मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी २२ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी २२ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी २२ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २९२ )श्लोकजीअ जंत के ठाकुरा आपे वरतणहार ।नानक एको पसरिआ दूजा कह द्रिसटार ॥१॥पद १ लेआपि कथै आपि सुननैहारु ।आपहि एकु आपि बिसथारु ॥जा तिसु भावै ता स्त्रिसटि उपाए ।आपनै भाणै लए समाए ॥तुम ते भिंन नही किछु होइ ।आपन सूति सभु जगतु परोइ ॥जा कउ प्रा जीउ आपि बुझाए ।सचु नामु सोई जनु पाए ॥सो समदरसी तत का बेता ।नानक सगल स्रिसटि का जेता ॥१॥पद २ रेजी अ जं त्र सभ ता कै हाथ ।दीन दइआल अनाथ क नाथु ॥जिसु राखै तिसु कोइ न मारै ।सो मूआ जिसु मनहु बिसारै ॥तिसु तजि अवर कहा को जाइ ।सभ सिरि एकु निरंजन राइ ॥जीअ की जुगति जा कै सभ हाथि ।अंतरि बाहरि जानह साथि ॥गुन निधान बेअंत अपार ।नानक दास सदा बलिहार ॥२॥पद ३ रेपूरनि पूरि रहे दइआल ।सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥अपने करतब जानै आपि ।अंतरजामी रहिओ बिआपि ।अंतरजामी रहिओ बिआपि ॥प्रतिपालै जीअन बहु भाति ।जो जो रचिओ सु तिसहि धिआति ॥जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ।भगति करहि हरि के गुण गाइ ॥मन अंतरि बिस्वासु करि मानिआ ।करनहारु नानक इकु जानिआ ॥३॥पद ४ थेजनु लागा हरि एकै नाइ ।तिस की आस न बिरथी जाइ ॥सेवक कउ सेवा बनि आई ।हुकमु बूझि परम पदु पाई ॥इस ते ऊपरि नही बीचारु ।जा कै मनि बसिआ निरंकारु ॥बंधन तोरि भए निरवैर ।अनदिनु पूजहि गुर के पैर ॥इह लोक सुखीए परलोक सुहेले ॥नानक हरि प्रभि आपहि मेले ॥४॥पद ५ वेसाध संगि मिलि करहु अनंद ।गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥राम नाम ततु करहु बीचारु ।दुलभ देह का करहु उधारु ॥अंम्रित बचन हरि के गुन गाउ ।प्रान तरन का इहै सुआउ ॥आठ प्रहर प्रभ पेखहु नेरा ।मिटै अगिआनु निनसै अंधेरा ॥सुनि उपदेसु हिरदै बासावहु ।मन इछे नानक फल पावहु ॥५॥पद ६ वेहलतु पलतु दुइ लेहु सवारि ।राम नामु अंतरि उरि धारि ॥पूरे गुर की पूरी दीखिआ ।जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ ॥मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ ।दूखु दरदु मन ते भउ जाइ ॥सचु वापारु करहु वापारी ।दरगह निबहै खेप तुमारी ॥एका टेक रखहु मन माहि ।नानक बहुरि न आवहि जाहि ॥६॥पद ७ वेतिस ते दूरि कहा को जाइ ।उबरै राखनहारु धिआइ ॥निरभउ जपै सगल भउ मिटै ।प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै ॥जिसु प्रभु राखै तिसु नाही दूख ।नामु जपत मनि होवत सूख ॥चिंता जाइ मिटै अंहकारु ।तिसु जन कउ कोइ न पहुचनहारु ॥सिर ऊपरि ठाठा गुरु सूरा ।नानक ता के कारज पूरा ॥७॥पद ८ वेमति पूरी अंम्रित जा की द्रिसटि ।दरसनु पेखत उधरत स्रिसटि ॥चरन कमल जा के अनूप ।सफल दरसनु सुंदर हरि रुप ॥धंनु सेवा सेवकु पर वानु ।अंतरजामी पुरखु प्रधानु ॥जिसु मनि बसै सु होत निहालु ।ता कै निकटि न आवत कालु ॥अमर भए अमरा पदु पाइआ ।साध संगि नानक हरि धिआइआ ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP