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इस अखिल विश्वमे भरा एक तू...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - इस अखिल विश्वमे भरा एक तू...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

इस अखिल विश्वमे भरा एक तू ही तू ।

तुझमें मुझमें 'तू' मै 'तू' तू 'तू' ही तू ॥

नभमें तू, जल थल वायु अनलमें भी तू ।

मेघध्वनि, दामिनि, वृष्टि प्रबलमें भी तू ॥

सागर अथाह सरिता प्रवाहमें भी तू ।

शशि-शीतलता, दिनकर-प्रदाहमें भी तू ॥

बन सघन पुष्प उद्यान मनोहरमें भी तू ।

प्रस्फुटित कुसुम-रस-लीन भ्रमरमें भी तू ॥

है सत्य-असत, विष-अमृत विनय-मदमें तू ॥

शुभ क्षमा-तेज, अति विपद-सुसंपदमें तू ॥

मृदु हास्य सरल, अति तीव्र रुदन-रवमें तू ।

चिरशांति, क्रांति अति भीषण विप्लवमें तू ॥

है प्रकृति-पुरुष, पुरुषोत्तम, मायामें तू ।

अति असह धूप, सुखदायक छायामें तू ॥

नारी-अँतर, शिशु सुखद बदनमें भी तू ।

कामारि, कुसुमरसपाणि मदनमें भी तू ॥

घन अँधकार, उज्ज्वल प्रकाशमें भी तू ।

जड़-मूढ़ प्रकृति, अतिमति-विकासमें भी तू ॥

है साध्वी घरनी कुलटा-गणिकामें भी तू ।

है गुँथा सूत, माला, मणिकामें भी तू ॥

तू पाप-पुण्यमें नरक-स्वर्गमें भी तू ।

पशु-पक्षि, सुरासुर, मनुजवर्गमें भी तू ॥

है मिट्टी-लोह, पषाण-स्वर्णमें भी तू ।

चतुराश्रममें तू, चतुर्वणमें भी तू ॥

है धनी-रंक, ज्ञानी अज्ञानीमें तू ।

है निराभिमानमें अति अभिमानीमें तू ॥

है बाल-वृद्ध नर-नारी, नपुंसकमें तू ।

अति करुणह्रदयमें, निर्दय हिंसकमें तू ॥

है शत्रु-मित्रमें, बाहरमें, घरमें तू ।

है ऊपर, नीचे, मध्य, चराचरमें तू ॥

'हाँ' में, 'ना' में तू, 'तू' में, 'मैं' में 'तू' तू ।

हूँ तू, तू तू, तू तू तू, बस तू ही तू ॥

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Last Updated : September 25, 2008

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