मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १५ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १५ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १५ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब - पान क्र. २८२ )श्लोकसरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार ।जा कै सिमरनि उधरीऐ नानक तिसु बलिहार ॥१॥पद १ लेटूटी गाढनहार गोपाल ।सरब जीआ आपे प्रतिपाल ॥सगल की चिंता जिसु मन माहि ।तिस ते बिरथा कोई नाहि ॥रे मन मेरे सदा हरि जापि ।अबिनासी प्रभु आपे आपि ॥आपन कीआ कछू न होइ ।जे सउ प्रानी लोचै कोइ ॥तिसु बिनु नाही तेरै किछु काम ।गति नानक जपि एक हरि नाम ॥१॥पद २ रे रुपवंतु होइ नाही मोहै ।प्रभ की जोति सगल घट सोहै ॥धनवंता होइ किआ को गरबै ।जा सभु किछु तिस का दिआ दरबै ॥अति सूरा जे कोऊ कहावै ।प्रभ की कला बिना कह धावै ॥जे को होइ बहे दातारु ।तिसु देनहारु जानै गावारु ॥जिसु गुर प्रसादि तूटै हउ रोगु ।नानक सो जनु सदा अरोगु ॥२॥पद ३ रेजिउ मंदर कउ थामै थंमनु ।तिउ गुर का सबदु मनहि असथंमनु ॥जिउ पाखाणु नाव चड़ि तरै ।प्राणी गुर चरण लगतु निसतरै ॥जिउ अंधकार दीपक परगासु ।गुर दरसनु देखि मनि होइ बिगासु ॥जिउ महा उदिआन महि मारगु पावै ।तिउ साधू संगि मिलि जोति प्रगटावै ॥तिन संतन की बाछउ धूरि ।नानक की हरि लोचा पूरि ॥३॥पद ४ थे मन मूरख काहे बिललाईऐ ।पुरब लिखे का लिखिआ पाईऐ ॥दूख सूख प्रभ देवनहारु ।अवर तिआगि तू तिसहि चितारु ॥जो कछु करै सोई सुखु मानु ।भूला काहे फिरहि अजान ॥कउन बसतु आई तेरै संग ।लपटि रहिओ रसि लोभी पंतग ॥राम नाम जपि हिरदे माहि ।नानक पति सेती घरि जाहि ॥४॥पद ५ वे जिसु वखर कउ लैनि तू आइआ ।राम नामु संतन घरि पाइआ ॥तजि अभिमानु लेहु मन मोलि ।राम नामु हिरदे महि तोलि ॥लादि खेप संतह संगि चालु ।अवर तिआगि बिखिआ जंजाल ॥धंनि धंनि कहै सभु कोह ।मुख ऊजल हरि दरगह सोइ ॥इहु वापारु विरला वापारै ।नानक ता कै सद बलिहारै ॥५॥पद ६ वेचरन साध के धोइ धोइ पीउ ।अरपि साध कउ अपना जीउ ॥साध की धूरि करहु इसनानु ।साध ऊपरि जाईऐ कुरबानु ॥साध सेवा वडभागी पाईऐ ।साध संगि हरि कीरतनु गाईऐ ॥अनिक बिघन ते साधू राखै ।हरि गुन गाइ अंम्रित रसु चाखै ॥ओट गही संतह दरि आइआ ।सरब सूख नानक तिह पाइआ ॥६॥पद ७ वे मिरतक कउ जीवालनहार ।भूखे कउ देवत अधार ॥सरब निधान जा की द्रिसटी माहि ।पुरब लिखे का लहणा पाहि ॥सभु किछु तिस का ओहु करनै जोगु ।तिसु बिनु दूसर होआ न होगु ॥जपि जन सदा सदा दिनु रैणी ।सभ ते ऊच निरमल इह करणी ॥करि किरपा जिस कउ नामु दीआ ।नानक सो जनु निरमलु थीआ ॥७॥पद ८ वेजा कै गुर की परतीति ।तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति ॥भगतु भगतु सुनीऐ तिहु लोइ ।जा कै हिरदै एको होइ ॥सचु करणी सचु ता की रहत ।सचु हिरदै सति मुखि कहत ॥साची द्रिसटि साचा आकारु ।सचु वरतै साचा पासारु ॥पारब्रहमु जिनि सचु करि जाता ।नानक सो जनु सचि समाता ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP