मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी ३ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी ३ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी ३ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान २६५)बहु सासत्र बहु सिम्रिता । पेखे सरब ढढोलि ॥पूजसि नाही हरि हरे । नानक नाम अमोल ॥१॥पद १ लेजाप ताप गिआन सभि धिआन ।खट सासत्र सिम्रिति वखिआन ॥जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ ।सगल तिआगि बन मधे फिरिआ ॥अनिक प्रकार कीए बहु जतना ।पुंन दान होमे बहु रतना ॥सरीरु कटाइ होमे बहु रतना ॥वरत नेम करै बहु भाती ॥नही तुलि राम नाम बीचार । नानक गुरमुखि नामु जपीऐ एक बार ॥१॥पद २ रेनउ खंड प्रिथमी फिरै चिरु जीवै ।महा उदासु तपीसरु थीवै ॥अगनि माहि होमत परान ।कनिक अस्व हैवर भूमि दान ॥निउली करम करै बहु आसन ।जैन मारग संजम अति साधन ॥निमख निमख करि सरीरु कटावै ।तउ भी हउमै मैलु न जावै ॥नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि ॥२॥पद ३ रेमन कामना तीरथ देह छुतै ।गरबु गुमानु न मन ते हुटै ॥सोच करै दिनसु अरु राइ ।मन की मैलु न तन ते जाति ॥ इसु देही कउ बहु साधना करै ।मन ते कबहू न बिखिआ टरै ॥जलि धोवै बहु देह अनीति ।सुध कहा होइ काची भीति ॥मन हरि के नाम की महिमा ऊच ।नानक नामि उधरे पतित बहु मूच ॥३॥पद ४ थे बहुतु सिआणप जम का भउ बिआपै । अनिक जतन करि त्रिसन ना ध्रापै ॥भेख अनेक अगनि नही बुझै ।कोटि उपाव दरगह नही सिझै ॥छूटसि नाही ऊभ पइआलि ।मोहि बिआपहि आइआ जालि ॥अवर करतूति सगली जमु डानै ।गोविंद भजन बिनु तिलु नही मानै ॥हरि का नामु जपत दुखु जाइ ।नानक बोले सहजि सुभाइ ॥४॥पद ५ वे चारि पदारथ जे को मागै ।साध जना की सेवा लगौ ॥जे को आपुना दूखु मिटावै ।हरि हरि नामु रिदै सद गावै ॥जे को आपुना दूखु मिटावै ।हरि हरि नामु रिदै सद गावै । जे को अपुनी सोभा लोरै ।साध संगि इह हउमै छोरै ॥जे को जनम मरण ते डरै ।साध जना की सरनी परै ॥जिसु जन कउ प्रभ दरस पिआसा ।नानक ता कै बलि बलि जासा ॥५॥पद ६ वे सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु ।साध संगि जा का मिटै अभिमानु ॥आपस कउ जो जाणै नीचा ।सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥जा का मनु होइ सगल की रीना ।हरि हरि नामु तिनि घटि घटि चीना ॥मन अपुने ते बुरा मिटाना ।पेखै सगल स्त्रिसटि साजना ॥सूख दूख जन सम द्रिसटेता ।नानक पाप पुंन नही लेपा ॥६॥पद ७ वे निरधन कउ धनु तेरो नाउ ।निथावे कउ तेरा थाउ ॥निमाने कउ प्रभ तेरो मानु ।सगल घटा कउ देवहु दानु ॥करन करावनहार सुआमी ।सगल घटा के अंतरजामी ॥अपनी गति मिति जानहु आपे ।आपन संगि आपि प्रभ राते ॥तुमरी उसतति तुम ते होइ ।नानक अवरु न जानसि कोइ ॥७॥पद ८ वेसरब धरम महि स्त्रेसट धरमु ।हरि को नामु जपि निरमल करमु ॥सगल क्रिआ महि ऊतम किरिआ ।साध संगि दुरमति मलु हिरिआ ॥सगल उदम महि उदमु भला ।हरि का नामु जपहु जीअ सदा ॥सगल बानी महि अंम्रित बानी ।हरि को जसु सुनि रसन बखानी ॥सगल थान ते ओहु ऊतम थानु ।नानक जिह घटि वसै हरि नामु ॥८॥ Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP