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हे नाथ ! तुम्ही सबके माल...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - हे नाथ ! तुम्ही सबके माल...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

हे नाथ ! तुम्ही सबके मालिक तुम ही सबके रखवारे हो ।

तुम ही सब जगमें व्याप रहे, विभु ! रूप अनेकों धारे हो ॥

तुमही नभ, जल, थल, अग्नि तुम्ही, तुम सूरज-चाँद-सितारे हो ।

यह सभी चराचर है तुममें, तुम ही सबके ध्रुवतारे हो ॥

हम महामूढ़ अज्ञानीजन, प्रभु ! भवसागरमें डूब रहे ।

नहिं नेक तुम्हारी भक्ति करे, मन मलिन विषयमें खूब रहे ॥

सत्सङ्गतिमें नहि जायँ कभी, खल सङ्गतिमें भरपूर रहे ।

सहते दारुण दुख दिवस-रैन, हम सच्चे सुखसे दूर रहे ॥

तुम दीनबन्धु जगपावन हो, हम दीन, पतित अति भारी है ।

है नही जगतमें ठौर कहीं, हम आये शरण तुम्हारी है ॥

हम पड़े तुम्हारे है दरपर, तुमपर तन-मन-धन वारे है ।

अब कष्ट हरो, हरि हे हमरे, हम निंदित निपट, दुखारे है ॥

इस टूटी-फूटी नैयाको भवसागरसे खेना होगा ।

फिर निज हाथोंसे नाथ ! उठाकर पास बिठा लेना होगा ॥

हे अशरणशरण, अनाथनाथ, अब तो आश्रय देना होगा ।

हमको निज चरणोंका निश्चित नित दास बना लेना होगा ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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