आपन सुं न समाधि ।तब बैर बिरोध किसु संगि कमाति ॥जब इस का बरनु चिहनु न जापत ।तब हरख सोग कहु किसहि बिआपत ॥जब आपन आप आपि पारब्रहम ।तब मोह कहा किसु होवत भरम ॥आपन खेलु आपि वरतीजा ।नानक करनैहारु न दूजा ॥१॥पद २ रेजब होवत प्रभ केवल धनी ।तब बंध मुकति कहु किस कउ गनी ॥जब एकहि हरि अगम अपार ।तब नरक सुरग कहु कउन अउतार ॥जब निरगुन प्रभ सहज सुभाइ ।तब सिव सकति कहहु कितु ठाइ ॥जब आपहि आपि अपनी जोति धरै ।तब कवन निडरु कवन कत डरै ॥आपन चलित आपि करनै हार ।नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥पद ३ रेअबिनासी सुख आपन आसन ।तह जनम मरन कहु कहा बिनासन ॥जब पूरन करता प्रभ सोइ ।तब जम की त्रास कहहु किसु होइ ॥जब अबिगत अगोचर प्रभ एका ।तब चित्र गुपत किसु पूछत लेखा ॥जब नाथ निरंजन अगोचर अगाधे ।तब कउन छुटे कुन बंधन बाधे ॥आपन आप आप ही अचरजा ।नानक आपन रुप आप ही उपरजा ॥३॥पद ४ थेजह निरमल पुरखु पुरखपति होत ।तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥जह निरंजन निरंकार निरबान ।तह कउन कउ मान कउन अभिमान ॥जह सरुप केवल जगदीस ।तह छल छिद्र लगत कहु कीस ॥जह जोति सरुपी जोति संगि समावै ॥तह किसहि भूख कवनु त्रिपतावै ।करन करावन करनैहारु ॥नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥पद ५ वेजब अपनी सोभा आपन संगि बनाई ।तब कवन माइ बाप मित्र सुत भाई ॥जह सरब कला आपहि परबीन ।तह बेद कतेब कहा कोऊ चीन ॥जब आपन आपु आपि उरि धारै ।तउ सगन अपसगन कहा बीचारै ॥जह आपन ऊच आपन आपि नेरा ।तह कउनु ठाकुरु कउनु कहीऐ चेरा ॥बिसमन बिसम रहे बिसमाद ।नानक अपनी गति जानहु आपि ॥५॥पद ६ वेजह अछल अछेद अभेद समाइआ ।ऊहा किसहि बिआपत माइआ ॥आपस कउ आपहि आदेसु ।तिहु गुण का नाही परवेसु ॥जह एकहि एक एक भगवंता ।तह कउनु अचिंत किसु लागै चिंता ॥जह आपन आपु आपि पतीआरा ।तह कउनु कथै कउनु सुननैहारा ॥बहु बेअंत ऊच त ऊचा ।नानक आपस कउ आपहि पहूचा ॥६॥पद ७ वेजह आपि रचिओ परपंचु अकारु ।तिहु गुण महि कीनो बिसथारु ॥पापु पुंनु तह भई कहावत ।कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत ॥आल जाल माइला जंजाल ।इउमै मोह भरम भै भार ॥दू ख सू ख मान अपमान ।अनिक प्रकार कीओ बख्यान ॥आपन खेलु आपि करि दे खै ।खेलु संकोचै तउ नानक एकै ॥७॥पद ८ वेजह अबिगतु भगतु तह आपि ।जह पसरै पासारु संत परतापि ॥दुहू पाख का आपहि धनी ।उन की सो भा उनहू बनी ॥आपहि कउतक करै अनद चोज ।आपहि रस भोगन निरजोग ॥जिसु भावै तिसु खेल खिलावै ॥बेसुमार अथाह अगनत अतोलै ।जिउ बुलावहु तिउ नानक दास बोलै ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP