मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी १८ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी १८ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी १८ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब - पान क्र. २८६ )श्लोकसति पुरखु जिनि जानिआ सतिगुरु तिस का नाउ ॥तिस कै संगि सिखु उधरै नानक हरि गुन गाउ ॥१॥पद १ लेसतिगुरु सिख की करै प्रतिपाल ।सेवक कउ गुरु सदा दइआल ॥सिख की गुरु दुरमति मलु हिरै ।गुर बचनी हरि नामु उचरै ॥सतिगुरु सिख के बंधन काटै ।गुर का सिखु बिकार ते हाटै ॥सतिगुरु सिख कउ नाम धनु देइ ।गुर का सिखु वडभागी हे ॥सतिगुरु सिख का हलतु पलतु सवारै ।नानक सतिगुरु सिख कउ जीअ नालि समारै ॥१॥पद २ रेगुरु के ग्रिहि सेवकु जो रहै ।गुर की आगिआ मन महि सहै ॥आपस कउ करि कछु न जनावै ।हरि हरि नामु रिदै सद धिआवै ॥मनु बेचै सतिगुरु कै पासि ।तिसु सेवक के कारज रासि ॥सेवा करत होइ निहकामी ।तिस कउ होत परापति सुआमी ॥अपनी क्रिपा जिसु आपि करेइ ।नानक सो सेवकु गुर की मति लेइ ॥२॥पद ३ रे बीस बिसवे गुर क मनु मानै ।सो सेवक परमेसुर की गति जानै ॥सो सतिगुरु जिसु रिदै हरि नाउ ।अनिक बार गुर कउ बलि जाउ ॥सरब निधान जीअ का दाता ।आठ पहर पारब्रहम रंगि राता ॥ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु ।एकहि आपि नही कछु भरमु ॥सहस सिआनप लइआ न जाईऐ ।नानक ऐसा गुरु बडभागी पाईऐ ॥३॥पद ४ थे सफल दरसनु पे खत पु नीत ।परसत चरन गति निरमल रीति ॥भेटत संगि राम गुन र वे ।पारब्रहम की दरगह गवे ॥सुनि करि बचन करन आघाने ।मनि संतोखु आतम पतीआने ॥पूरा गुरु अख्यओ जा का मंत्र ।अंम्रित द्रिसटि पेखै होइ संत ॥गुण बिअंत कीमति नही पाइ ।नानक जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥४॥पद ५ वेजिहबा एक उसतति अनेक ।सति पुरख पूरन बिबेक ॥काहू बोल न पहुचत प्रानी ।अगम अगोचर प्रभ निरबानी ॥निराहार निरवैर सुखदाई ।ता की कीमति किनै न पाई ॥अनिक भगत बंदन नित करहि ।चरन कमल हिरदै सिमरहि ॥सद बलिहारी सतिगुर अपने ।नानक जिसु प्रसादि ऐसा प्रभु जपने ॥५॥पद ६ वेइहु हरि रसु पावै जनु कोइ ।अंम्रितु पीवै अमरु सो होइ ॥उसु पुरख का नाही कदे बिनास ।जा कै मनि प्रगटे गुनतास ॥आठ पहर हरि का नामु लोइ ।सचु उपदेसु सेवक कउ देइ ॥मोह माइआ कै संगि न लेपु ।मन महि राखै हरि हरि एकु ॥अंधकार दीपक परगासे ।नानक भरम मोह दुख तह ते नासे ॥६॥पद ७ वेतपति माहि ठाढि वरताई ।अनदु भइआ दुख नाठे भाई ॥जनम मरन के मिटे अंदेसे ।साधू के पूरन उपदे से ॥भउ चूका निरभउ होइ बसे ।सगल बिआधि मन ते खै नसे ॥जिस का सा तिनि किरपा धारी ।साध संगि जपि नामु मुरारी ॥थिति पाई चूके भ्रम गवन ।सुनि नानक हरि हरि जसु स्रवन ॥७॥पद ८ वेनिरगुन आपि सरगुनु भी ओही ।कला धारि जिनि सगली मोही ॥अपने चरित प्रभि आपि बनाए ।अपुनी कीमति आपे पाए ॥हरि बिनु दुजा नाही कोइ ।सरब निरंतरि एको सोइ ॥ओति पोति रविआ रुप रंग ।भए प्रगास साध कै संग ॥रचि रचना अपनी कल धारी ।अनिक बार नानक बलिहारी ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP