मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी ११ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी ११ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी ११ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २७६ )श्लोककरण कारण प्रभु एकु है दूसर नाही कोइ ।नानक तिसु बलिहारणै जलि थलि महीअलि सोइ ॥१॥पद १ ले करन करावन करनै जोगु ।जो तिसु भावै सोई होगु ॥खिन महि थापि उथापनहारा ।अंतु नही किछु पारावारा ॥हुकमे धारि अधर रहावै ।हुकमे उपजै हुकमि समावै ॥हुकमे ऊच नीच बिउहार ।हुकमे अनिक रंग परकार ॥करि करि देखै अपनी वडिआई ।नानक सभ महि रहिआ समाई ॥१॥पद २ रेप्रभ भावै मानुख गति पावै ।प्रभ भावै ता पाथर तरावै ॥प्रभ भावै बिनु सास ते राखै ।प्रभ भावै ता हरि गुण भाखै ॥प्रभ भावै ता पतित उधारै ।आपि करै आपन बीचारै ॥दुहा सिरिआ का आपि सुआमी ।खेलै बिगसै अंतरजामी ॥जो भावै सो कार करावै ।नानक द्रिसटी अवरु न आवै ॥२॥पद ३ रे कहु मानुख ते किआ होइ आवै ।जो तिसु भावै सोई करावै ॥इस कै हाथि ता सभु किछु लेइ ।जो तिसु भावै सोई करेइ ॥अनजानत बिखिआ महि रचै ।जे जानत आपन आप बचै ॥भरमे भूला दह दिसि धावै ।निमख माहि चारि कुंट फिरि आवै ॥करि किरपा जिसु अपनी भगति देइ ।नानक ते जन नामि मिलेइ ॥३॥पद ४ थेखिन महि नीच कीट कउ राज ।पारब्रहम गरीब नवाज ॥जा का द्रिसटि कछू न आवै ।तिसु ततकाल दह दिस प्रगटावै ॥हा कउ अपुनी करै बखसीस ।ता का लेखा न गनै जगदीस ॥जीउ पिंडु सभ तिस की रासि ।घटि घटि पूरन ब्रहम प्रगास ॥अपनी बणत आपि बनाई ।नानक जीवै देखि बडाई ॥४॥पद ५ वेइस का बलु नाही इसु हाथ ।करन करावन सरब को नाथ ॥आगिआकारी बपुरा जीउ ।जो तिसु भावै सोई फुनि थीउ ॥कबहू ऊच नीच महि बसै ।कबहू सोग हरख रंगि हसै ॥कबहू निंद चिंद बिउहार ।कबहू ऊभ अकास पइआल ॥कबहू बेता ब्रहम बीचार ।नानक आपि मिलावणहार ॥५॥पद ६ वेकबहू निरति करै बहु भाति ।कबहू सोइ रहै दिनु राति ॥कबहू महा क्रोध बिकराल ।कबहूं सरव की होत र वाल ॥कबहू होइ बहै बड राजा ।कबहू भेखारी नीच का साजा ॥कबहू अपकीरति महि आवै ।कबहू भला भला कहावै ॥जिउ प्रभु राखै तिव ही रहै ।गुर प्रसादि नानक सचु कहै ॥६॥पद ७ वेकबहू होइ पंडितु करे बख्यानु ।कबहू मोनि धारी लावै धिआनु ॥कबहू तट तीरथ इसनान ।कबहू सिध साधिक मुखि गिआन ॥कबहू कीट हसति पतंग होइ जीआ ।अनिक जोनि भरमै भरमीआ ॥नाना रुप जिउ स्वागी दिखावै ।जिउ प्रभ भावै तिवै नचावै ॥जो तिसु भावै सोई होइ ।नानक दूजा अवरु न कोइ ॥७॥पद ८ वे कबहू साध संगति इहु पावै ।उसु असथान ते बहुरी न आवै ॥अंतरि होइ गिआन परगासु ।उसु असथान का नही बिनासु ॥मन तन नामि रते इक रंगि ।सदा बसहि पारब्रहम कै संगि ॥जिउ जल महि जलु आइ खटाना ।तिउ जोती संगि जोति समाना ॥मिटि गए गवन पाए बिस्त्राम ।नानक प्रभू कै सद कुरबान ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP