मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी २० सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी २० हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी २० Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब - पान क्र. २८९ )श्लोकफिरत फिरत प्रभ आइआ, परिआ तउ सरनाइ ॥नानक की प्रभ बेनती, अपनी भगती लाइ ॥१॥पद १ लेजाचकु जनु जाचै प्रभ दानु ।करि किरपा देवहु हरि नामु ॥साध जना की सागउ धूरि ।पारब्रहम मेरी सरधा पूरि ॥सदा सदा प्रभ के गुन गावउ ।सासि सासि प्रभ तुमहि धिआवउ ॥चरन कमल सिउ लागै प्रीति ।भगति करउ प्रभ की नित नीति ॥एक ओट एको आधारु ।नानकु मागै नामु प्रभ सारु ॥१॥पद २ रेप्रभ की द्रिसटि महा सुखु होइ ।हरि रसु पावै बिरला कोइ ॥जिन चाखिआ से जन त्रिपताने ।पूरन पुरख नही डोलाने ॥सुभर भर प्रेम रस रंगि ॥परे सरनि आन सभ तिआगि ।अंतरि प्रगास अनुदिनु लिव लागि ॥बडभागी जपिआ प्रभु सोइ ।नानक नामि रते सुखु होइ ॥२॥पद ३ रेसेवक की मनसा पूरी भई ।सतिगुर ते निरमल मति लई ॥जन कउ प्रभु होइओ दइआलु ।सेवकु किनो सदा निहालु ॥बंधन काटि मुकति जनु भइआ ।जनम मरन दूखु भ्रमु गइआ ॥इछ पुनी सरधा सभ पूरी ।रवि रहिआ सद अंगि हजूरी ॥जिसका सा तिनि लीआ मिलाइ ।नानक भगती नामि समाइ ॥३॥पद ४ थेसो किउ बिसरै जि घाल न भानै ।सो किउ बिसरै जि कीआ जानै ॥सो किउ बिसैरे जिनि सभु किछु दीआ ।सो किउ बिसरै जि जीवन जीआ ॥सो किउ बिसरै जि अगनि महि राखै ।गुर प्रसादि को बिराअ लाखै ॥सो किउ बिसरै जि बिखु त काढै ।जनम जनम का टुटा गाढै ॥गुरि पूरै ततु इहै बुझाइआ ।प्रभु अपना नानक जन धिआइआ ॥४॥पद ५ वेसाजन संत करहू इहु कामु ।आन तिआनि जपहु हरि नामु ॥सिमरि सिमरि सिमरि सुख पावहु ।आपि जपहु अवरह नामु जपावहु ॥भगति भाइ तरीऐ संसारु ।बिनु भगती तनु होसी छारु ॥सरब कलिआण सूख निधि नामु ।बूडत जात पाए बिस्रामु ॥सगल दूख का होवत नासु ।नानक नाम जपहु गुनतासु ॥५॥पद ६ वेउपजी प्रीति प्रेम रसु चाउ ।मन तन अंतरि इही सुआउ ॥नेत्रहु पेखि दरसु सुखु होइ ।मनु बिगसै साध चरन धोइ ॥भगत जना कै मनि तनि रंगु ।बिरला कोऊ पावै संगु ॥एक बसतु दीजै करि मइआ ।गुर प्रसादि नामु जपि लइआ ॥ता की उपमा कही न जाइ ।नानक रहिआ सरब समाइ ॥६॥पद ७ वेप्रभ बखसंद दीन दइआल ।भगति वछल सदा किरपाल ॥अनाथ नाथ गोबिंद गुपाल ।सरब घटा करत प्रतिपाल ॥आदि पुरख कारण करतार ।भगत जना के प्रान अधार ॥जो जो जपै सु होइ पुनीत ।भगति भाइ लावै मन हीत ॥हम निरगुनीआर नीच अजान ।नानक तुमरी सरनि पुरख भगवान ॥७॥पद ८ वेसरब बैकुंठ मुकति मोख पाए ।एक निमख हरि के गुन गाए ॥अनिक राज भोग बडिआई ।हरि के नाम की कथा मनि भाई ॥बहु भोजन कापर संगीत ।रसना जपती हरि हरि नीत ॥भली सु करनी सोभा धनवंत ।हिरदै बसे पूरन गुर मंत ॥साध संगि प्रभ देहु निवास ।सरब सूख नानक परगास ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP