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जगतमें स्वारथके सब मीत । ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - जगतमें स्वारथके सब मीत । ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

जगतमें स्वारथके सब मीत ।

जब लगि जासौं रहत स्वार्थ कछु, तब लगि तासौं प्रीत ॥

मात-पिता जेहि सुतहित निस-दिन सहत कष्ट-समुदाई ।

बृद्ध भये स्वारथ जब नास्यो, सोइ सुत मृत्यु मनाई ॥

भोग-जोग जबलौं जुवती स्त्री, तबलौं अतिहि पियारी ।

बिधिबस सोइ जदि भई ब्याधिबस, तुरत चहत तेहि मारी ॥

प्रियतम, प्राननाथ कहि कहि जो अतुलित प्रीति दिखावत ।

सोइ नारी रचि आन पुरुष सँग पतिकी मृत्यु मनावत ॥

कल नहिं परत मित्र बिनु छिनभर, संग रहे सँग खाये ।

बिनस्यो धन, स्वारथ, जब छूट्यो, मुख बतरात लजाये ॥

साँचो सुह्रद, अकारन प्रेमी राम एक जग माहीं ।

तेहि सँग जोरहु प्रीति निरंतर, जग कोउ अपनो नाहीं ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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