मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी २४ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी २४ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २९५ )श्लोकपूरा प्रभु आराधिआ पूरा जा का नाउ ॥नानक पूरा पाइसा पूरे के गुन गाउ ॥१॥पद १ लेपूरे गुर का सुनि उपदेसु ।पारब्रहमु निकटि करि पेखू ॥सारि सासि सिमरहु गोविंद ।मन अंतर की उतरै चिंद ॥आस अनित तिआगहु तरंग ।संत जना की धूरि मन मंग ॥आपु छोडिइ बेनती करहु ।साध संगि अगनि सागरु तरहु ॥हरि धन के भरि लेहु भंडार ।नानक गुर पूरे नमसकार ॥१॥पद २ रेखेम कुसल सहज आनंद ।साधसंगि भजु परमानंद ॥नरक निवारि उधारहु जीउ ।गुन गोबिंद अंम्रित रसु पीउ ॥चिति चितवहु नाराइण एक ।एक रुप ज के रंग अनेक ॥गोपाल दामोदर दीन दइआल ।दुख भंजन पूरन किरपाल ॥सिमरि सिमरि नामु बारं बार ।नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥पद ३ रेउतम सलोक साध के बचन ।अमुलीक लाल एहि रतन ॥सुनत कमावत होत उधार ।आपि तरे लोकह निसतार ॥सफल जीवनु सफलु ता का संगु ।जा कै मनि लागा हरि रंगु ॥जै जै सबदु अनाहदु वाजै ।सुनि सुनि अनद करे प्रभु गाजै ॥प्रगटे गुपाल महांत कै माथे ।नानक उधरे तिन कै साथे ॥३॥पद ४ थेसरनि जोगु सुनि सरनी आए ।करि किरपा प्रभ आप मिलाए ॥मिटि गए बैर भए सभ रेन ।अंम्रित नामु साध संगि लैन ॥सुप्रसंन भए गुरदेव ।पूरन होई सेवक की सेव ॥आल जंजाल बिकार ते रहते ।राम नाम सुनि रसना कहते ॥करि प्रसादु दइआ प्रभि धारी ।नानक निबही खेप हमारी ॥४॥पद ५ वेप्रभ की उसतति करहू संत मीत ।सावधान एकागर चीत ॥सुखमनी सहज गोबिंद गुन नाम ।जिसु मनि बसै सु होत निधान ॥सरब इच्छा ता की पूरन होइ ।प्रधान पुरखु प्रगटु सभ लोइ ॥सभ ते ऊच पाए असथानु ।बहुरि न होवै आवन जानु ॥हरि धनु खाटि चलै जनु सोइ ।नानक जिसहि परापति होइ ॥५॥पद ६ वेखेम सांति रिधि नव निधि ।बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु ।गिआनु स्रेसट ऊतम इसनानु ॥चारि पदारथ कमल प्रगास ।सभ कै मधि सगल ते उदास ॥सुंदरु चतुरु तत का बेता ।समदरसी एक द्रिसटेता ॥इह फा तिसु जन कै मुखि भने ।गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥पद ७ वेइहु निधानु जपै मनि कोइ ।सभ जुग महि ता की गति होइ ॥गुण गोबिंद नाम धुनि बाणी ।सिम्रिति सासत्र बेद बखाणी ॥सगल मतांत केवल हरि नाम ।गोबिंद भगत कै मनि बिस्राम ॥कोटि अप्राध साध संगि मिटै ।संत किप्रा ते जम ते छुटै ॥जा कै मसतकि करम प्रभि पाए ।साध सरणि नानक ते आए ॥७॥पद ८ वेजिसु मनि बसै सुनै लाइ प्रीति ।तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति ॥जनम मरन ता का दूखु निवारै ।दु लभ दे ह ततकाल उधारै ॥निरमल सोभा अंम्रित ता की बानी ।एकु नामु मन माहिं समानी ॥दूख रोग बिनसे भै भरम ।साध नाम निरमल ता के करम ॥सभ ते ऊच ता की सोभा बनी ।नानक इह गुणि नामु सुखमनी ॥८॥" गुरु कृपा अंजन पायो मेरे भाई ।राम बिना कछू जानत नाही ॥अंदर राम ही, बाहर राम ही ।जहा देखो वहा राजा राम ही ॥॥ धन्यवाद ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP