मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी ६ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी ६ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी ६ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २६९ )श्लोककाम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहंमेव ।नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥१॥पद १ ले जिह प्रसादि छतीह अंम्रित खाहि ।तिसु ठाकुर कउ रखु मन माहि ॥जिह प्रसादि सुगंधत तनि लावहि ।तिस कउ सिमरत परम गति पावहि ॥जिह प्रसादि बसहि सुख मंदरि ।तिसहि धिआइ सदा मन अंदरि ॥जिह प्रसादि ग्रिह संगि सुख बसना ।आठ पहर सिमरहु तिसु रसना ॥जिह प्रसादि रंग रस भोग ।नानक सदा धिआईऐ धिआवन जोग ॥१॥पद २ रेजिह प्रसादि पाट पटंबर हढावहि ।तिसहि तिआगि कत अवर लुभावहि ॥जिह प्रसादि सुखि सेज सोईजै ।मन आठ पहर ता का जसु गावीजै ॥जिह प्रसादि तुझु सभु कोऊ मानै ।मुखि ता को जसु रसन बखानै ॥जिह प्रसादि तेरो रहता धरमु ।मन सदा धिआइ केवल पारब्रहमु ॥प्रभ जी जपत दरगह मानु पावहि ।नानक पति सेती घरि जावहि ॥२॥पद ३ रेजिह प्रसादि आरोग कंचन देही ।लिव लावहु तिसु राम सनेही ॥जिह प्रसादि तेरा ओला रहत ।मन सुखु पावहि हरि हरि जसु कहत ॥जिह प्रसादि तेरे सगल छिद्र ढाके ।मन सरनी परु ठाकुर प्रभ ता कै ॥जिह प्रसादि तुझु को न पहूचै ।मन सासि सासि सिमरहु प्रभ ऊचे ॥जिह प्रसादि पाई दुलभ देह ।नानक ता की भगति करेह ॥३॥पद ४ थे जिह प्रसादि आभूखन पहिरीजै ।मन तिसु सिमरत किउ आलसु कीजै ॥जिह प्रसादि अस्व हसति असवारी ।मन तिसु प्रभ कउ कबहू न बिसारी ॥जिह प्रसादि बाग मिलख धना । राखु परोइ प्रभु अपुने मना ॥जिनि तेरी मन बनत बनाई ।ऊठत बैठत सद तिसहि धिआई ॥तिसहि धिआइ जो एक अलखै ।ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥पद ५ वेजिह प्रसादि करहि पुंन बहु दान ।मन आठ पहर करि तिस का धिआन ॥जिह प्रसादि तू आचार बिउहारी ।तिसु प्रभ कउ सासि सासि चितारी ॥जिह प्रसाहि तेरा सुंदर रुपु ।सो प्रभु सिमरहु सदा अनूपु ॥जिह प्रसादि तेरा सुंदर रुपु ।सो प्रभु सिमरि सदा दिन राति ॥जिह प्रसादि तेरी पति रहै ।गुर प्रसादि नानक जसु कहै ॥५॥पद ६ वेजिह प्रसादि सुनहि करन नाद ।जिह प्रसादि पेखहि बिसमाद ॥जिह प्रसादि बोलहि अंम्रित रसना ।जिह प्रसादि सुखि सजजे बसना ॥जिह प्रसादि हसत कर चलहि ।जिह प्रसादि संपूरन फलहि ॥जिह प्रसादि परम गति पावहि ।जिह प्रसादि सुखि सहजि समावहि ॥ऐसा प्रभु तिआगि अवर कत लागहु ।गुर प्रसादि नानक मनि जागहु ॥६॥पद ७ वेजिह प्रसादि तूं प्रगटु संसारि ।तिसु प्रभ कउ मूलि न मनहु बिसरि ॥जिह प्रसादि तेरा परतापु ।रे मन मूड़ तू ता कउ जापु ॥जिह प्रसादि तेते कारज पूरे ।तिसहि जानु मन सदा हजूरे ॥जिह प्रसादि तूं पावहि साचु ।रे मन मेरे तूं ता सिउ राचु ॥जिह प्रसादि सभ की गति होइ ।नानक जापु जपै जपु सोइ ॥७॥पद ८ वेआपि जपाए जपै सो नाउ ।आपि गावाए सु हरि गुन गाउ ॥प्रभ किरपा ते होइ प्रगासु ।प्रभू दइआ ते कमल बिगासु ॥प्रभ सुप्रसंन बसै मनि सोइ ।प्रभ दइआ ते मति ऊतम होइ ॥सरब निधान प्रभ तेरी मइआ ।आपहु कछू न किनहू लइआ ॥जितु जितु लावहु तितु लगहि हिर नाथ ।नानक इन कै कछू न हाथ ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP