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नाथ ! अब कैसे हो कल्याण ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - नाथ ! अब कैसे हो कल्याण ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

नाथ ! अब कैसे हो कल्याण ?

प्रभु-पद-पंकज-बिमुख निरंतर रहते पामर प्राण ।

परसुखकातर महामलिन मन चाहत पद निर्वाण ॥

सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया सब कर गये दूर प्रयाण ।

लगा ह्रदयमें द्वेष-घृणा हिंसाका बेधक बाण ॥

भेदबुद्धिसे भरा ह्रदय सब भाँति हुआ पाषाण ।

आत्मभावना भूल वैरपर सदा चढ़ाता शाण ॥

लगा कामना-भूत भयानक, मिटा धर्म परिमाण ।

उभयभ्रष्ट हुआ बनकर अब पशु बिनु पूँछ विषाण ॥

श्रुति-स्मृतिकी करता अवहेला, पढ़ता नहीं पुराण ।

प्रभो ! पतित इस अधम दीनका तुम्ही करो अब त्राण ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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